स्वच्छता मिशन ने भारत को कितना स्वच्छ बनाया
स्वच्छ भारत अभियान उन में एक है।यह अभियान देश को पूर्ण रूप से स्वच्छ करने के लक्ष्य से शुरू किया गया था।
भाजपा सरकार ने सत्ता में उतरते ही देश के विकास के लिए बहुत सारी मुहीमो को शुरू कर दिया था। स्वच्छ भारत अभियान उन में एक है।यह अभियान देश को पूर्ण रूप से स्वच्छ करने के लक्ष्य से शुरू किया गया था।
2 अक्तूबर 2014 (महात्मा गाँधी के 145वे जन्म दिवस पर) को इस अभियान का शुभ आरम्भ किया गया। देश के शहरी विकास तथा पेयजल मंत्रालय के तहत इस अभियान को शहरी तथा ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में लागू किया गया। इस अभियान को पूरा करने का लक्ष्य 2 अक्तूबर 2019 (गांधी जी की 150वे जन्म दिवस) तक का रखा गया।
मिशन का लक्ष्य देश में चारों ओर स्वछता करके समाजवादी स्तिथि को बढ़ावा देना है।
इसके लिए सबसे ज़रूरी है।
1. देश के प्रत्येक घर में शौच,तथा साफ़ पानी।
2. स्वछता कार्यप्रणाली में नयी तकनीकों को इस्तेमाल में लाना।
3.सरकार द्वारा अधिक से अधिक मात्रा में सफाई कर्मचारियों का नियुक्त करना।
4.स्वच्छता में वैज्ञानिक तकनीकों का अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जाए इत्यादि।
जहाँ एक तरफ स्वच्छ भारत के नाम पर करोड़ो रुपये खर्च किये जा रहे है वहीं दूसरी ओर ज़मीनी हकीक़त कुछ और ही बयां कर रही है
हाल ही में गाँव थाना गजरौला में न जाने कितने महीनों से शौचालाय अधूरे पड़े है।ताज्जुब की बात ये है कि ये शौचालाय कागज़ी कार्यवाही में पूरे हो गए है।गाँव वालो की शिकायतों के बाद भी इन पर कोई ध्यान नही दिया जा रहा है।
वही उत्तराखंड की तरफ रुख किया जाये वहां गन्दगी के स्थान पर बढ़ोतरी कर रहा है स्वच्छ सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में उत्तराखंड 12वे स्थान से 19वे स्थान पर पहुँच गया है।देश में लगभग 15 करोड़ लोग अभी भी बिना शौचालाय के जीवन व्यतीत कर रहे है।
वर्ल्ड टॉयलेट दे कि रिपोर्ट के मुताबिक भारत से हर रोज निकलने वाला कूड़ा और गन्दगी से 8 ओलिम्पक स्विमिंग पूल भर सकते है।
वहीँ दूसरी ओर सफाई कर्मचारियों का कहना है कि सरकार को पता ही नही है कि सीवर सफाई के दौरान कितनों की जानें गयी है। और न ही उनके परिवारों को कोई मुआवजा मिला है।
मिली जानकारी के अनुसार हरियाणा से गुजरती हुई यमुना नदी का पानी एकदम काला पड़ चुका है जिससे न जाने कितने ही राज्यों में खेती बाड़ी तथा अन्य कामकाज किये जाते है। इससे बीमारी फैलने का खतरा निरंतर बना हुआ है।
बताया जाता है कि कारखानों का जहरीला पानी इस नदी में गिराया जाता है। स्वच्छता के नाम पर गंगा नदी का भी कुछ ऐसा ही हाल है कई जगहों में गंगाजल को पीने और नहाने के लिए भी उपयोग करना बंद कर दिया है। कईं स्थानीय लोग आज भी घाट के किनारे ही शौच आदि करते है जो गंदगी तथा दूषित जल को बढ़ावा देता है जिसे पीने वाले पशु व मनुष्यों पर अक्सर स्वास्थ्य का खतरा बना रहता है।
लोगों का कहना है कि स्वच्छ भारत के तहत बनाये जा रहे ग्रामीण शौचालयों में घटिया सामग्री का प्रयोग किया जा रहा है। जिससे आय दिन शौचालयों का कभी छत गिर जाती है तो कभी दीवार साथ ही कई स्थानों पर पानी की पूर्ण प्राप्ति नहीं है।
आज इस योजना को शुरू हुए लगभग 5 वर्ष होने को आ रहे है। यह योजना अपने लक्ष्य तक कितना पहुँची है कुछ कह नही सकते लेकिन उम्मीद कर सकते है कि जल्द ही भारत का एक नया रूप देखने को मिलेगा