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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का आत्मनिर्भर भारत अभियान कितना सच कितना झूठ?

जिसकी जितनी संख्या भारी उतनी हो उसकी हिस्सेदारी।


वर्ष 1917 मे स्वतंत्रता संग्राम मे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भितिहरवा बिहार मे थे। विश्वविख्यात पत्रकार लुई फिशर भी बापू के साथ भ्रमण करते सवाल भी पुछ रहे थे। स्वतंत्र भारत के आर्थिक नीति पर लुई फिशर के एक सवाल पर बापू ने राष्ट्रीय खजाना के वितरण स्वरुप मे कहा था—— कि———
जिसकी जितनी संख्या भारी
उतनी हो उसकी हिस्सेदारी।

आज भारत के खजाना पर ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले किसानों मजदूरों और उनके संतानों की संख्या कितनी है और खजाना का कितनी राशि उनपर खर्च कितना किया जाता रहा है और आज बिगत छः वर्षो से अपने को प्रधान सेवक कहने वाले मोदीजी कितना खर्च कर रहे है?



भारतीय संसद लोकसभा राज्यसभा और विधानमंडलों विधानसभा विधानपरिषद की संख्या कुल जनसँख्या का कितना प्रतिशत और उपभोग कितने प्रतिशत राशि करते हैं? उसी तरह आबादी के अनुपात मे हमारे नौकरशाह कितने है उनपर खर्च कितना हो रहा है।

स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में ही हमारे सेनानियों ने सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि — स्वतंत्र भारत मे—–
योजनाओं का ग्रामिणकरण होगा
ग्रामो का औद्योगिकरण होगा
उद्योगो का श्रमिककरण होगा
श्रम का राष्ट्रीयकरण होगा
राष्ट्र का पूंजीकरण होगा और
पूंजी का बिकेन्द्रीकरण होगा।
यही स्वरुप भारत का रामराज्य होगा।

इसी स्वरुप को हमारी सरकारें आज तक स्थापित नहीं कर सकी जिसका दुश: परिणाम आज देश भूगत रहा है कि श्रृष्टि का पालनहार किसान मजदूर और उसका संतान दरिद्रता के दलदल मे फंस अपनी बेबसी पर आत्महत्या तक करने को विवश है। युवा वर्ग नहीं चाहते हुए भी मात्र अपना पेट पालने के लिए हजारो किलोमीटर की दूरी पर अपमानित होते अपना श्रम बेचने को मजबूर है।

समता मूलक सम्पन्न एवं ममता मयी समाज स्थापित करने हेतु ही महान समाजवादी बिचारक डॉ राममनोहर लोहिया ने नारा दिया था —— कि —–
सौ से कम ना हजार से ज्यादा
यही है समाजवाद का तकाजा।

अपने को नैतिक मूल्यों पर आधारित एवं राष्ट्र के प्रति समर्पित भाव से प्रधान सेवक कहलाने वाले नरेंद्र मोदी जी जिस संसदीय दल का नेता बन प्रधानमंत्री है उस 303 लोकसभा सांसदों मे 146 अपराधी है। ऐसे संसदो के सहारे कोई सहमति स्थापित कर क्या जनहितकारी सिद्धांत प्रतिपादित किया जा सकता है? जब आम सहमति से सिद्धांत प्रतिपादित नही होगा तो सहयोगात्मक भाव भी जाग्रीत नहीं होगा। तब एसी स्थिति मे ना समन्वय होगा ना आचरण मे स्वदेशी उत्पादन होगा ना ही स्वलम्बी हम बन पाएंगे।

मोदीजी के नेतृत्व मे उदारीकरण चलेगा सार्वजनिक कम्पनियो का विक्रय होगा निजीकरण चरम पर होगा तब स्वदेशी और आत्मनिर्भरता अभियान का नारा भी मोदीजी का जुमला ही प्रमाणित होगा। क्योंकि उदारीकरण से बना बाजार और स्वदेशी चुनौति का कोई मेल नहीं है। यह एक तरीके से जनता को छलने वाले कृत्य के आलावा और कुछ भी नहीं।

मिथिलेश सिंह समाजवादी चिंतक

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