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जानिए नवरात्रि की आठवीं शक्ति देवी महागौरी जी की पावन गाथा।

दिव्य देवी माँ महागौरी जी की पूजा आराधना,स्मरण व् ध्यान उनके भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी माना गया है। हर मनुष्य को कष्टों से मुक्ति पाने के लिए माहा गौरी जी का ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से बहुत सी अलौकिक व् दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है। महागौरी रूप में आदिशक्ति करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं।

नवरात्रि की आठवीं शक्ति देवी माहागौरी के रूप में जानी जाती है। हिन्दू समाज में इस दिन को दुर्गाष्टमी या महाष्टमी भी कहा जाता है। आपको बता दें कि इनकी उपासना से भक्तों के सभी कष्ट व् पाप धुल जाते हैं। जिसके बाद मां के भक्त हर तरह से शुद्ध व् पवित्र हो जाते है साथ ही वे सभी प्रकार से अक्षय पुण्यों के अधिकारी भी हो जाते है।

इस देवी की आराधना से भक्तों के विचार सदमार्ग की ओर जाने लगते है। इस देवी की आराधना से मनुष्य की सभी इच्छाएँ तो पूर्ण होती ही है साथ में इस मृत्युलोक में भी उसे परम शांति और आनंद का अनुभव होता है।

पौराणिक कथा – सनातन धर्म के वेद व् ग्रंथों में माता महागौरी के संबंध में बहुत सी कथाएं मिलती है। लेकिन एक प्रचलित कथा के अनुसार कहा जाता है कि माता महागौरी राजा हिमावन के घर पुत्री के रूप में जन्मी थी . बालिका पार्वती ने अपने बालपन से तीनों लोकों के स्वामी भगवान् शिव को पाने के लिए कड़ी तपस्या की। इस तपस्या के बाद शिव उन पर बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें स्वीकार भी किया।

कहा जाता है कि उनके बालपन की कड़ी तपस्या के ताप से देवी महागौरी का शरीर घना काला हो गया था। उसपर पर तरह तरह की धूल,पत्ते, झाडी ,मिट्टी आदि सब जम गई थी । उनकी ये दशा देख कर भगवान् भोलेनाथ जी ने उनपर पवित्र गंगाजल का छिड़काव किया, जिसके बाद देवी महागौरी का शरीर अलौकिक स्वर्ण के समान कांतिमय होने लगा। मान्यता है कि मां तभी से आदिशक्ति का नाम महागौरी पड़ा गया ।

इस देवी से संबंधित एक अन्य कथा कहती है कि एक बार एक भूखा सिंह भोजन की तलाश में बहुत भटक रहा था। भटकते भटकते वह उस स्थान पर पहुंचा जहा देवी आदिशक्ति तपस्या कर रही थी। देवी को देखकर सिंह की भूख बहुत बढ़ गयी लेकिन देवी को तपस्या करते हुए देख वह सिंह वहीं बैठ गया।

देवी की तपस्या के समाप्त होने के इंतज़ार में सिंह काफी कमज़ोर भी हो गया था। कहते है कि देवी जब अपने तप से उठी तो उन्हे सिंह की दशा पर बहुत दया आई और उसके कल्याण के लिए जगत जननी ने उसे अपना वाहन बना लिया।

आपको बता दें कि अपने महागौरी रूप में आदिशक्ति करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस दिव्य स्वरूप की प्रार्थना करते हुए सभी ऋषिगण और देवी देवता कहते हैं –

“सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते..”।

स्वरूप – इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। ग्रंथों के अनुसार इस रूप की आयु आठ वर्ष की मानी गई है- ‘अष्टवर्षा भवेद् गौरी।’ देवी महागौरी जी की अत्यंत शांत मुद्रा मानी जाती है।

इनकी चार भुजाएँ हैं। जिनमे इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल विराजमान रहता है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं इस स्वरूप में इनका वाहन वृषभ है।

श्लोक – श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः | महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ||

महागौरी जी की पूजा का महत्व – दिव्य देवी माँ महागौरी जी की पूजा आराधना,स्मरण व् ध्यान उनके भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी माना गया है। हर मनुष्य को कष्टों से मुक्ति पाने के लिए माहा गौरी जी का ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से बहुत सी अलौकिक व् दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

इनकी शक्ति से मनुष्य के ह्रदय से नकारात्मक विचारों का सर्वनाश होने लगता है। मनुष्य को सदैव इनके चरणों का ध्यान करना चाहिए। देवी महा गौरी बहुत ही दयालु है इनकी कृपा भक्तों के सभी कष्ट दूर करती हैं।

हम आदिशक्ति के इस आठवे स्वरूप माता महागौरी से प्राथना करते है कि वह आपके और आपके परिवारजनों पर सदैव अपनी अलौकिक दृष्टि बनाए रखे।

जय माँ महागौरी

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