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दक्षिण-अफ्रीका के “महात्मा गाँधी” कहे जाने वाले राष्ट्र नायक “भारत रत्न नेल्सन मंडेला” जी की इस तरह रही जीवन यात्रा !

कारावास में जैसे जैसे इनकी उम्र बढ़ रही थी इनके स्वतंत्रता आंदोलन का रूप प्रचंड हो रहा था। इनके आत्म बल,विश्वास और सहनशक्ति के अंगारों ने लोहे की सलाखों को पिघलने पर मजबूर कर दिया। और अंततः इन्हे 27 वर्ष के कठोर कैद के बाद 11 फ़रवरी सन 1990 को कारावास की दुनिया से आज़ाद कर दिया गया।

रंगभेद,जातिवाद जैसी कुरीतियों पर करारी चोट करने वाले दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत भूतपूर्व राष्ट्रपति “सर नेल्सन मंडेला” को इस सदी के सबसे महान नेताओं में गिना जाता है।

 इन्होने दक्षिण अफ्रीका में चल रहे ‘चमड़ी के रंग’ और नस्ल के आधार पर चलने वाले क़ानून का विरोध किया और  ड्राइवर, दरबान और भृत्य के रूप में अपने जीवन का निर्वाह करते हुए सरकार एवं क़ानून  की क्रूर यातनाएँ सहते हुए दक्षिण अफ्रीका राष्ट्र को सदी के अंत तक इन सभी अमानवीय बंधनों से मुक्त करवाया। 

“सर नेल्सन मंडेला” दुनिया के एकमात्र विदेशी व्यक्ति है जिन्हे हमारी सरकार ने देश के सबसे बड़े पुरस्कार “भारत रतन” से सम्मानित किया है।

दृढ़ संकल्प और शांति दूत कहे जाने वाले “सर नेल्सन मंडेला” जी का जन्म 18 जुलाई सन् 1918 को म्वेज़ो, ईस्टर्न केप, दक्षिण अफ़्रीका संघ में हुआ था।  इनके पिता का नाम “गेडला हेनरी म्फ़ाकेनिस्वा” था जो उस समय म्वेजो कस्बे के जन-जातीय एवं लोकप्रिय सरदार थे। 

“सर मंडेला” के पिता “गेडला हेनरी म्फ़ाकेनिस्वा” की तीन पत्नियाँ और 13 संतानें थीं, मंडेला उनकी तीसरी पत्नी “नेक्यूफी नोसकेनी” की कोख से जन्मे थे। चूंकि उनके पिता कस्बे के सरदार थे इसलिए स्थानीय भाषा के कायदे पर उनका नाम “मंडेला” रखा गया जिसका अर्थ “सरदार का बेटा या राजकुमार” होता है।

 मंडेला अपने 13 भाइयों में से तीसरे थे।  इनके पिता इन्हे प्यार से ‘रोलिह्लला’ कहकर बुलाते थे जिसका अर्थ ‘उपद्रवी’ होता हैं। “मंडेला “जब 12 वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गयी। इसके बाद घर की सारी ज़िम्मेदारी उनके ऊपर आ गई। लॉ-फर्म में क्लर्क की नौकरी कर उन्होंने अपने परिवार का भरण-पोषण किया।

 शिक्षा और नेल्सन मंडेला-

नेल्सन मंडेला जी की माँ एक मेथोडिस्ट थी इसलिए इनकी प्रारंभिक शिक्षा “क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल” से हुई लेकिन इन्होने आगे की शिक्षा मेथोडिस्ट मिशनरी स्कूल से प्राप्त की। इससे आगे “बी० ऐ” की शिक्षा के लिए इन्होने “यूनिवर्सिटी ऑफ फोर्ट हेयर” में दाख़िला लिया लेकिन ये वहां से यह अपनी डिग्री की शिक्षा को पूरा ना कर सके, क्योंकि इन्हे छात्र विरोध के जुर्म के लिए निष्कासित कर दिया गया था। इन्होने अपनी  “बी० ऐ” की डिग्री “यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ अफ्रीका” से की। और 1943 में स्नातक की पढ़ाई के लिए फोर्ट हरे चले गए।

 इसी बीच मंडेला ने “यूनिवर्सिटी ऑफ विटवाटर्स्रैंड” में अपने स्वयं के प्रवेश से “एलएलबी” के लिए अध्ययन शुरू किया। लेकिन गरीबी की वजह से छोड़ दिया स्नातक किए बिना ही उन्होंने 1952 विश्वविद्यालय छोड़ दिया। अपने कारावास के अंतिम महीनों में, उन्होंने दक्षिण अफ्रीका विश्वविद्यालय के माध्यम से “एलएलबी” की शिक्षा को पूरा किया। 

राजनीतिक यात्रा-

जिस समय “सर नेल्सन मंडेला” ने राजनीती ने अपना कदम रखा उस समय देश के हालात बहुत बुरे थे। कानून और संविधान भूरे रंग के लोगों के बिलकुल खिलाफ था। “द०अफ़्रीका” में उस समय रंग भेद इतना अधिक बढ़  गया था कि भूरे रंग के लोगों को इंसान भी नहीं समझा जाता था.

ऐसी स्थिति को देखकर नेल्सन मंडेला सन् 1941 में जोहान्सबर्ग चले गए।,जहाँ “वॉल्टर सिसुलू” और “वॉल्टर एल्बरटाइन” के विचारों से प्रभावित होकर इन्होने भी रंग भेद को ख़त्म करने के लिए खुद को राजनीती से जोड़ लिया और सन् 1944 में शामिल हो गए “अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस” में शामिल हो गए ,जो उस समय रंग भेद के विरुद्ध आन्दोलन करती थीं। अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल होने के बाद इन्होने सन 1944 में ही अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग की स्थापना की।

लेकिन  सन् 1961 में मंडेला और उनके कुछ मित्रों के विरुद्ध देशद्रोह का मुकदमा चला और सन् 1964 में बहुचर्चित ‘रिवोनिया’ मुकदमे में इन्हे 27 वर्ष की कठोर कारावास की साज़ मिली। 

उम्र का एक बडा भाग जेल में गुज़ारने के बाद भी इनके बुलंद इरादे एवं संकल्प शक्ति ज़रा भी डगमगाई नहीं।

कारावास में जैसे जैसे इनकी उम्र बढ़ रही थी इनके स्वतंत्रता आंदोलन का रूप प्रचंड हो रहा था। इनके आत्म बल,विश्वास और सहनशक्ति के अंगारों ने लोहे की सलाखों को पिघलने पर मजबूर कर दिया। और अंततः इन्हे 27 वर्ष की कठोर कैद के बाद 11 फ़रवरी सन 1990 को कारावास की दुनिया से आज़ाद कर दिया गया।

अपनी रिहाई के बाद साल 1990 में “सर मंडेला” ने गोरी सरकार से एक नए समझौते के बाद नये दक्षिण अफ्रीका का निर्माण किया। जहाँ किसी प्रकार के रंग भेद की कोई जगह नहीं थी।

ये एक नया दक्षिण अफ्रीका था,”नेल्सन मंडेला”का दक्षिण अफ्रीका। और तब से वे दक्षिण अफ्रीका के साथ साथ पूरी दुनिया के लिए रंगभेद का विरोध करने के प्रतीक बन गये। इनके सम्मान में “संयुक्त राष्ट्र-संघ” ने इनके जन्मदिन को (18 जुलाई) “नेल्सन मंडेला अंतर्राष्ट्रीय दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय लिया।

व्यक्तिगत जीवन-

अपनी निजी ज़िंदगी में “सर मंडेला” राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के विचारों से बहुत प्रभावित थे। उनका भी यही मानना था सत्य और अहिंसा का मार्ग विश्व की हर समस्या का हल कर सकते है मंडेला ने गांधी जी  को प्रेरणा स्रोत माना था और उनसे अहिंसा का पाठ सीखा। 

सर मंडेला ने तीन शादियाँ कीं सबसे पहले सन् 1944 में अपने सहयोगी “वॉल्टर सिसुलू की बहन एवलीस मेस” से विवाह किया लेकिन सन् 1958 उनसे अलग होने के बाद इन्होने सन् 1961 “मेंनोमजामो विनी मेडीकिजाला” से विवाह किया।

इसके बाद अपने 80वें जन्मदिन पर सन् 1998 में इन्होने ग्रेस मेकल से विवाह किया। इनकी तीनो पत्नियों से 6 सन्ताने हुई इनके परिवार में कुल 17 पोते-पोतियां थे। 

 सम्मान,पुरस्कार और नेल्सन मंडेला-

सर मंडेला को द०अफ्रीका में “लोकतंत्र के प्रथम संस्थापक”, “राष्ट्रीय मुक्ति दाता और उद्धारकर्ता” के रूप में याद किया जाता है। इन्हे दक्षिण अफ्रीका  “राष्ट्रपिता” का दर्जा दिया गया है इन्हे लोग वहां का “महात्मा गाँधी” कहकर भी संबोधित करते है। 

साल 1993 में इन्हे “पूर्व राष्ट्रपति फ़्रेडरिक विलेम डी क्लार्क” के साथ नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन्हे भारत सरकार से साल 1990 में भारत के सर्वोच्च पुरस्कार से नवाज़ा गया , 23 जुलाई 2008 को गाँधी शांति पुरस्कार, निशान-ए–पाकिस्तान, ऑर्डर ऑफ़ लेनिन, प्रेसीडेंट मैडल ऑफ़ फ़्रीडम आदि सभी सम्मान भी इनके नाम हैं। 

 5 दिसम्बर 2013 को फेफड़ों में संक्रमण होने के कारण हॉटन, जोहान्सबर्ग में इस महान शख्सियत ने दुनिया से हमेशा के लिए विदा ले ली। इनकी मृत्यु की घोषणा सर्वप्रथम राष्ट्रपति जेकब ज़ूमा ने की। 

रंग भेद और जातिवाद जैसी कुरीतियों से लड़ने वाले और देश एवं दुनिया को शांति का पाठ पढ़ाने वाले “सर नेल्सन मंडेला” आज भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी विचार सदैव हमें प्रगति पथ पर चलने के लिए प्रेरित करते रहेंगे। उनका मानना था कि जब तक किसी काम को करने की कोशिश नहीं की जाए वह असंभव ही लगता है। 

वे कहते थे कि 

          “जब पानी उबलना शुरू होता है, उस समय ताप को बंद करना मूर्खता है। इसलिए शुरू किया हुआ कार्य कभी भी अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए”। 

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