कल्पनाथ राय मेरे घर का लड़का है- श्री चंद्रशेखर पूर्व प्रधानमंत्री

बात 1995-96 की है। बलिया के पड़ोसी जनपद मऊ से अपने विकासात्मक कार्यो के कारण ‘विकास पुरुष’ के रूप में कल्पनाथ राय ख्याति प्राप्त कर चुके थे। चंद्रशेखर जी उन्हें प्यार से ‘कल्पनथा’ कहते थे, लेकिन किन्हीं कारणों से कल्पनाथ राय एवं उनकी ही पार्टी के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के बीच रिश्ते तल्ख हो गए थे। बाद में नाटकीय घटनाक्रम में चीनी घोटाला व देशद्रोह के आरोप में कांग्रेस सांसद कल्पनाथ राय जेल भेज दिया गया । जिस पार्टी कांग्रेस (आई) से वह सांसद थे उस पार्टी के लोगों ने भी उनसे दूरी बना ली थी। सभी राजनीतिक लोगों ने कल्पनाथ राय को त्याग दिया था।

लेकिन यूँ ही कोई चंद्रशेखर नहीं हो जाता।
श्री चंद्रशेखर वह थे जो अपनों का साथ नहीं छोड़ते थे। वह अकेले नेता थे जो उस दौर में कल्पनाथ राय से मिले और मिलने भी कहाँ पहुंचे – तिहाड़ जेल ।
लोगों ने और प्रेस ने चंद्रशेखर जी की बड़ी मजामत की कि वह एक भष्टाचारी और देशद्रोही से मिलने जेल गए तब श्री चंद्रशेखर ने लोगों का जवाब देते हुए कहा था कि – ” आप सबकी आलोचना की मैं कतई परवाह नहीं करता। मैं मानवता, रिश्ते और दोस्ती को कभी नहीं भूल सकता। कल्पनाथ मेरे घर का लड़का है, इसे इस समय मेरी सबसे ज्यादे जरूरत है, मैं इसे आप सब की अपेक्षा अधिक अच्छे तरह से जानता हूँ। कोई मुझे ये नहीं कह सकता कि मैं किस से मिलूं और किससे नहीं।”
उन्होंने साथ मे यह भी कहा कि -‘कांग्रेस ई पार्टी के नैतिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी पार्टी के सांसद कल्पनाथ राय के जेल जाते ही कांग्रेसी सांसदों ने उनसे मिलना छोड़ दिया।’
मार्च 96 में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई। मऊ (घोसी) कांग्रेस पार्टी ने कल्पनाथ राय को टिकट न देकर राजकुमार राय को अपना प्रत्याशी बनाया। जेल में बंद कल्पनाथ राय ने निर्दल प्रत्याशी के रूप में नामांकन किया। इस चुनाव में कुल 74 प्रत्याशियों ने नामांकन किया। नामांकन के लिहाज से यह भी एक रिकॉर्ड रहा। इतने नामांकन आज तक किसी सीट पर नहीं हुए थे।उद्देश्य था कि अधिकाधिक डमी प्रत्याशियों को मैदान में उतार कल्पनाथ राय का वोट काटना और उन्हें हराना। बाद में नामांकन निरस्तीकरण के बाद भी कुल 54 लोगों ने चुनाव लड़ा। जेल में बंद कल्पनाथ राय की फ़ोटो ही उनका पोस्टर बनी और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी मुख्तार अंसारी (बसपा) को उन्होंने लगभग 15 हज़ार मतों से हराया। पूर्वांचल की राजनीति में यहीं से मुख्तार अंसारी की दमदार एंट्री हुई थी।
पुराने लोग कहते हैं कि ये 15 हज़ार मत चंद्रशेखर ने कल्पनाथ राय से अपनी मुलाकात में दे दिया था। यह मत चंद्रशेखर प्रेमियों का था।जिन्होंने उस समय अपने ‘अध्यक्ष जी’ के इशारे को समझा था। ‘घर का लड़का’ कल्पनाथ विजयी हुआ।
शायद इस हार का ही क्षोभ था याकि अपरिपक्वता बाद में एक बार मुख्तार अंसारी ने जाने अनजाने ही सही चंद्रशेखर जी के एक मित्र जो कि बनारस में रहते थे, पेट्रोल पंप के मालिक थे। उनका अपहरण करवा दिया और फिरौती के रूप में 20 लाख रुपयों की माँग की। बनारस से चंद्रशेखर जी को फोन गया और पूरे घटनाक्रम से उन्हें वाकिफ़ कराया गया। सुन के चंद्रशेखर जी बेहद गुस्सा हुए।
उन्होंने ने अपने सचिव को कहा कि अफजाल अंसारी को फोन करो और उसे यहाँ बुलाओ। अफजल अंसारी उस समय सांसद थे और वहीं दिल्ली में मौजूद थे। जब फोन पर उन्हें सूचना मिली कि चंद्रशेखर जी ने उन्हें बुलाया है तो वह भागे भागे 3, साउथ एवेन्यू पहुंचे। सुबह से शाम तक उन्हें वहीं बैठा कर रखा गया। जब वह पूछते कि चन्द्रशेखर जी ने उन्हें बुलाया है उन्हें चंद्रशेखर जी से मिलना है तो जवाब में कहा जाता था कि – बैठे रहिये। अध्यक्ष जी अभी बिजी हैं खाली होंगे तो आपसे मिलेंगे। अफजाल अंसारी उठ के जा भी नहीं सकते थे। सुबह से बैठे बैठे दोपहर हुई फिर शाम।
शाम को चंद्रशेखर जी अफजाल अंसारी से मिले और मिलते ही पहला वाक्य उन्होंने कहा कि- – अपने भाई को फोन लगाओ और उससे कहो कि अभी 50 लाख रुपये ले कर यहाँ आये।
तब तक अफजल अंसारी मामले को समझ चुके थे, उन्होंने पहले ही फोन करवा दिया था और चंद्रशेखर जी के मित्र बिना किसी फिरौती के छूट चुके थे। अफजाल अंसारी इस कृत्य के लिए शर्मिंदा हुए।

साभार #प्रशांतबलिया