सोनभद्र हत्यकांड की पूरी वारदात। आखिर क्यों उतारा गया 9 लोगों को मौत के घाट ?
देश की आज़ादी के समय से ही जंगल में रह रहे आदिवासियों की भूमि को किसी ना किसी तरीके से लूटा जा रहा है फिर चाहे वो कुर्सी की ताक़त से हो, या फिर नोटों की ताक़त से, आदिवासियों के साथ शुरू से भूमि के लिए अन्याय होता रहा है।
हाल ही में खबरों की सुर्ख़ियों से पता चला है कि बीते दिनों उत्तर-प्रदेश के सोनभद्र ज़िले में एक अमानवीय घटना घटी। ज़िले में 9 लोगों की निर्मम ह्त्या कर दी गयी जिनमे 3 महिलाएं और 6 पुरुष शामिल थे। बताया जा रहा कि यह पूरा हत्या कांड ज़मीन के विवाद के लिए रचा गया था जिसमे उलझकर 9 लोगों ने अपनी जान गवा दी।
आपको बता दें की देश की आज़ादी के समय से ही जंगल में रह रहे आदिवासियों की भूमि को किसी ना किसी तरीके से लूटा जा रहा है फिर चाहे वो कुर्सी की ताक़त से हो, या फिर नोटों की ताक़त से, आदिवासियों के साथ शुरू से भूमि के लिए अन्याय होता रहा है।
सूत्रों द्वारा मिली जानकारी से पता चलता है कि ये मामला भी आज का नहीं बल्कि पिछले दशक से भी पहले का है। दरसअल यह मामला साल 1955 में तब शुरू हुआ था जब बंगाल के एक “आईएएस” अधिकारी “प्रभात कुमार मिश्रा” ने “आदर्श सोसाइटी” के नाम से आदिवासियों के हिस्से की 700 बीघा से अधिक तक की ज़मीन को हस्तानांतरित किया।
मूल रूप से बिहार राज्य से ताल्लुक रखने वाले “आईएएस” अधिकारी “प्रभात कुमार मिश्रा” ने उस ज़मीन को बिना किसी जानकारी के कागज़ों व् अभिलेखों में “आदर्श सोसाइटी” के नाम कर दिया, जो ज़मीन साल 1955 से पूर्व आदिवासियों का भरण-पोषण करती थी, साल 1955 से पूर्व अभिलेखों में वन विभाग और ग्राम समाज के नाम थी। तब से ये विवाद चलता ही आ रहा है इसकी पुष्टि उत्तर-प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी की है।
मामला यही नहीं खत्म नहीं होता, मुद्दा तब और बड़ा बन जाता है जब खबर सामने आती है कि अधिकारी प्रभात कुमार मिश्रा ने कुछ समय बाद ही आदिवासियों की इस ज़मीन को अपनी बेटी और पत्नी के नाम कर दिया है. जिसका मुख़्तियानामा उन्होंने अपने नाम से बना दिया है।
बताया जा रहा है कि तभी से इस ज़मीन के बेचे जाने और खरीद की ख़बरें सामने आने लगी। जिससे यह साफ़ सिद्ध होता है कि देश की बागडोर संभाले हुए लोग माफ़िया से गठजोड़ कर खुद भू-माफ़िया बनने में कोई कसर नहीं छोड़ते।
जानकारों के बातचीत करने के बाद हमारे सूत्र बताते है कि यह ज़मीन आय दिन मुक़द्दमों,पंचायतों और तहसीलों में आती रही है। कईं दिनों तक यह ज़मीन विज्ञापनों का हिस्सा भी बनी रही है।
आपको बता दें की इसी साल 17 फरवरी को इस ज़मीन 148 बीघा यज्ञदत्त गुर्जा के नाम स्थांतरित किया गया था जिसकी याचिका बाद में कोर्ट ने खारिज कर दी थी जिसमे यज्ञदत्त के अलावा 11 और लोग शामिल थे।
जिसके बाद प० कुमार मिश्रा के खिलाफ मुक़दमा चलाया गया जिसे वे “एडीएम् और कमिश्नर कोर्ट” में हार गए, लेकिन मिश्रा का मुक़दमा हार जाने के बाद भी हारने के बाद भी कागज़ी दस्तावेज़ों से सोसाइटी का नाम नहीं हटाया गया।
इससे साफ़ रूप से पता चलता है कि मुक़दमा हार जाने के बाद भी अनवरत रूप से ज़मीन खरीदने और बेचने का अधिकार अभी भी उसी व्यक्ति के पास ही है।
बताया जा रहा है कि यज्ञदत्त द्वारा आदिवासियों से 3500 रुपए प्रति बीघा का लगान पार्टी वर्ष आदिवासियों से लिया जाता था जिसका एक हिस्सा प० मिश्रा को जाता था जिसके पुख्ता प्रमाण है।
सूत्रों की जानकारी से पता चला कि कुछ दिनों से आदिवासी लोग जिला अधिकारी से कह रहे थे कि कुछ लोग उनकी ज़मीनों को बलपूर्वक हथियाना चाहते है। लेकिन क़ानून द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
जिसका नतीजा सोनभद्र के उभ्भा गांव में गुरुवार की शाम पौने पांच बजे भूमि विवाद के चलते तीन महिलाओं समेत दस ग्रामीणों के शव गांव पहुँच गए।
अब सवाल ये आता है कि इस देश की न्याय व्यवस्था से लेकर कानून व्यवस्था तक भ्रष्ट लोगों से क्यों भरी पड़ी है।
अगर समय रहते ही उन दस्तावेज़ों से “आदर्श सोसाइटी” का नाम हटाकर वन-विभाग का नाम लिखा दिया जाता तो शायद आज बेहतर हो सकते थे। यदि देश की कानून व्यवस्था समय रहते ही ठोस कदम उठाती तो आज उन आदिवासियों के घरों में आज शौक के लहर नहीं होती।