शोध के लिए व्यापक सोच के साथ स्वीकार्यता की क्षमता आवश्यक- प्रो. कुहाड़
कुलपति बोले आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में योगदान हमारा कर्त्तव्य -हकेंवि में ‘शोध प्रविधि‘ पर ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यशाला का हुआ समापन
शोध का महत्त्व आज हम सभी समझते हैं। आज जरूरत है ऐसे शोध कार्य पूर्ण करने की जिससे समाज, देश व विश्व समुदाय लाभांवित हो। शोध के लिए व्यापक सोच के साथ-साथ विभिन्न पहलुओं को स्वीकार करने की क्षमता भी एक शिक्षक व शोधार्थी में होना आवश्यक है। प्रधानमन्त्री श्री नरेंद्र मोदी की ओर से देखे गए आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने के लिए हम सभी को एक-दूसरे का साथ देने और मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
शोध कार्य केवल प्रयोगशालाओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि एक सामान्य सा किसान भी अपने अनुभव से शोध के नए आयाम प्रस्तुत करता है। यह विचार हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.सी. कुहाड़ ने भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद् (आईसीएसएसआर), नई दिल्ली; स्टूडेंट फॉर होलेस्टिक डेवलपमेंट ऑफ ह्यूमेनिटी (शोध) के सहयोग से ‘शोध प्रविधि‘ पर केंद्रित ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यशाला के समापन सत्र में अपने अध्यक्षीय भाषण में व्यक्त किए। कुलपति ने इस अवसर पर कहा कि रिसर्च किसी डिग्री विशेष की मोहताज नहीं है। सामाजिक जीवन में विभिन्न स्तरों पर हमारे समक्ष ऐेसे अनेको उल्लेखनीय उदाहरण उपलब्ध हैं जोकि विशेषज्ञता के मोर्चे पर शोध को एक नई राह दिखा सकते हैं। इस आयोजन के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुए प्रतिष्ठित समाजसेवी श्री सुनील अम्बेकर ऐसे ही प्रेरणा के पुंज हैं जोकि सालों से युवा शक्ति को एक नई दिशा, एक नई राह दिखा रहे हैं और भारत निर्माण में जुटे हैं।
प्रो. कुहाड़ ने इस अवसर पर अनेकों उदाहरणों के माध्यम से आपसी समन्वय, सहयोग व साझेदारी के साथ समाज, देश व विश्व समुदाय के हित में उल्लेखनीय शोध कार्य के लिए प्रतिभागियों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि शोध कार्य उपयोगी होना चाहिए और उसमें विशेषज्ञता नजर आनी चाहिए। इनोवेटिव रिसर्च के लिए बेहद जरूरी है कि आप इनोवेटिव सोच व आइडिया को लेकर आगे बढ़ें। हमेशा सहयोग, सलाह व दूसरों के अनुभवों से सीखने के लिए तैयार रहें। अच्छे रिसर्च के लिए जरूरी है कि आप विभिन्न पक्षों को स्वीकारने के लिए तैयार हों।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजकुमार ने कोरोना माहमारी के बीच उपलब्ध विभिन्न संभावनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि यह ऐसा समय है जिसने हमें फिर से सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। हमें अपनी मनोवृत्ति का बदलते हुए वर्जुअल लेब्स की ओर रूख करना होगा। आज ऐसे अनेको रिसर्च पोर्टल उपलब्ध हैं, जिनकी मदद से हम अच्छे शोध कार्य कर सकते हैं। हमें इन विकल्पों कीे ओर ध्यान देना होगा।
प्रो. राजकुमार ने इस मौके पर कोरोना काल के दौरान आयोजित होने वाले वेबिनार आदि का उल्लेख करते हुए कहा कि इस मुश्किल वक्त में इन आयोजनों का भरपूर लाभ उठाना चाहिए। इसके सकारात्मक पक्ष को अपनाने की जरूरत है। अंत में प्रो. राजकुमार ने सभी प्रतिभागी को सहयोगी रवैया अपनाते हुए काम करने के लिए प्रेरित किया और कहा कि इसी रवैये के माध्यम से हम समाज व देश हित में रिसर्च कर पायेंगे।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित आईसीएसएसआर के उप-निदेशक डॉ. अभिषेक टंडन ने प्रो. आर.सी. कुहाड़ के नेतृत्व में हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में जारी प्रगति की सराहना की और कहा कि उन्हें भरोसा है कि प्रो. कुहाड़ विश्वविद्यालय को उपलब्धियों की नई बुलंदी तक ले जायेंगे। डॉ. टंडन ने रिसर्च को केवल आवश्यक प्वाइंट्स तक सीमित तक न रखते हुए समाज व देश हित को ध्यान में रखने के लिए प्रेरित किया। साथ ही साथ उन्होंने वेबिनार आदि आयोजनों में सामान्य शिष्टाचार के पालन के लिए भी प्रतिभागियों को प्रेरित किया। इसी क्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डी.पी.एस. वर्मा ने इस आयोजन को प्रतिभागियों के लिए बेहद उपयोगी बताया और कहा कि मैंने भी इस कार्यशाला से कई नए पक्षों को जाना है। उन्होंने विभिन्न सत्रों में विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुत किए गए अलग-अलग पक्षों का भी विस्तार से उल्लेख किया।
इससे पूर्व में ‘शोध‘ हरियाणा के राष्ट्रीय प्रभारी डॉ. आलोक पांडे ने रिसर्च के महत्त्व पर प्रकाश डाला और बताया कि यह किस तरह से उपयोगी है। उन्होंने कहा कि भारत के संदर्भ में यहाँ के सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक स्वरूप को जाने बिना शोध कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न कर पाना संभव नहीं है। डॉ. आलोक पांडे ने इस अवसर पर कहा कि शोध समाज की बेहतरी के लिए होना चाहिए। इसके पश्चात हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोध अधिष्ठाता प्रो. सतीश कुमार ने शोध के महत्त्व पर अपने विचार व्यक्त किए और बताया कि किस तरह से उल्लेखनीय शोध कार्य के लिए अंतर्विषयी सोच के साथ काम करने की जरूरत है। इससे पूर्व इस कार्यशाला के संयोजक डॉ. आनन्द शर्मा ने कार्यशाला की रिपोर्ट प्रस्तुत की और बताया कि इस आयोजन में देश-विदेश के शिक्षण संस्थानों के 3500 से अधिक प्रतिभागियों पंजीकरण कराया। उन्होंने बताया कि इस साप्ताहिक कार्यशाला में 14 विभिन्न सत्रों का आयोजन किया गया। जिसमें इंट्रोडेक्शन ऑफ रिसर्च, रिसर्च मेथोडोलॉजी, रिसर्च की मूल अवधारणाएँ, प्रश्नावली का निर्धारण, एसपीएसएस के प्रयोग आदि से प्रतिभागियों इनके महत्त्व व व्यावहारिक प्रयोग से अवगत कराया गया। उन्होंने बताया कि इस ऑनलाइन कार्यशाला में दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डी.पी.एस. वर्मा, प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राकेश पांडे व प्रोफेसर जी.पी. सिंह; इहबास दिल्ली के डॉ. सी.बी. त्रिपाठी, हिमाचल केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विशाल सूद, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के डॉ. पी.एस. पुंडीर, पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर प्रशांत गौतम व डॉ. नीरज सिंह तथा हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर उम्मेद सिंह, डॉ. रणबीर सिंह, डॉ. रंजन अनेजा, डॉ. अजय पाल शर्मा व डॉ. अजय कुमार विशेषज्ञ के रूप में इस कार्यशाला में सम्मिलित हुए।
समापन सत्र का संचालन कार्यशाला के सह-संयोजक डॉ. अजय पाल शर्मा ने किया और इस मौके पर ‘शोध‘ हरियाणा के राहुल गोयत सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रतिभागी व हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, शिक्षक, शोधार्थी व विद्यार्थी ऑनलाइन माध्यम से उपस्थित रहे।