यह एक विचारणीय प्रश्न है अगर पुलिस ही न्याय कर देगी फिर न्यायालय व्यवस्था की जरुरत ही क्या है देश को
आक्रोश के वशीभूत होकर के आज भीड़तंत्र के निर्णय पर हमलोग जश्न ज़रूर मना रहे हैं परन्तु दीर्घकाल में यह हमारे क़ानून और विधि व्यवस्था पर एक अनसुलझा प्रश्न भी खड़ा करता है जिसके बारे में हमें सोचना होगा नहीं तो पूरा देश तबाही के मुँह में समां जायेगा
भीड़तंत्र और अतिवाद का बढ़ता प्रभाव किसी भी तरह से हो उसका महिमामंडन होना इस बात को दर्शाता है कि कानून व्यवस्था में कहीं न कहीं खामी तो है और जब इस भीड़तंत्र का सहारा पुलिस महकमा ही ले ले तो शायद स्थिति और भयाबह ही होगी।
आज देश में जिस प्रकार से महिला उत्पीड़न की घटनाओं का जोर बढ़ा है कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से असम तक शायद ही ऐसा कोई दिन होगा जिस दिन रेप जैसी घिनौनी कृति ना होती हो और विगत सात आठ सालों में तो इसकी बाढ़ सी आ गयी है।
हम सबको याद होगा देश की राजधानी में विगत 7 साल पहले एक गैंग रेप की घटना हुई थी जिसने समाज के हर एक वर्ग को शर्मसार कर दिया था तथा उसके कारण पूरे राजधानी में हर एक गली मोह्हले से लेकरके सड़क तक जनमानस के अंदर ऐसा आक्रोश था और क्यों न हो आखिर घटना ही कुछ ऐसी थी। परन्तु सात साल बीत गए और तारीख पर तारीख का दौर चलता रहा चलता रहा लेकिन जो अपराधी थे वो आराम फ़रमाते रहे और जाहिल सरकार व् लचर कानून प्रणाली ने कहा तो बहुत कुछ लेकिन किया कुछ नहीं। नतीजन वो माँ विगत सात सालों से केवल और केवल कोर्ट का चक्कर ही लगाती रही। यह घटनाक्रम लोगो के जेहन से विस्मृत ही होने वाला था कि कठुवा उन्नाव और हैदराबाद में भी कुछ ऐसी ही जघन्य अमानवीय कृत्यों को कुछ असामाजिक तत्वों ने अंजाम दे दिया।
आखिर कब तक ऐसा होता रहेगा यह एक यक्ष प्रश्न है ?
हैदराबाद में एक महिला पशु चिकित्सक के साथ यौन उत्पीड़न के बाद ज़िंदा जलाने की घटना और उसके कुछ दिन बाद ही उन्नाव में एक लड़की जो कोर्ट जा रही थी उसके ऊपर केरोसिन डालकर जलाया जाना, अलवर में बच्ची से रेप की घटना आखिर कैसे असमाजिक तत्वों के अंदर इतनी कुत्सित साहस घर कर जा रही है जो वो इस तरह के अमानवीय घटनाओं को अंजाम दे रहे है। जाहिर सी बात है जो निति निर्धारक है उनसे लेकर कानून व्यवस्था के तथाकथित रक्षक ही असली भक्षक है इस बात जितना जल्दी समझ लिया जायेगा उतना ही जल्दी इसका निराकरण भी होगा।
सोचिये आखिर वो पुलिस कहां थी जिसने FIR लिखने में भी देरी करी थी परन्तु वही पुलिस बहुत बढ़िया इसलिए हो जाती है क्योंकि जस्टिस डिले जस्टिस डिनाई ने हमारे समूर्ण व्यवस्था को अपने जाल में ग्रसित कर लिया है। जिस देश की न्यायपालिका खुद अपने न्याय के लिए प्रेस कन्फ्रेस करती फिरती है जो सात सालों से पाक्सो एक्ट के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट बनवा रही थी वो कोर्ट कहाँ है???
आखिर व्यवस्था और सरकार की क्या जिम्मेदारी है। यह प्रश्न उन सभी जन प्रतिनिधियों के मुँह पर तमाचा है जो इस व्यवस्था के हिस्से हैं तभी तो हम भीड़ के हाथों इंसाफ़ का जश्न मनाने लगते हैं. वो पुलिस जिस पर कोई कभी भरोसा नहीं करता, वो भरी रात में चार निहत्थे लोगों को मार डालती है. क्यों? क्योंकि ऐसे लोग रहें या ना रहें किसी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता वो अपराधी थे या नहीं थे अगर होते तो भी उनकी वही सजा होती और अगर असली अपराधी वो नहीं कोई और था तो वो कलंक फिर से अपनी करतूतों से समाज को लज्जित और अपमानित करेगा यह बात भी सोचने की है। और वाकई में इतनी न्यायप्रिय पुलिस है तो फिर अति उत्साह से हम उनका अभिनंदन करते है और न्यायपालिका को अविलम्ब समाप्त करने की सलाह देते है।
अगर भीड़तंत्र कानून ही सही है तो रसूकदार लोगों पर यही कार्यवाही क्यों नहीं करती आज सत्ता का पोषित व्यक्ति अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ ले रहा होता है और पीड़िता को जेल यह भी तो इस व्यवस्था का ही एक नमूना है हम इसको कैसे भूल सकते है। हैदराबाद पुलिस की कार्यप्रणाली का हम अति आक्रोश में तो समर्थन कर सकते है लेकिन कानून व्यवस्था को ताक पर रख कर नहीं। क्योंकि आप सबने रेयान स्कूल कांड के बारे में तो सुना ही होगा जहाँ गुरुग्राम के पुलिस इंक्वायरी में कंडक्टर को अपराधी मान लिया गया था और अपराधी बनाने वाली यह पुलिस ही थी परन्तु जब सघन जांचोपरांत के उपरांत 11 वी में पढ़ने वाले बच्चे का अपराधी सिद्ध होना भी कुछ कहता है जो की पूर्णरूप से इसी पुलिस व्यवस्था का हिस्सा है , यह भी हमें यह भूलना नहीं चाहिए।