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स्वास्थ्य सुरक्षा योजनाओं से छूटे ग्रामीण इलाके- जहाँ कोई भी स्वास्थ्य जांच केंद्र नही है

स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत का रिकार्ड बहुत ही खराब रहा है। भारत अपनी जीडीपी का सिर्फ 1% हिस्सा ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है। जो बाकी देशों के मुकाबले बहुत कम है। अच्छे अस्पताल गरीब-ग्रामीण लोगों की पहुंच से बहुत दूर है।

सत्ता में आते ही बहुत सी योजनाओं की ज़ोरदार घोषणा करने वाले भाजपा नेता तथा देश के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ”प्रधान मंत्री स्वस्थ्य सुरक्षा  योजना ” के नाम की एक नई योजना की शुरुआत की।

इसका मुख्य उद्देश्य सारे देश में पूर्ण रूप से स्वास्थ्य सम्बधित सुविधाओं को उपलब्ध करवाना ताकि देश का नागरिक स्वस्थ्य रूपी समस्याओं के इर्द गिर्द भी न रहे। योजना को मार्च 2006 में मंजूरी दे दी गयी थी।

योजना तीन चरणों में चलनी थी
1.प्रथम चरण-इसके प्रथम चरण में देश के 10 विभिन्न राज्यों में 6 अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान (ऐम्स) तथा 13। मेडिकल संस्थानों का उन्न्यन है।

2.दूसरा चरण- इसके दूसरे चरण में सरकार ने दो और संस्थानों जिसमे पश्चिम बंगाल और उत्तरप्रदेश राज्य के संस्थान है। साथ ही इनमें छह  अन्य मेडिकल संस्थानों को मंजूरी दी है।

3.तीसरा चरण – तीसरे चरण में विश्विद्यालय संस्थान जैसे कार्यो का प्रस्ताव है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि यह योजना देश में एक नई शक्ति पैदा करेगी। लोगों को अच्छा स्वास्थ्य तभी मिलेगा जब देश में स्वास्थ्य केंद्र पर्याप्त मात्रा में होंगे।

वही कुछ ग्रामीण इलाके ऐसे भी है जहाँ अभी तक कोई भी स्वास्थ्य केंद्र नहीं है।  सूत्रों की जानकारी से पता चला है कि जयापुर गाँव में अभी तक कोई भी स्वास्थ्य जांच केंद्र नही है। आपको बता दें कि ये वही गाँव है जिसे “आदर्श ग्राम योजना” के तहत प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद गोद लिया था। जयापुर के लोग अभी भी स्वास्थ सम्बन्धी समस्याओं के लिए जयापुर से 4 कि०मी का लंबा सफर तय करके महगावँ जाते है।

लोगों का कहना है कि आपातकालीन स्तिथि जैसे प्रसव आदि के दौरान गाँव से दूर लगभग 4 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। इस दौरान मरीज़ की हालत बिगड़ने का खतरा निरंतर बना रहता है।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत का रिकार्ड बहुत ही खराब रहा है। भारत अपनी जीडीपी का सिर्फ 1% हिस्सा ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है। जो बाकी देशों के मुकाबले बहुत कम है। अच्छे अस्पताल गरीब-ग्रामीण लोगों की पहुंच से बहुत दूर है।  महँगे इलाज होने की वजह से 3 से 5% तक की आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यतीत कर रहे है।

सूत्रों की माने तो गरीब ग्रामीण लोग अपनी सेहत पर खर्च तक़रीबन उधार या सम्पत्ति बेच के ही करते है। लोगों का कहना की देश के हर गांव में कम से कम 1 यां 2 छोटे अस्पताल होने ही चाहिए जिस से लोगों को मूल उपचार की सुविधा आसानी से उपलब्ध हो सके।

ऐसे में स्वास्थ्य सम्बन्धी योजनाओं से देश के आम नागरिकों के साथ साथ गरीब और ग्रामीण परिवारों को कितना लाभ हुआ है कुछ कहा नही जा सकता।  लेकिन हम कह सकते है कि जब तक पिछड़े एवं ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य की पुख्ता सुविधा नही पहुँची तब तक देश की तरक्की का मार्ग हमेशा डगमगाता रहेगा।


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