आखिर क्यों बन गया 25 जून 1975 का दिन देश के लिए “काल दिवस”? क्या है इंदिरा के आपातकाल की पूरी कहानी।
भारत में लोगों का दमन और लोकतंत्र का अनादर होता रहा। देश की गांव,गलियों और सड़कों में तबाही का नंगा नाच शुरू गया था, विकास के नाम पर लोगों के घरों पर बुल्डोज़र चलवाए गए,पुरुषों की जबरन नसबंदी ने लोगों के दिलो दिमाग में सरकार के खिलाफ नफरत का ज़हर भर दिया था। ये आज़ाद भारत का सबसे बुरा दौर था। सैंकड़ो लोगों के सपने जले ,घर जले , लोग जले ,लेकिन ये सब रुका नहीं।
भारत का इतिहास सदियों पुराना रहा है यहां कई हुकरान आये और चले गए लेकिन इसकी अखंडता को तोड़ नहीं सके। क्योंकि समय समय पर इस मिटटी से जन्मे सपूत उनके सामने फौलादी चट्टान बनके खड़े हो गए । फिर वो राणा प्रताप हो महात्मा गाँधी या फिर चंद्रशेखर। भारत की अखंडता को हमेशा ही बरक़रार रखा गया है।
इस देश के इतिहास मे ऐसी कई तारीख़े है जो भुलाने से भी नहीं भूली जा सकती।
ऐसी ही एक तारीख है “25 जून 1975”. जिसे काला दिवस के रूप में भी याद किया जाता है। इसलिए आज हम जानेगें कि ऐसा क्या हुआ था 25 जून को, जिसकी वजह से यह दिन भारतीयों के लिए काला दिन बन गया।
स्वतंत्र भारत के इतिहास ऐसा पहली बार हुआ था। देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सारे देश में आपातकाल लागू कर दिया था। 25 जून 1975 को भारत की राजधानी दिल्ली से करीब 8.30 बजे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सीधा राष्ट्रपति भवन पहुंची और राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली से देश में आपातकाल लगाने की बात की और उनके हस्ताक्षर से 25-26 जून 1975 की रात को देश में आपातकाल लागू कर दिया गया।
संविधान की धारा 352 के तहत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वयं इस आपातकाल का एलान रेडियो पर किया। आज़ाद भारत में ऐसा पहली बार हुआ था कि जनता के बुनियादी अधिकार तक उनसे छीन लिए गए थे।
आखिर क्यों लगाया गया आपातकाल ??
12 जून सन 1975 !
ख़बरों की माने तो पता चलता है कि इस सारे घटनाक्रम की शुरुआत 12 सन जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट से हुई। दरअसल उस दिन तत्काल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का रायबरेली चुनाव को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में फैसला आना था। इंदिरा गाँधी को पूरा विश्वास था कि फैसला उन्ही के पक्ष में आने वाला है
लेकिन जस्टिस जगमोहन की कलम ने उनके सारे इरादों पर पानी फेर दिया। फैसले में इंदिरा गांधी की चुनावी जीत को अवैध करार देते हुए उनसे लगभग 6 साल तक के मताधिकार छीन लिए गए थे अब उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द हो गयी थी। जगमोहन नहीं जानते थे कि उनके इस फैसले से भारतीय लोकतंत्र का भविष्य खतरे में पड़ने वाला है।
राजधानी दिल्ली में हाहाकार मच गया था। उधर गांधी जी की नगरी गुजरात से आयी एक और खबर ने इंदिरा की सत्ता को पूर्णता खतरे में डाल दिया था गुजरात के विधानसभा चुनावों में जय-प्रकाश नारायण और मोरार जी देसाई के संघर्षों ने इंदिरा गांधी की सरकार को उखाड़ फेंका था। राजधानी दिल्ली में हर रोज़ लाखों की तादाद में भीड़ जुटने लगी थी। हर दिन कांग्रेस नेताओं के भाषण होते। अपने एक भाषण में देवकांत जी ने यहाँ तक कह दिया था कि “इंडिया इस इंदिरा एंड इंदिरा इस इंडिया”
दूसरी ओर बिहार में जय-प्रकाश जैसे दिग्गज बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ सीना ताने खड़े थे। वो जान चुके थे कि किराये की भीड़ भी अब इंदिरा को नहीं बचा सकती। अदालत के फैसले के बाद कांग्रेस के कुछ युवा नेता जैसे चंद्रशेखर,कृष्णलाल,मोहन-धारिया,रामधन आदि ने इंदिरा की संसदीय बैठक का बहिष्कार कर दिया था। कांग्रेस हर हल में सत्ता में अपना दबदबा चाहती थी.
लेकिन दूसरी ओर जय प्रकाश की अगुआई में था बागी विपक्ष। जय प्रकाश ने अपने जन सैलाब के साथ रामलीला चौंक में तानाशाही सरकार के खिलाफ अहिंसात्मक आंदोलन की शुरुआत कर दी। बढ़ती भीड़ शायद इंदिरा की को कमज़ोर कर रही थी ,इसलिए 25 जून 1975 की रात को राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली से आपातकाल के दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर लेकर धरा 352 के तहत देश में आपातकाल लागू कर दिया गया।
आपातकाल के पीछे कारण आंतरिक गुटों से खतरा बताया गया। इंदिरा गांधी ने स्वयं इस आपातकाल का एलान सुबह रेडियो पर किया था। देश का लोकतंत्र अब केंद्र सरकार का गुलाम हो गया था। संविधान की धारा 21 तक को निलंबित कर दिया गया था जिसके तहत नागरिकों के बुनियादी अधिकार तक छीने जा चुके थे।
आपातकाल आदर्श और चंद्रशेखर –
25 जून 1975 की रात, देश में आपातकाल लागू हो गया था। बताया जाता है कि इस आपातकाल की खबर स्वयं कांग्रेस के नेताओं को भी नहीं थी। 26 जून की सुबह जब तक इंदिरा गाँधी देश को आपातकाल के लिए खबर करती, उससे पहले ही आधी रात को जय प्रकाश के साथ साथ तमाम विपक्ष के नेताओं को कारावास के पीछे भेजा जा चुका था। हैरानी की बात ये थी की देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर जी जोकि कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे उन्हे भी गिरफ्तार कर लिया गया था। वो एकमात्र ऐसे नेता थे जो इंदिरा की पार्टी के होकर भी जेल गए। शायद सरकार भाँप गयी थी कि सत्य की राह के व्यक्ति ही उनके लिए खतरा बन सकते है।
जब उन्हें हिरासत में लिया गया तो उन्होंने बस यही बात कही थी “विनाश काले विपरीत बुद्धि “ इसके बाद भारत में लोगों का दमन और लोकतंत्र का अनादर होता रहा। देश की गांव,गलियों और सड़कों में तबाही का नंगा नाच शुरू गया था, विकास के नाम पर लोगों के घरों पर बुल्डोज़र चलवाए गए,पुरुषों की जबरन नसबंदी ने लोगों के दिलो दिमाग में सरकार के खिलाफ नफरत का ज़हर भर दिया था। ये आज़ाद भारत का सबसे बुरा दौर था। सैंकड़ो लोगों के सपने जले ,घर जले , लोग जले ,लेकिन ये सब रुका नहीं।
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी ने अपनी जीवन “ज़िंदगी का कारवाँ” में इस आपातकाल और अपनी जेल यात्रा का वर्णन कुछ इस प्रकार किया है वे कहतें है कि
25 जून की रात वे दयानंदन सहाय से जयप्रकाश के भाषण का सारांश सुनकर करीब रात 12 तक सोये। और करीब साढ़े तीन बजे उन्हे फोन पर जेपी की गिरफ्तारी की खबर मिली। तो वे सीधा उनके पास गांधी प्रतिष्ठान पहुंचे। पता चला कि पुलिस उन्हे पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने ले जा रही है इसलिए वे भी उनके पीछे पीछे वहीँ चल दिए। वहां जाकर पता चला कि उनके खिलाफ भी वारंट है और उन्हे दूसरी जगह की जेल ले जाया गया।
अपनी डायरी में उन्होंने लिखा भी है कि “यह विडंबना ही है कि जिनको सरकार में पहुंचाने के लिए मैंने कोशिश की,वही मुझे जेल भेज रहें हैं , और जिनको हराने के लिए कोशिश की ,वे मेरी जय जयकार कर रहे हैं” । “मैंने चुनावों में कांग्रेस को विजयी बनाने के लिए पूरी कोशिश की थी और जिन विरोधी पार्टियों को हराने के लिए काम किया ,वे कारागार में मेरे साथ हैं”।
कहा जाता कि गिरफ्तार होने से पहले चंद्रशेखर जी के पास दो रास्ते थे खुद के बचाव के लिए सत्ता का साथ या फिर अपने आदर्शों के बचाव के लिए कारावास। चंद्र-शेखर जी ने अपने आदर्शों को जीवित रखा और जेल का रास्ता अपनाया।
चंद्रशेखर की जिंदगी उन सवालों के लिए आरक्षित रही जिनसे सत्ता असहज महसूस करती थी। उनकी मानसिकता उन्हे गलत के खिलाफ निर्भय होकर बोलने का साहस देती थी। इसी मानसिकता के साथ चंद्रशेखर जी अपनी पार्टी की सर्वोच्च नेता इंदिरा गांधी से भी लड़े और जयप्रकाश नारायण संपूर्ण क्रांति का आंदोलन का भी चलाया।
आपातकाल राष्ट्रिय कांग्रेस और जयप्रकाश
आपातकाल के दौरान इंदिरा गाँधी को लगता था की देश की जनता पर अब उनका पूरी तरह से नियन्त्र बन चुका है लेकिन असल कहानी कुछ थी।
लगभग 19 महीने तक देश ने ये मंज़र सहा। और 19 महीने जय-प्रकाश ,चंद्रशेखर जैसे व्यक्तित्व सलाख़ों के पीछे ज़ुल्मों का शिकार होते रहे। अपनी 19 महीने की जेल यात्रा पूरी करने के बाद 1977 में जब चंद्रशेखर जी बहार आये तो उन्होंने अपने उसी अंदाज़ और गौरवपूर्ण व्यक्तित्व से एक ही बात कही। उन्होने कहा
“मुझे कैद करो या मेरी जुबां को बंद करो,
मेरे सवाल को बेड़ी कभी पहना नहीं सकते”.
यानी ये बात साफ़ हो गयी थी कि 19 महीने की क़ैद भी चंद्रशेखर जैसे दिग्गज का होंसला नहीं तोड़ पाई है। जयप्रकाश 19 जून को आज़ाद भारत का काल दिवस बताते है। सलाख़ों से बहार आने के बाद भी जयप्रकाश,चंद्रशेखर जैसे दिग्गज कहाँ हार मानने वाले थे।
1977 के चुनाव के दौरान जयप्रकाश जी ने चंद्रशेखर के साथ मिलकर फिर इंदिरा के खिलाफ अहिंसा आंदोलन शुरू कर दिया और राजनीती में खुले आम चुनती दे दी। इंदिरा गाँधी भ्रम में थी कि सत्ता उनके इशारों की गुलाम है जनता पर उनका हक़ है। उन्हे लग रहा था कि वे बहुमत विजय होंगी , लेकिन 1977 के चुनाव परिणाम ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया।
परिणाम साफ़ था। जयप्रकाश की अगुआई में जनता पार्टी ने इंदिरा की सत्ता को उखाड़ फेंका था। देश का शोषित हुआ लोकतंत्र फिर अपने अस्तित्व आ गया था। शायद कभी जे०पी ने भी नहीं सोचा था कि वे इंदिरा गाँधी से विजय होंगे। चंद्रशेखर जी अक्सर उन्हे कहते थे कि समाजवाद पराजित नहीं हो सकता ,काली रात के बाद ही सूरज अपने प्रचंड रूप में सामने आता है और वो 1977 में जनता के बल से आया था। तानाशाही हार चुकी थी और लोकतंत्र एक बार फिर विजय होकर मुस्कुरा रहा था।
आज भले ही इस बात को 44 वर्ष से अधिक का समय हो गया है लेकिन आज भी 25 जून को देश “काल दिवस” के रूप में याद करता है और ईश्वर से शायद प्रार्थना भी करता है कि भविष्य में कभी भी देश के लोगों और लोकतंत्र ऐसी दुर्गति ना हो।
Great piece of knowledge.
Excellent
Osm article… 👌👌👌
Awsm article….. 👌👌👌👌
Wonderful article, congratulations to writer, keep up the good work
bookmarked!!, I love your blog!
Nice article keep it up !!!!
Writing A Descriptive Essay
Essay writing has always been a part of most university and college curriculum. Hello , i am Bily , i have a project or a research concerning responsibility in academic writing i really need your help since i have no idea what to include in my project and i need more information and details about this topic (responsibility in AW) i need it for tonight please help me. thank you in advance.,..
Great Article by thejanmat.com .. Keep it up
आपातकाल की पूरी कहानी तसल्ली से बयाँ लेख।निःसंदेह आपातकाल ने भारतीय लोकतंत्र के समक्ष एक चुनौती पेश की थी, निरंकुश सत्ता कई बार ऐसे कदम उठाती है लेकिन उनका प्रतिरोध कारण वाले भी उस दौर में उतने ही मजबूत इच्छा शक्ति वाले थे। इस लिहाज से आपने उस दौर को उसकी पूरी संपूर्णता में व्यक्त किया है। साधुवाद।
Like!! Thank you for publishing this awesome article.