बिहार पे बरसा ‘अज्ञात बुखार – चमकी बुखार’ का कहर ! अभी तक 150 से भी अधिक बच्चों की हुई मौत ! सवालों के घेरे में स्वास्थ्य व्यवस्था!
साल 2014 में इस बीमारी ने लगभग 86 बच्चों की सांसों को अपने नाम किया। साल 2015 में 11 बच्चे ,2017 में चार और साल 2018 में 11 बच्चों की मौत सिर्फ इसी बीमारी कारण हुई। और साल 2019 का ये आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

ख़बरों की सुर्ख़ियों से पता चला है कि बिहार राज्य में “अज्ञात बुखार चमकी बुखार ” का कहर कुछ इस तरह से टूटा है कि महज़ बीते 20 दिनों के अंदर ही मुज़फ़्फ़रपुर और आसपास के कुछ जिलों के लगभग 150 से भी अधिक बच्चे अपनी जान से हाथ धो बैठे है। जिसकी वजह से राज्य के लोगों की देश की स्वास्थ्य व्यवस्था से नाराज़गी लगातार बढ़ती जा रही है। लोगों ने स्वास्थ्य व्यवस्था के खिलाफ अपना आक्रोश प्रकट करते हुए राज्य के सरकारी एसकेएमसीएच अस्पताल में दौरा करने आए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को काले झंडे दिखाए। लोगों के इस बढ़ते हुए आक्रोश को देखते हुए राज्य के अधिकतर अस्पतालों की राजकीय सुरक्षा भी बढ़ा दी गयी है।
सूत्रों के द्वारा मिली जानकारी के अनुसार पता चला है कि श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज व अस्पताल (एसकेएमसीएच) के डॉक्टर सुनील कुमार शाही ने बताया कि इस जानलेवा बुखार से पिछले करीब तीन सप्ताह में 85 बच्चों की जान चली गई और यह सिलसिला रुक नहीं रहा है,अभी बीते रोज़ ही सुबह इससे प्रभावित 19 बच्चों को ‘एईएस’ में भर्ती कराया गया है। उन्होंने कहा कि इसके उपचार के लिए एम्स पटना से मदद के लिए कुछ डॉक्टर और छह स्पेशलिस्ट नर्सों को वेंटिलेटर सुविधा के लिए बुलाया गया है।
आपको बता दें कि साल 1993 में भी एक बार ऐसे ही बीमारी का मामला सामने आया था ,लेकिन इसका मूल कारण अभी तक किसी को भी पता नहीं चल पाया है। पटना में स्थित पीएमसीएच अस्पताल में भी पांच बच्चों की मौत का मामला सामने आया है। केजरीवाल अस्पताल के भी ऐसे ही हालात बताये जाए रहे है। वहां के अधिकारियों से बात करके पता चला है कि वहां भी बीते कुछ ही रोज़ों में तक़रीबन 20 से अधिक बच्चे अपनी जान से हाथ धो बैठे है। और ये आंकड़ा रुकने का नाम ही नहीं ले रह है।
बात अगर आंकड़ों के हवाले से की जाये तो पता चलता है कि पुराने कुछ वर्षों से इस बीमारी ने बहुत बच्चों को अपने लपेटे में लिया है। बात अगर साल 2014 की करें तो साल 2014 में इस बीमारी ने लगभग 86 बच्चों की सांसों को अपने नाम किया। साल 2015 में 11 बच्चे ,2017 में चार और साल 2018 में 11 बच्चों की मौत सिर्फ इसी बीमारी कारण हुई। और साल 2019 का ये आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। एसकेएमसीएच और केजरीवाल अस्पताल में एईएस पीड़ित कई बच्चे हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि इस बुखार के लक्षण दिखने पर पहले वो अपने बच्चों को आसपास के अस्पतालों में दिखाने गए जहाँ उन्हें ढूंढ ढूंढ कर डॉक्टरों को लाना पड़ा , और बाद में उन्हे मुज़फ़्फ़रपुर के सरकारी अस्पताल एसकेएमसीएच ले जाने को कहा गया। लोगों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं पूरी तरह से ठप है। कईं जगह अस्पतालों की कमी है तो कईं जगह डॉक्टरों की। ना तो चिकित्सा सुविधा को सुधारा गया है और केंद्रों की। अगर मुज़फ़्फ़रपुर में अस्पताल की हालत आपको बताएं तो शायद आप भी एक पल के लिए सोचने पर मजबूर हो जाएंगे। यहाँ एक बेड पर तीन तीन बच्चों का उपचार किया जा रहा है।
दोस्तों हर साल मई-जून के गर्मी के मौसम में ये जानलेवा बीमारी मुज़फ़्फ़रपुर और उसके आसपास के क्षेत्र को अपना कहर ढाती है। और ये सिलसिला लगातार 25 सालों से चलता आ रहा है। जिसका अभी तक कोई भी समाधान नहीं निकाला गया है। गौरतलब की बात ये है कि हर बार मरने वालो की संख्या गिरती – बढ़ती रहती है लेकिन इस बीमारी का कोई हल नहीं निकलता।
मिली जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने बिहार राज्य में बेहतर संसाधन बनाने की बात कही है और पूरी सहायता देने का आश्वासन दिया है बिहार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पता कि सबसे अधिक बच्चों की मौतें “हाइपोग्लाइसीमिया” की वजह से हुईं है। और “हाइपोग्लाइसीमिया” एईएस की दर्जनभर बीमारियों में से एक है। अभी फिलहाल मुज़फ़्फ़रपुर एवं आसपास के क्षेत्रों से मच्छर एवं मक्खी के नमूनों का जायज़ा लिया जा रहा है जिसका अध्ययन भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद में किया जाएगा।
राज्य के साथ साथ देश की जनता के दिलो में भी स्वास्थ-व्यवस्था के खिलाफ खासा आक्रोश है लेकिन जिस तरह केंद्र सरकार बेहतर संसाधन और पूरी सहायता का वायदा किया है इससे उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही इस बीमारी का मूल कारण ढूंढ कर इसका कोई इलाज़ जाएगा जिससे बच्चों की बढ़ती जानहानियो की गति रुक जाएगी ।