100 करोड़ के बजट से 1 करोड़ पर पहुंच गयी वन बंधु कल्याण योजना,योजना के तहत केंद्रीय मंत्री भी परेशान है
देश में आदिवासी और जन-जातीय संख्या देश की आबादी से 16 % से 30 % तक की है। मौजूदा हालत में इनका विकास कितनी जल्दी होगा कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही इस समाज में लोगों समस्याओं को भी देखा जाएगा।
मोदी सरकार ने सत्ता की कार्यभार संभालते हुए आते ही जनता के विकास के लिए बहुत सी योजनाओं का शिलान्यास किया जिनमे कुछ योजनाएँ शहरी लोगों के लिए थी, तो कुछ ग्रामीण लोगो के लिए। ऐसे में देश में वन बंधु कल्याण योजना शुरू की गयी जिसका मुख्य उद्देश्य आदि-वासियों का व्यापक विकास था। योजना सबसे पहले गुजरात में वर्ष 2014 में शुरू की गयी। जिसमे आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र ,गुजरात आदि राज्यों के वन विकास नीति पर ठोस बल देना था । इसलिए सरकार ने प्रत्येक राज्य को 10 -10 करोड़ देने की घोषणा की।
योजना के मुख्य उद्देश्य –
1 . आदिवासी लोगो को निचले स्तर से ऊपर उठाना।
2 . जनजाति समूहों का विकास करना।
3 . इन सभी समूहों की सामाजिक , आर्थिक वृद्धि के लिए नए लक्ष्यों का चयन।
4 . आदि-वासियों को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार जैसी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध करवाना।
सरकार की तरफ से वर्ष 2014 -15 में लगभग 100 करोड़ की बड़ी लागत से योजना की शुरुआत हुई। मोदी सरकार का कहना है कि यह योजना देशभर में जन जातीय आबादी को जल, कृषि एवं सिंचाई, बिजली, शिक्षा, कौशल विकास, खेल एवं उनके सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण हाउसिंग, आजीविका, स्वास्थ्य, स्वच्छता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सेवाओं एवं वस्तुओं को मुहैया कराने के लिए संस्था-गत तंत्र के रूप में काम करेगी। जिससे आदि-वासियों व जन-जातीय लोगो का विकास होगा।
लेकिन मोदी साहब के वादों की हक़ीक़त कुछ और ही कह कर रही है। योजना की शुरूआत में सरकार के तरफ से जन-जातीय विकास के लिए लगभग 100 करोड़ की राशि आवंटित की गयी थी। लेकिन सूत्रों द्वारा मिली जानकारी से पता चला है कि बीते वर्ष 20017 -18 में मोदी सरकार की तरफ से यह बजट घटा दिया गया है। बजट में सोच से परे की भारी गिरावट आयी है। जानकारी से पता चला है कि सरकार द्वारा चुपचाप ही 100 करोड़ की बड़ी राशि के बजट को घटाकर सिर्फ 1 करोड़ रुपए का कर दिया गया है ।
बताया जा रहा कि वन बंधु कल्याण योजना के तहत काम हो रहा है। सरकार का कहना है कि यह सिर्फ टोकन राशि है अब योजना के तहत कितना काम हो रहा है इसकी जानकारी के लिए जब अलग अलग राज्यों की रिपोर्ट की ओर रुख किया गया तो पता चला कि 50 % उपयोगिता प्रमाणीकरण जमा ही नहीं हो सका है।
एक अन्य जानकारी के पता चला की स्वयं केंद्रीय मंत्री भी इस योजना से जुड़े सभी क्षेत्रों में ही एक बड़ी परेशानी का सामना कर रहें है।
इस बात को केंद्रीय मंत्री खुद भी मानते है उनका कहना है कि ” हमने सोचा था कि जो मॉडल गुजरात में इतनी सफल रही है, वैसी ही सफलता अन्य राज्यों में भी मिलेगी,लेकिन हमें निराशा हुई है.”
योजना के तहत कितना काम हुआ इसकी पूर्ण जानकारी नहीं मिल सकी है। योजना का बजट 100 करोड़ से 1 करोड़ तक कर दिया गया योजना के तहत केंद्रीय मंत्री भी परेशान है।
ऐसे में आदि-वासियों को योजना के अंतर्गत कितना लाभ हुआ है इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है। लेकिन आप लोग शायद समझ ही गए होंगे। देश में आदिवासी और जन-जातीय संख्या देश की आबादी से 16 % से 30 % तक की है। मौजूदा हालत में इनका विकास कितनी जल्दी होगा कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही इस समाज में लोगों समस्याओं को भी देखा जाएगा।