मानसून सत्र में प्रश्नकाल के सवाल पर विपक्ष की चुप्पी भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं ..
"प्रश्नकाल के मसले पर विपक्ष और कांग्रेस द्वारा स्पीकर के समक्ष अपनी आपत्ति नही दर्ज कराना संकेत कर रहा है कि इस निर्णय में विपक्ष सरकार के साथ खड़ी है"
2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने संसद के भीतर कहा था संसद में हमें बोलने नहीं दिया जा रहा है, उस पर टिप्पणी करते हुए मैंने लिखा था की मोदी का यह बयान हिटलर शाही वाला बयान है इनकी अगली तैयारी संसद को ही बंद करने की है क्योंकि दुनिया भर के थैली शाह और कारपोरेट जगत को अब लोकतांत्रिक संसद की आवश्यकता नहीं है मेरी यह टिप्पणी आज भी मेरे टि्वटर हैंडल पर मौजूद है
14 सितंबर से संसद सत्र शुरू हो रहा है लेकिन सरकार ने निर्णय लिया है इस सत्र में प्रश्नकाल नहीं होगा इसको लेकर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की मीडिया में भी इस पर जबरदस्त चर्चा हो रही है पर सवाल सिर्फ यह नहीं है कि सरकार ने क्या निर्णय लिया है बात यह भी है कि सरकार के इस मसौदे पर क्या विपक्ष भी उसके साथ खड़ा है?
वर्तमान सरकार पर पहले दिन से ही आरोप लगता है कि यह सरकार संविधान को ताक पर रखकर देश चला रही हैं लेकिन कांग्रेस की इस मसले पर रहस्यमई चुप्पी इस देश के आंतरिक लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है
मीडिया और सड़क पर विपक्ष सरकार पर यह लगातार आरोप लगा रहा है कि तानाशाही तरीके से वर्तमान सरकार देश को चला रही है वर्तमान सत्र में प्रश्नकाल न होने के सवाल पर क्या कांग्रेस को संवैधानिक और तकनीकी ज्ञान नहीं है?
क्या कांग्रेस के नेता इस बात को नहीं जानते हैं कि संसद के भीतर किसी मसले पर निर्णय लेने का अधिकार स्पीकर का होता है ?
लेकिन अब तक विपक्ष ने प्रश्नकाल के मसले पर स्पीकर के समक्ष अपनी आपत्ति को दर्ज नहीं कराया कांग्रेस को यह स्पीकर से पूछना चाहिए कि प्रश्नकाल के ना होने का निर्णय है वह सरकार और स्पीकर की सहमति से है अथवा प्रधानमंत्री ने स्वयं यह निर्णय ले लिया है
यदि यह स्पीकर के निर्णय से हैं तो विपक्ष को चाहिए कि ऐसा निर्णय क्यों लेना पड़ा है वह देश के सामने लेकर आए, और यदि यह सरकार का मनमाना पन है तो फिर विपक्ष को इस सत्र का ही बहिष्कार कर देना चाहिए क्योंकि यदि प्रश्न काल होगा ही नहीं तो फिर सदन के भीतर विपक्ष की भूमिका क्या बनती है ?
ऐसे में विपक्ष की अगर भूमिका को सदन के भीतर खत्म करने का प्रयास सरकार द्वारा किया जा रहा है तो विपक्ष को सड़क पर आना चाहिए और जनता के संसद में आना चाहिए यही एकमात्र तरीका है जिससे विपक्ष यह सिद्ध कर सकता है कि भारत के लोकतंत्र के भीतर उसकी पूरी आस्था है, सरकार के बी टीम के रूप में विपक्ष खेल नहीं रहा है