जब जब देश के ऊपर विपत्ति के काले बादल छाये हैं देश की महिलाओं ने अपने जेवर तक दान कर दिए
अतीत के पन्नों में इंडिया और स्त्रीधन का दान

देश के लिए अभी मुश्किलें लोग घरों में बंद है ये लॉक्डडाउन उनके भले के लिए ही है पर कोरोना ने देशभर में कहर मचा रखा है।
कोरोना एक बीमारी है जो संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आने से होती है।
इलाज का टीका अभी खोज में है फिलहाल इससे सावधानी से ही बचा जा सकता है।
सोशल नहीं फिजिकल डिस्टेंस जरूरी है ।
अपने छींक और खांसी का विशेष ध्यान रखे रुमाल का इस्तेमाल करें ताकि दुसरो को कोरोना के साथ साथ सर्दी जुखाम और वायरल से भी बचाया जा सके।
भीड़भाड़ वाली जगहों और समूह में इकट्ठा होने से बचे , सिर्फ अभी नहीं लॉक्ड डाउन के खुलने के बाद भी अगले 6 महीने ताकि इससे हम लड़ सके।
आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश कोरोना युद्ध लड़ रहा है और माता और बहनों ने अपने स्त्रीधन को देश को दान कर दिया था जब देश युद्ध में था। पुरानी पीढ़ी के लिए ये नई बात नहीं है पर नई पीढ़ी शायद ही इस अनसुने पन्नों को जानती हो जिसका जिक्र हमारे देश के प्रधानमंत्री ने किया, ऐसे में आज अतीत के उन पन्नों का जिक्र जरूरी हो जाता है जिसके बारे में प्रधानमंत्री बात कर रहे थे। ये वाक्या है 1962 के समय चीन के साथ भारत को ना चाहते हुए भी युद्ध में जाना पड़ा एक तरफ देश चीन से लड़ रहा था तो वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान की बदमाशियों की लगातार धमक बढ़ रही थी।
देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। देश भयानक आर्थिक मंदी में था , चीन से लड़ने में देश को जानमाल की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी, लोगों ने उस दौर में अपने घरों के दरवाज़े खोल दिये थे जिसकी जितनी हैसियत थी उस हिसाब से राष्ट्रीय सुरक्षा निधि में दान कर रहा था, क्योंकि देश को आर्थिक मदद के लिए संसाधनों को बढ़ाने की आवश्यकता थी। इंदिरा गांधी तब कांग्रेस की साधारण कार्यकर्ता की हैसियत से जगह-जगह घूम कर पैसे राष्ट्रीय कोष के लिए पैसे इक्कट्ठा कर रही थी , तब आजकल की तरह कोई सोशल मीडिया का जमाना नहीं था कि लोग घर बैठ कर इंटरनेट से ऑनलाइन ट्रांसफर कर सकें, और उस समय जनप्रतिनिधियों की हैसियत भी आज के जैसी नहीं थी उनकी जनता में बड़ा सम्मान था।
इसी क्रम में तब एक बार फण्ड इकट्ठा करने के दौरान इंदिरा गांधी 16 अप्रैल, 1965 को मुडारी गांव पहुँची, जैसा की गाँव वाले बताते है की इंदिरा को तौलने के लिए गांववालों ने एक दिन में 54 किलो चांदी इकट्ठा की इंदिरा को गांव के लोगों ने तराजू पर बैठाया और दूसरी ओर चांदी से भरा बोरा रख दिया, लेकिन चांदी कम पड़ गई , तो इस कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहे छविलाल पुरोहित ने ये समस्या गांव की महिलाओं को बताई। इसके बाद कई घरों की महिलाओं ने अपने गहने-जेवर उतारकर दे दिए। इस तरह करीब 2 किलो जेवर कुछ ही देर में इकट्ठे हो गए। इन्हें तराजू पर रखते ही दोनों पलड़े बराबरी पर आ गए।
एक बार आप सोच कर देखिये कैसा माहौल रहा होगा जब ज़िन्दगी भर संजोकर रखे गये जेवर कुछ ही देर में सिर्फ और सिर्फ देश के लिए देने को सैकड़ों हाँथ आगे आ गये । ये देश का प्यार ही है जो हमें जीने की ताकत देता है इसी क्रम में इंदिरा गांधी की भी एक फोटो नेशनल म्यूजियम के हवाले से देखी जा सकती है जब वो अपने हांथो की चूड़ियां और अन्य जेवर को राष्ट्रीय सुरक्षा निधि के दानपात्र में देते हुये दिख रही है। अतीत के पन्नों में ऐसे बहूत सारे किस्से दफन है समय आने पर उनका उल्लेख जरूरी हो जाता है।