पुलवामा,शहीदों पर राजनीती
प्रधान मंत्री नरेंद्र-मोदी ने अपनी बयान में कहा कि अगर देश के किसानों की मौत चुनावी मुद्दा है तो सैनिकों की शहादत क्यों नही है।
14 फरवरी 2019-जिला पुलवामा। जम्मू कश्मीर रियासत का वो हिस्सा, देश की सेना पर अब तक का सबसे बड़ा आत्मघाती हमला हुआ।जिसमे लगभग 40 से 50 केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के जवान शहीद हो गये। और दर्जनों की तादाद में घायल। हमला इतना बड़ा था के उसकी चपेट में आने वाली सेना की तमाम गाड़ियों के परखचे तक उड़ गए। हमले के कुछ देर बाद ही आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली और साथ ही सोशल मीडिया के जरिये उस आत्मघाती हमलावर आदिल की तस्वीर उसके नाम के साथ जारी कर दी। सारा देश सदमे में था, और जनता आक्रोश में।
कहा जा रहा की आतंकवादी लगभग 5 फरवरी से पहले ही इसकी चेतावनी दे रहे थे।लेकिन इस पर कोई ठोस बल नही दिया। नतीजा- देश के बहादुर सैनिकों को अपनी शहादत देनी पड़ी।आदिल नाम के आतंकवादी ने लगभग 200 से 300 किलोग्राम विस्फोटक अपनी गाडी से भरकर सेना के ज़ोरदार टक्कर मारी जिससे ज़ोरदार धमाका हुआ। धमाका इतना ज़ोरदार था कि सेना के वाहन के परखच्चे तक हवा में उड़ गए।
13 दिन बाद की कार्यवाही में सेना ने हवाई हमले से बालाकोट हवाई हमले से इस हमले का बदला ज़रूर लिया लेकिन पुलवामा के शहीदों का मसला नही सुलझाया गया।
मिली जानकारी से पता चलता है कि सरकार अभी तक इस बात का पता नही लगा पायी है कि लगभग 200 किलोग्राम का भारी विस्फोटक सेना के वाहनों के पास कैसे पहुँचा??
सूत्रों के मुताबिक़ पुलवामा के शहीदों की शहादत अब एक राजनीतिक रूप ले चुकी है।
भाजपा पार्टी ने देश में कई जगह शहीदों के नाम पर देश की जनता से वोट माँगे तथा अपनी पार्टी का भरपूर प्रचार किया।
जवाब में विपक्ष के कई नेताओं ने शहीदों के नाम पर वोट मांगने का पर आपत्ति जताई। अभी हाल ही में देश के प्रधान मंत्री नरेंद्र-मोदी ने अपनी बयान में कहा कि अगर देश के किसानों की मौत चुनावी मुद्दा है तो सैनिकों की शहादत क्यों नही है।
दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने भी अपने चुप्पी तोड़ते हुए मोदी जी के समर्थन में कहा कि अगर साल 1971 में पाकिस्तान विभाजन के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तारीफ़ हो सकती है तो पाकिस्तान के बालाकोट में हवाई हमले के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी नाकारा नही जा सकता।
सैनिकों की शहादत पर राजनीति तो हो रही है मगर ये कितनी सही है कितनी गलत बताना ज़रा मुश्किल होगा।
जिस तरह देश में चुनावी लहर दौड़ रही है देखना होगा देश कौन सा नया रूप लेता है।