पेड़ कटने और बढ़ते प्रदूषण की वजह से खतरे में पड़ रहा है पृथ्वी पर जन जीवन।
प्रदूषण आज विश्व की सबसे बड़ी चुनौती है, जिसके कारण पृथ्वी पर जीव-जन्तु, वनस्पति, सांस्कृतिक धरोहरों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। विभिन्न प्रकार का प्रदूषण विभिन्न प्रकार के जीवों एवं मानव जाति के लिये खतरे उत्पन्न करता है।
पर्यावरणीय प्रदूषण आज के समय में दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बन गया है। इससे धरती पर आज के समय में ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जो बढ़ते प्रदूषण से प्रभावित न हो रहा हो। जीव-जन्तु हों या फिर मनुष्य, प्रदूषण का ज़हर हर किसी को धीरे धीरे मौत की और ले जा रहा है। लगातार पेड़ो की कटाई से पृथ्वी का तापमान साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है जिससे धरती पर ग्लोबल वार्मिंग और अधिक बढ़ रही है,नतीजा हर रोज़ नयी किस्म की लाइ-लाज बीमारियाँ जन्म ले रही है।
क्या होता है प्रदूषण और पर्यावरण ??
वास्तव में हमारे चारों ओर प्राकृतिक संसाधनों से युक्त एक वातावरण है जिसमे वायु ,जल,खाद्य,भूमि, आदि सब मनुष्य अथवा बाकी अन्य जीव-जंतुओं के जीवन को एक सूत में बांधे हुए है ,जिससे प्रकृति का संतुलन भी सामान्य रूप से चलता रहता है। लेकिन बीते कुछ वर्षों से मानवीय गतिविधियों से प्रकृति अपना संतुलन खो बैठी है। जिस गति से मनुष्य द्वारा लगातार पेड़ काटे जा रहे है प्रदूषण दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। न तो वायु शुद्ध मिल रही है, और ना ही शुद्ध जल,ना शुद्ध खाध है और ना ही शुद्ध वातावरण।
प्रदूषण और इसके किस्म –
सामान्य शब्दों में कहें तो जब हमारे आस-पास के वातावरण में किसी भी प्रकार से कुछ ऐसे पदार्थ मिल जाते जो वातावरण को दूषित करते है तो वह दूषित वातावरण ही प्रदूषण कहलाता है आज के समय में मनुष्य द्वारा की गयी ऐसी कईं गतिविधियाँ है जो वातावरण को लगातार प्रदूषित करती जा रही है जिससे लगभग सारे प्राकृतिक संसाधनों में संतुलन का तंत्र बिगड़ सा गया है। और इस बढ़ते प्रदूषण का सबसे मुख्य कारण है लगातार हो रही पेड़ो की कटाई। पेड़ो की कटाई से वायु ,जल के अलावा भी ऐसे बहुत सी किस्म का प्रदूषण है जो हमारे वातावरण को लगातार विषैला बनाता जा रहा है जैसे वायु प्रदूषण ,जल- प्रदूषण, भूमि प्रदूषण , ध्वनि-प्रदूषण इत्यादि .
वायु-प्रदूषण और पेड़ पौधे-
मनुष्य हो पशु-पक्षी हों ,या फिर पेड़-पौधे सभी को स्वस्थ रहने के लिए सबसे पहले स्वच्छ वायु की आवश्यकता पड़ती है लेकिन आज के समय में साफ़ और स्वच्छ वायु का मिलना उतना ही मुश्किल ही जितना चलती नाव के भीतर पानी। अगर सिर्फ अपने देश भारत की ही बात करें तो यहां सड़को पर दौड़ते वाहनों की संख्या हर साल कईं प्रतिशत बढ़ जाती है। और उन्ही वाहनों से निकलते हुए धुंए से स्वच्छ वायु मिलने की आशंका और घट जाती है। बात यहाँ तक ही सीमित नहीं रहती , एक तरफ जिस गति से देश में कारखाने और उद्योग बढ़ रहें है तो वहीँ दूसरी ओर जंगलों व् अन्य पेड़ पौधों की लगातार कटाई हो रही है।, जिससे ,मनुष्य व् वन्य-जीवन पर भी बुरा असर पड रहा है। दूषित वायूं से देश में हर रोज़ ना जाने कितने ही लोग सांस की बीमारियों से अपनी जान गवा बैठते है। और आंकड़े लगातार बढ़ते ही जा रहें है।
वायु प्रदूषण की तीव्रता उसमें तैरते हुए जहरीली गैस के कणों के नाप पर निर्भर करता है। सामान्यत: 0.1 से 0.25 माइक्रोन के जहरीले कण होते हैं तथा 5 माइक्रोन से बड़े जहरीले कण सांस से संबंधित बीमारियों को उत्पन्न करते हैं। न्यूक्लियर विकिरण भी वायु प्रदूषण का एक सशक्त कारण है इसका उदाहरण हमें 31 दिसंबर 1984 को देखने को मिला जिसके अंर्तगत भोपाल के एक प्लांट से 42 टन तरल मिथाईल आईसोसाइनेट के वातावरण में रिसाव के कारण 60,000 लोग इसके शिकार हुए तथा उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, जिसका पूरा मुआवजा आज तक परिजनों को नहीं मिल पाया। इसके अतिरिक्त इससे प्रभावित लोगों की आँखों में जलन, त्वचा का अल्सर, कोलाइटिस हिस्टीरिया, न्यूरोसिस, कमजोर याददाश्त आदि विकार पाये गये। इसके अलावा इस समय में जिन गर्भवती महिलाओं ने बच्चों को जन्म दिया उनमें अत्यधिक असमानताएं पायी गई तथा कुछ मामलों में बच्चे जन्मते ही मर गये इसी प्रकार अभी हाल में जापान में 11 मार्च 2011 को आये भूकम्प (9 तीव्रता)/सुनामी के कारण फूकुशिमा में स्थापित 6 न्यूक्लियर रियेक्टरों में विस्फोट के कारण फैले रेडिएशन के द्वारा वायु तथा जल प्रदूषित हो गया है जिससे वहाँ के निवासियों के स्वास्थ्य के लिये खतरा पैदा हो गया है। रेडिएशन की तीव्रता इतनी अधिक है कि जापान में खाद्य पदार्थों, समुद्र के पानी, दूध आदि दूषित हो गये हैं। तथा इसके कारण जापान को 300 अरब डॉलर का नुकसान हुआ तथा मृतकों की संख्या 22000 तक पहुँच गई है।
जल प्रदूषण और जीवन-
हम सब जानते है की जीवन का दूसरा नाम जल है। लेकिन ये जल आज इतना दूषित हो गया है की आज के समय में देश की एक बड़ी आबादी सिर्फ दूषित जल पीने से अपनी जान से हाथ धो बैठती है। देश की नदियों के पानी की तुलना आज किसी ज़हर से की जाने लगी है क्योंकि बढ़ते कारख़ानों से निकलता हुआ गंदा ज़हरीला पानी सीधा नदियों में ही मिलाया जा रहा है जिससे मानव जीवन के साथ-साथ वन्य जीवन भी खतरे में पड़ रहा है इसके साथ ही जल प्रदूषण की यह समस्या जलीय जीवन के लिए भी एक गंभीर समस्या बन गयी है, जिसके कारण प्रत्येक दिन कई सारे जलीय जीवों की मृत्यु हो जाती है।
भूमि-प्रदूषण
औद्योगिक और घरेलू कचरा जिसका पानी में निस्तारण नही होता है, वह ज़मीन पर ही पड़ा रहता है जिससे भूमि की उपज की गुणवत्ता कम होती जाती है जिसका सीधा असर फसलों व् अनाज की कमी में दिखता है। यदि भूमि की उपज शक्ति कम होगी तो उसपर आसानी से अनाज उगना कठिन हो जाएगा। दूषित भूमि के कारण इसमें मच्छर, मख्खियां और दूसरे कीड़े पनपने लगते है, जोकि मनुष्यों तथा दूसरे जीवों में कई तरह के बीमारियों का कारण बनते है।
ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण लगातार बढ़ रही ध्वनि से फैलता है। कारख़ानों में चलने वाली तेज आवाज़ वाली मशीनों तथा दूसरे यंत्रो से उत्पन्न हो रही ध्वनि से ये प्रदूषण भी लगातार जानलेवा रूप धरने लगा है। वाहनों की लगातार हो रही बढ़ोतरी की वजह से एक ओर तो वायु का प्रदूषण बढ़ रहा है तो ध्वनि का। ध्वनि प्रदूषण मनुष्यों में होने वाले मानसिक तनाव का मुख्य कारण है, जोकि मस्तिष्क पर कई दुष्प्रभाव डालने के साथ ही सुनने की शक्ति को भी घटाता है। सड़क पर दौड़ने वाले वाहन, पटाखे फूटने के कारण उत्पन्न होने वाला आवाज़ लाउड स्पीकर से भी ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि होती है। जिससे कई लोग तो अपने सुनने की शक्ति आजीवन के लिए खो बैठते है।
प्रदूषण चाहे जल का हो या फिर वायु का इससे हमारे वातावरण पर बुरा असर लगातार बढ़ रहा है आज देश-दुनिया में बड़ी ही तेज़ी से जंगलों की कटाई हो रही है जिससे ना सिर्फ मानव जीवन पर बल्कि जंगलों में रहने वाले पशु-पक्षियों के जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड रहा है। जंगलों की लगातार कटाई से ना जाने कितने ही पशु-पक्षियों की प्रजातियां ऐसी है जो आज लुप्त होने की कगार पर आ गयी है, जंगल के जानवर शहरों में आने के लिए मजबूर हो गए है क्योंकि उनके घरों में मनुष्य ने अपना डेरा डाल रखा। कहने का तातपर्य है की जंगलों की कटाई से हर तरह का जीवन खतरे में है। पेड़ दूषित वायु को स्वच्छ करके मनुष्य को देते है तथा तापमान को बढ़ने से भी रोकते है
आज के समय में मनुष्य अपने निजी स्वार्थ के लिए प्रकृति से लगातार छेड़छाड़ कर रहा जिसकी वजह से बाढ़-भूकंप व् ग्लोबल वार्मिंग जैसी जानलेवा समस्याएँ लगातार बढ़ रहीं है।
और अगर इसी तरह पेड़ो और जंगलों की कटाई बढ़ती रही तो बहुत जल्द इस पृथ्वी पर ऐसा दिन आएगा जब यहाँ पर जीवन असंभव सा हो जाएगा। शायद तब मनुष्य समझ आये लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।