Karva Chauth : जानिए करवा चौथ व्रत की सम्पूर्ण कथा ।
श्री कृष्ण के कथन अनुसार द्रोपदी ने यह व्रत किया जिसके फलस्वरूप पार्थ अर्जुन तपस्या का सकुशल फल प्राप्त कर वापस घर लौटे , और कुशलता से महाभारत का धर्म युद्ध भी अपने नाम किया। कहा जाता कि तभी से हिन्दू समाज की सभी महिलाएं अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती है और कथा भी सुनती है।

हिन्दू समुदाय के लोगों में करवा चौथ व्रत का पर्व सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत पावन और बड़ा माना गया है। करवा चौथ का व्रत महिलाओं के लिए भाग्य का प्रतीक माना जाता है। कई महिलाएं इस पर्व को पति दिवस के रूप में भी मानाती है। यह पर्व अधिकतर उत्तर भारत में मनाया जाता है।
ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियाँ करवाचौथ का व्रत बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। प्राचीन वेद शास्त्रों के अनुसार यह व्रत कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की व्यापिनी चतुर्थी के दिन मनाया जाता है ।
सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की पूजा अर्चना करती है। आपने अक्सर देखा होगा कि इतिहास में कभी कुछ ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं हैं, जिनके उपलक्ष्य में ही आज के त्यौहार मनाये जाते हैं।
करवा चौथ के सबंध में भी कुछ ऐसी पौराणिक कथाएं मिलती जिन्हे जानने के बाद इस पर्व की उत्पत्ति के बारे में पता चलता है। तो आइए जानते है करवा चौथ के विषय में कुछ पौराणिक कथाएं।
पौराणिक कथा – हिन्दू शास्त्रों के अध्यन करने पर इस व्रत से जुडी कई प्राचीन कथाएं सामने आती है। लेकिन आज के समय में जो सबसे प्रचलित कथा है वो इस प्रकार है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में एक साहूकार के सात बेटे थे जिनकी करवा नाम से एक बहन थी। सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। बहन के प्रति उनकी प्रेम भावना ऐसी थी कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी।
शाम ढलने पर जब उसके भाई अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन अस्वस्थ लग रही थी। रात को जब सभी भाई भोजन करने के लिए बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी खाने का आग्रह किया लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है।

लेकिन चन्द्रमा देर रात तक आसमान में कहीं नज़र नहीं आ रहे थे। इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो रही थी। सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की हालत देखी नहीं गयी और उसने दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट रख दिया जो दूर से चतुर्थी का चाँद सा प्रतीत हो रहा था।
इसके बाद उस भाई ने अपनी बहन को बताया कि चाँद निकल आया है अब तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
कहा जाता है कि जैसे ही वह भोजन का पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। जिससे वह बौखला जाती है। ये देखकर उसकी भाभी उसे सारी सच्चाई से अवगत कराती है और बताती है कि करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।
पूर्ण सत्य से अवगत होने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी उसकी देखभाल करती है और उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक वर्ष बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है और उसकी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब उसकी भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो (मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो ) का आग्रह करती है। लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही करवा के सुहाग को जीवित करने की शक्ति थी। इसलिए करवा उस भाभी से भी वही आग्रह करती है। उसकी पतिव्रता तपस्या को देख भाभी का ह्रदय पसीज जाता है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है।

वहीँ इस संबंध में दूसरी कथा इस प्रकार है। कहा जाता है कि एक बार करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान कर रहा था कि अचानक उसका पैर नदी में घूम रहे एक मगर ने पकड़ लिया। पति ज़ोर ज़ोर से करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा उसकी आवाज सुनकर करवा भागी घटनास्थल पर पहुंचीं और उसने अपने पतिव्रत की शक्ति से उस मगर को कच्चे धागे से बाँध दिया।
मगर को बाँधकर अपनी शक्ति से सीधा यमराज के पास पहुंचीं और कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ।

उत्तर में यमराज बोले- उस मगर का मृत्यु समय अभी नहीं आया है। अतः मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को अपने पतिव्रत शक्ति से शक्तिहीन होने का श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। उस पतिव्रता करवा के मुख से ऐसे क्रोध भरे शब्द सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के साथ उसके पति को लम्बी आयु का वरदान भी दिया।
हम करवा माता से प्रार्थना करते है कि “हे माँ करवा ! आपने जिस तरह से अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा कर उन्हे भी सदा सुहागिन का वरदान दें।
अन्य कथा – महिलाओं के इस पर्व की एक अन्य कथा बताती है कि एक बार पांडु पुत्र अर्जुन नीलगिरी नामक पर्वत पर तपस्या करने थे। घर में उनकी पत्नी द्रोपदी बहुत परेशान थीं। अपने पति का हाल जानने के लिए उन्होंने अपने भाई भगवान् श्री कृष्ण को याद किया और अपनी चिंता व्यक्त की।

तब वासुदेव श्री कृष्ण ने द्रोपदी को पति की लम्बी आयु के लिए एक ऐसा व्रत रखने की सलाह दी ,जिसकी कथा स्वयं महादेव ने देवी आदिशक्ति को सुनाई थी। यह कथा थी दिव्य करवा चौथ की व्रत कथा।
श्री कृष्ण के कथन अनुसार द्रोपदी ने यह व्रत किया जिसके फलस्वरूप पार्थ अर्जुन तपस्या का सकुशल फल प्राप्त कर वापस घर लौटे , और कुशलता से महाभारत का धर्म युद्ध भी अपने नाम किया। कहा जाता कि तभी से हिन्दू समाज की सभी महिलाएं अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती है और कथा भी सुनती है।
मान्यता है कि यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक चतुर्थी का व्रत को पूर्ण करता है, तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से दूर हो जाता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है।

पुराण बताते है कि आप जब भी किसी व्रत का श्रद्धापूर्ण पालन करते है तो आपके शरीर में से विषैले पदार्थ,विचार, अहंकार,लोभ सभी नष्ट हो जाते है। ऐसे ही करवा चौथ के पूरे दिन, आपके मन में बस एक ही इच्छा रहती है कि आपके पति या पत्नी का कल्याण हो। कहा जाता है कि प्राचीन काल में सुहागिनें केवल इसी व्रत की प्रतीक्षा करती थी और पति के दीर्धायु होने की अर्चना करती थी।
आज के इस पावन अवसर पर हम भी इस व्रत के भगवान् श्री गणेश से प्राथना करते है कि “हे श्री गणेश भगवान् जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।