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निर्भय कवि “आनंद मोहन” जी की जीवन यात्रा। सांसद से सलाख़ों तक !!!

आनंद मोहन अपनी सोच अपने विचारों को कविताओं का रूप देते हुए देश और देश की जनता के लिए जेल से प्रकाशित कर रहें है ताकि आज का युवा भी सत्य के लिए असत्य का निर्भय होकर सामना करे जिससे इस भारतवर्ष की आने वाली नस्लें हर अन्याय को मिटाने के लिए बेखौफ रहें और देश को विकास की एक नयी दिशा दें सके।

शिवहर बिहार के पूर्व सांसद और कवि “आनंद मोहन” जी का जन्म बिहार के सहरसा क्षेत्र में सन 1960 में हुआ। इनके पिता राम बहादुर सिंह देश के एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। इनके परिवार के कई सदस्यों ने देश को आज़ाद करवाने में अपना योगदान दिया था शायद इसलिए बचपन से ही इनके अंदर देश व् देश की जनता के लिए एक स्नेह का भाव था। इन्होने पूर्व प्रधानमंत्री स्व श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा चलाई आपातकालीन स्तिथि के खिलाफ जे.पी. आन्दोलन में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, जिसकी क़ीमत इन्हे 2 वर्ष तक जेल में रहकर चुकानी पड़ी। इन्होने मैथिली को अष्टम अनुसूचि में शामिल करने के लिए कड़ी मेहनत की।

कहा जाता है कि मोहन क्रांति के अग्रदूत है और संघर्ष इनका दूसरा नाम है। आपको बता दें कि हुक़ूमत की कूटनीतियों का विरोध करने की ख़ातिर आनंद मोहन जी की अधिकांश जवानी कारावास में बीती है। इस वक़्त इनके परिवार में इनकी पत्नी लवली आनंद के अलावा इनके 2 पुत्र चेतन आनंद और अंशुमान अनांद के साथ इनकी एक पुत्री सुरभि अनांद है।

सत्ता और जीवन-

आनंद मोहन जी शुरू से ही चंद्रशेखर सिंह से बहुत अधिक प्रभावित रहे। राजनीतिक जीवन-यात्रा में स्वतंत्रता सेनानी और प्रखर समाजवादी नेता श्री परमेश्वर कुंवर इनके गुरु रहे। राजनीति के सारे गुर इन्होने श्री परमेश्वर कुंवर जी से ही सीखे। सन 1980 में इन्होने क्रांतिकारी समाजवादी सेना का गठन किया और लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन दुर्भाग्य ये रहा कि मोहन जी चुनाव हार गए। लेकिन सन 1990 के विधानसभा चुनाव आने तक मोहन जी अपनी बीती ग़लतियों से काफी कुछ सीख चुके थे जिसका नतीजा सन 1990 के विधानसभा चुनावों में देखने को मिला जिसमे वह बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल से भव्य विजयी हुए।

चुनाव जीतने के बाद सन 1993 में आनंद मोहन जी ने बिहार में ही बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थापना की। इनकी लोकप्रियता और दृढ़ संकल्प जनता के मन में ऐसा घर कर चुके थे कि सन 1995  के चुनाव में लोगों को युवा आनंद मोहन में भावी मुख्यमंत्री दिख रहा था। सन 1995 में उनकी पार्टी ने बिहार चुनाव में नीतीश कुमार की “समता पार्टी” के सामने बहुत बेहतरीन प्रदर्शन किया।

इसके बाद आनंद मोहन जी सन 1996 और 1998 में  दो बार बिहार शिवहर से सांसद रहे। मोहन जी बिहार पीपुल्स पार्टी के नेता थे किन्ही राजनीतिक कारणों से अब ये पार्टी अपने अस्तित्व में नहीं है,लेकिन आनंद मोहन जी जब तक भी इस पार्टी में रहे जनता के विश्वासपात्र और लोकनायक की भूमिका में ही रहे। कहा जाता है कि सन 1998 में लालू यादव से समझौता करना इनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी भूल थी ,जिसका पता इन्हे ज़रा बाद में चला।

इनके मूल जीवन में क्रांतिकारी भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद ,नेल्सन मंडेला ,चंद्रशेखर जी, सुभाष चंद्र बोस जैसे दृढ़ छवि वाले नायक इनके आदर्श है। खबरों की माने तो बिहार के गोपालगंज में डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आनंद मोहन जी को आजीवन कारावास की सज़ा है जिसके चलते वे अब अपने चंद आदर्श क्रांतिकारियों की किताबों के साथ अपनी सज़ा को पूरा कर रहें है।

फ्रेंड्स ऑफ आनंद मोहन और अन्ना को समर्थन–

बिहार की राजनीति में निर्भय होकर दमखम रखने वाले तथा बिहार कोसी क्षेत्र के कद्दावर कवि और पूर्व सांसद आनंद मोहन जी  के अधिकतर समर्थक अन्ना आंदोलन में उनका समर्थन करते हुए सड़कों पर उतरे और बड़ी-बड़ी मशालेँ हाथ में लेकर एक भव्य जुलूस निकालकर अन्ना को मंज़िल तक पहुंचाने का संकल्प भी लिया। चारों तरफ लग रहे अन्ना की जय हो के नारों से सहरसा का सारा माहौल बदल चुका था।

आपको बता दें कि फ्रेंड्स ऑफ आनंद मोहन के बैनर तले सहरसा के गंगजला स्थित आनंद मोहन जी की सिर्फ आवाज़ मात्र से ही लाखों का जन-समूह उनका समर्थन करते हुए  शहर के तमाम मुख्य मार्गों से होता हुआ कुंवर सिंह चौक पहुंचा जहा इस बड़े जन-समूह ने कुंवर सिंह की प्रतिमा के सामने ज्योति प्रज्वलित करके अन्ना को मंज़िल तक पहुंचाने का दृढ संकल्प लिया। आनंद मोहन जी की पहल का प्रणाम ये हुआ कि सहरसा जेल में भी अन्ना के समर्थन में जेल के सारे कार्यकर्ता अनशन पर बैठे थे। बताया जाता है कि इस अनशन में जेलर से लेकर कैदी तक और सिपाही से लेकर तक चपरासी तक सब अपना योगदान देने के लिए के शामिल हुए थे।

मोहन जी, कारावास और कवितायेँ–

कारावास में अपनी दिनचर्या को व्यतीत करते हुए मोहन जी का साथ उनकी किताबें निभा रही है। उन्हे किताबें पढ़ने और नयी रचनाएं  बेखौफ लिखने का शौक बचपन से ही रहा है , इसलिए उनकी कलम जेल में भी खुद को क़ैद नहीं रख सकी और मोहन जी ने कारावास में ही ‘कैद में आजाद कलम” नाम के कविता संग्रह की रचना कर डाली, जिसका पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह जी ने दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशनल क्लब में लोकार्पण किया। मोहन जी का यह कविता संग्रह राजकमल प्रकाशन में छपकर तैयार है और यह सारा कार्यक्रम फ्रेंड्स आॅफ आनंद मोहन की ओर से आयोजित किया गया जो काफी लोकप्रिय रहा।

साल 1974 के आंदोलन के समय आनंद मोहन क्रांति दूत अखबार नाम की पत्रिका के संपादक थे। यह अखबार उस समय कोसी नाम के इलाके का प्रसिद्ध अखबार था। इस अखबार में इनकी एक कहानी “बिहार का तीसरा जलियावाला बाग कांड” के नाम से बहुत मशहूर हुई। सहरसा में अपने कारवासी जीवन के दौरान मोहन जी इस समय अपनी कलम को नया रूप देते हुए बौद्ध दर्शन और गांधी जी का व्यापक अध्ययन कर चार खंडों में अपनी जेल डायरी को संजो रहे है। साथ ही वह अपनी आपबीती आत्मकथा ‘”बचपन से पचपन” को भी कलमबद्ध करने में लगे हुए है।

उनकी कुछ अतुल्य प्रकाशित रचनाएँ इस प्रकार है।  

1. कैद में आजाद कलम

2. काल कोठरी से (प्रकाशनाधीन)

3. कहानी संग्रह ‘तेरी मेरी कहानी’ (प्रकाशनाधीन)

आज भले ही मोहन जी कारावास में अपनी कलम के साथ कैद में है लेकिन आपको बता दें कि हुक़ूमत के बाशिंदे व्यक्ति की देह को क़ैद कर सकते है लेकिन उसकी सोच और विचार को नहीं क्रांतिकारी “भगत सिंह” ने अपनी जेल यात्रा के दौरान कहा था कि “दिल से निकलेगी ना मरकर भी वतन की उल्फ़त ,मेरी मिटटी से भी खुशबू इ वतन आएगी”

कुछ इसी तरह आनंद मोहन अपनी सोच अपने विचारों को कविताओं का रूप देते हुए देश और देश की जनता के लिए जेल से प्रकाशित कर रहें है ताकि आज का युवा भी सत्य के लिए असत्य का निर्भय होकर सामना करे जिससे इस भारतवर्ष की आने वाली नस्लें हर अन्याय को मिटाने के लिए बेखौफ रहें और देश को विकास की एक नयी दिशा दें सके।

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