हाल ही में खबरों की सुर्ख़ियों में लड़ाकू विमान राफेल की ख़बरें बहुत चर्चा में है। दोस्तों राफेल लड़ाकू विमान भारतीय हवाई सेना की मज़बूती को बरकरार रखने के लिए सेना की तरफ से ही चुना गया था। बताया जा रहा है कि लड़ाकू विमान राफेल लगभग 6 तकनीकी लड़ाकू विमानों में से चुना गया जिसमे एमएमआरसीए के कॉम्पिटीशन में अमेरिका के बोइंग एफ/ए-18ई/एफ सुपर हॉरनेट, फ्रांस का डसॉल्ट राफेल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्कन, रूस का मिखोयान मिग-35 और स्वीडन के साब जैस 39 ग्रिपेन जैसे एयर-क्राफ्ट शामिल थे। अपनी सारी सैन्य जांच पूरी करने के बाद भारतीय हवाई सेना ने साल 2011 में यह घोषणा की कि राफेल और यूरोफाइटर टाइफून उसके मानदंड पर खरे उतरे हैं।
यूपीए सरकार से क्यों नहीं हुआ राफेल का समझौता-
यूपीए सरकार के कार्यकाल में राफेल लड़ाकू विमान का समझौता नहीं हो पाया था। खबरों के हवाले से पता चलता है कि दसाल्ट एविएशन भारत में बनने वाले 108 विमानों की गुणवत्ता की ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं थी क्योंकि उनका कहना था भारत में विमानों को बनाने के लिए लगभग 3 करोड़ मानव घंटो की ज़रुरत है। ,लेकिन हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड(एचएएल) द्वारा इसके 3 गुना अधिक मानव घंटो की आवश्यकता बताई गयी इसलिए उस समय राफेल लड़ाकू विमान का सौदा देश में पूरा नहीं हो सका।
मोदी सरकार और राफेल समझौता-
साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने फ़्रांस दौरे से पहले राफेल को लेकर समझौता किया जिसमे 36 राफेल फ्लाइ-अवे विमान हासिल करने का समझौता हुआ जिसके तहत कहा गया कि 18 महीने के बाद भारत में फ्रांस की तरफ से पहला राफेल लड़ाकू विमान दिया जाएगा। विमान की डील को लेकर विपक्ष और देश के कई मंत्री सरकार तब रुष्ट रुख अपनाते है जब इस डील से एचएएल यानी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड को बाहर कर दिया जाता है।
दरअसल मोदी जी के फ्रांस दौरे से पहले राफेल लड़के की डील हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड एक भारतीय कम्पनी के नाम थी जिसके पास 60 सालों का अनुभव था तथा यह कम्पनी इस प्रक्रिया पुरानी हिस्सेदार भी थी। लेकिन फिर भी राफेल विमान की डील से इस कंपनी को हटाकर रिलायंस डिफेंस नाम की एक निजी कंपनी को डील में शामिल किया जाता है।
जानकारी के अनुसार प्रशांत भूषण, अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा आरोप लगाते हैं कि 60 साल की अनुभवी कंपनी हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स (एचएएल) को सौदे से बाहर कर दिया जाता है और एक ऐसी कंपनी अचानक इस सौदे में प्रवेश करती है जिसका कहीं ज़िक्र नहीं था उनका कहना डील में से एचएएल को बहार करके सरकार ने रिलायंस डिफेंस को किस बुनियाद पर चुना हैं रिलायंस डिफेंस पर भारतीय बैंकों का 8,000 करोड़ का कर्ज़ा बाकी है. कंपनी घाटे में चल रही है और उसके पास विमानों की जानकारी का भी कोई अनुभव ही नहीं है। पहले भी अनिल अंबानी की यह कम्पनी भारतीय नौ सेना को जहाज़ न बनाकर देने से अपना एक वादा तोड़ चुकी है।
जवाब में रिलायंस डिफेंस कंपनी के मालिक अनिल अंबानी का कहना था कि “‘हमें अपने तथ्य सही कर लेने चाहिए. इस कॉन्ट्रैक्ट के तहत कोई लड़ाकू विमान नहीं बनाए जाने हैं क्योंकि सभी विमान फ्रांस से फ्लाई अवे कंडीशन में आने हैं। “
लेकिन देखा जाए तो भारत में एचएएल के अलावा कोई भी कंपनी लड़ाकू विमान बनाने के अनुभव से अभी बहुत दूर है। और नमो सरकार ने उसी कम्पनी को बहार कर दिया। और अनिल अंबानी की कम्पनी को राफेल सौदे का ठेका दे दिया।
इसी मामले में बताया जा रहा है कि मोदी सरकार से पहले 18 राफेल विमानों को खरीदने की बात हुई थी लेकिन अब 36 विमान लेने की बातें सामने आ रही है और वैसे भी आज तक इस डील को हुए 3 से 4 साल का समय होने को आया है लेकिन अभी तक एक भी राफेल लड़ाकू भारत की सरज़मी पर नहीं उतरा है।
सूत्रों के मुताबिक़ जहाँ एक और सरकार का कहना है कि इस डील के जुड़ी कोई भी जानकारी किसी को भी नहीं दी जा सकती तो वही दूसरी ओर डील की नई हिस्सेदार रिलायंस डिफेंस कंपनी इस मामले में 4 पन्नों का प्रेस रिलीज़ दे रही है।
देश के रक्षा मंत्रालय ने अभी तक इस मामले में चुप्पी नहीं तोड़ रहा है। दूसरी और कांग्रेस का आरोप है कि राफेल के सौदे से हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड कंपनी को 25000 करोड़ रुपये का घाटा होगा।
राफेल के सौदे से 60 साल की अनुभवी कम्पनी को बहार करके एक नई कंपनी को शामिल करके सरकार कौन सी नयी योजना चला रही है बताना मुश्किल होगा। देश की सुरक्षा के लिए उठाया गया यह कदम देश को फायदा दे रहा है या किसी निजी कम्पनी को इसके बारे में भी कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन हम उम्मीद कर सकते है कि जल्द ही भारतीय हवाई सेना के पास राफेल लड़ाकू विमान पहुँच जाएगा।