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आरोग्य सेतु से भविष्य में निगरानी की तैयारी तो नहीं है?


नई दिल्ली –संजय कुमार सिंह: यह मान लेने में कोई हर्ज नहीं है कि सरकार अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार कोविड-19 या कोरोना वायरस से लड़ रही है। इस लड़ाई के तहत जो हो रहा है और जो सूचनाएं उपलब्ध है उसके आधार पर मुझे एक ऐप्प बहुत महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। रोज आने वाले एसएमएस के अलावा मित्रों परिचितों ने भी इसकी सिफारिश की है और इस नाते मुझे इसे जानने समझने की जरूरत महसूस हुई। बहुत लोग यह जानना ही नहीं चाहते हैं कि कोई ऐप्प आपको मुफ्त में क्यों दिया जा रहा है। उससे आपका कितना फायदा है और ऐसा तो नहीं है कि कोई दूसरा उसका फायदा उठाएगा और वही खर्च या प्रचार कर रहा है। महामारी के इस दौर में अगर कोई ऐप्प संक्रमित लोगों की पहचान कर उन्हें क्वारंटाइन करने में सहायक बताया जाए तो वैसे भी इसे देश सेवा ही माना जाएगा। ऐसी स्थिति में किसी ऐप्प से भविष्य में भी आपकी जासूसी हो सकती है। मैंने इसे जानने समझने की कोशिश की तो हफ्फिंगटन पोस्ट डॉट इन (https://www.huffingtonpost.in/ ) पर मुझे गायत्री वैद्यनाथन की एक विस्तृत और सूचनाप्रद रिपोर्ट मिली।

आइए उसके आधार पर आरोग्य सेतु को समझने की कोशिश करें। यह कितना जरूरी है इसे समझने के लिए इस रिपोर्ट का शार्षक ही पर्याप्त है, मोदी सरकार का कोविद ट्रैकिंग ऐप्प निगरानी ज्यादा करता है, सुरक्षा कम है। इसके बावजूद, भिन्न सरकारी विभागों ने इसके लिए लगातार दबाव डाला है। भले ही यह एसएमएस संदेश, सलाह और प्रचार के रूप में है। उदाहरण के लिए, तीन अप्रैल को मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने स्कूलों से कहा कि वे छात्रों के अभिभावकों और उनके परिवार के सदस्यों से ऐप्प डाउनलोड करने के लिए कहें। छह अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक ट्वीट के जरिए भाजपा कार्यकर्ताओं से ऐप्प डाउनलोड करने के लिए कहा। इतने से ही देश का बहुत बड़ा हिस्सा कवर हो जाएगा तथा यह ऐसा वर्ग है जहां अगर-मगर की गुंजाइश नहीं के बराबर है।

कोविड 19 महामारी के कारण सोसल डिसटैंसिंग को लागू करने के लिए कई देशों ने ऐप्प का विकास किया है। सबमें निजता की गारंटी का स्तर अलग-अलग है। इस समय जब कोरोना से बचने की कोई दवा नहीं है तो तेजी से फैलते इसके संक्रमण को रोकने का एक ही तरीका है, सोशल डिस्टैंसिंग। इसे लागू कराने वाले सॉफ्टवेयर से कोई क्यों बचना चाहेगा। पर लगता है कि सरकार इस मौके का लाभ लोगों की जासूसी मजबूत करने के लिए कर रही है। होने को तो देश भर में एक ही काम (कोविड-19 के मरीजों का पता लगाकर उन्हें क्वारंटाइन करने) के लिए भिन्न राज्यों द्वारा विकसित 20 से ज्यादा ऐप्प हैं। ये सब आरोग्य सेतु के अलावा हैं। राज्य सरकारें उनका कैसे और कितना प्रचार कर रही हैं यह तो मुझे नहीं पता पर आरोग्य सेतु के प्रचार ने मेरे कान जरूर खड़े कर दिए हैं।

आइए, पहले संक्षेप में समझ लें कि ऐप्प कैसे क्या काम करता है। इससे आप खुद समझ जाएंगे कि यह आपकी निजता में कैसे कितना दखल दे सकता है। कोरोनावायरस के संदिग्ध मामलों का पता लगाने के मकसद से पेश ऐप्प नागरिकों के मूवमेंट को ट्रैक करता है, अनंतकाल तक सूचनाएं स्टोर करता है और किसी भी अन्य एजेंसी से किसी भी अन्य उद्देश्य के लिए सूचना साझा करता है। कोई व्यक्ति किसी कोविड-19 संक्रमित के करीब रहा है कि नहीं, इसका पता वास्तविक समय के आधार पर लगाने के लिए पेश किया गया भारत सरकार का ऐप्प, आरोग्य सेतु इस तरह सरकार की निगरानी क्षमता का भारी विस्तार कर देता है जबकि आपकी सुरक्षा के उपाय बहुत कम हैं।

इस संबंध में पेरिस आधार वाली एक साइबर सुरक्षा कंसलटेंसी, डिफेंसिव लैब एजेंसी ने परेशान करने वाली जानकारी दी है।  यह ऐप्प उपयोगकर्ता की पहचान तो रखता ही है वास्तविक समय में यह जानकारी भी रखता है कि वह कहां है और लगातार इस बात पर नजर रखता है कि ऐप्प डाउनलोड करने वाले कितने लोग उसके पास हैं। इस तरह, आरोग्य सेतु उन सभी लोगों को ट्रैक करके उपयोगकर्ता का एक सामाजिक ग्राफ तैयार कर सकता है जो उसके आस-पास रहे हैं।  सरकार के पास इस समय जो अन्य डाटा बेस हैं उसके साथ इस डाटा का मेल करवाकर निगरानी की सरकार की शक्ति का बेहद विकास हो जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि पहले के डाटा में मोबाइल नंबर दिए हुए हैं। 

कोई व्यक्ति जब आरोग्य सेतु ऐप्प पर पंजीकृत होता है तो वह अपना नाम, फोन नंबर, आयु, सेक्स, पेशा, यात्रा और धूम्रपान के इतिहास जैसा विवरण देता है। यह सही है कि ऐप्प से संक्रमित लोगों को पहचानने और तेजी से क्वारंटाइन करने में सहायता मिल सकती है। लेकिन दूसरे देशों के ऐप्प उपयोगकर्ताओं की निजता सुनिश्चित करने में इससे बेहतर रहे हैं।  उदाहरण के लिए, सिंगापुर का कांटैक्ट ट्रेसिंग ऐप्प साफ कहता है कि ऐप्प कांटैक्ट ट्रेसिंग के लिए आवश्यक न्यूनतम डाटा से ज्यादा एकत्र नहीं करता है। आरोग्य सेतु ऐसा कोई आश्वासन नहीं देता है। सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी में प्रोग्राम ऑफिसर मीरा स्वामीनाथन ने कहा, यह हमारे संवैधानिक अधिकारों के प्रति खतरा है। अगर निजता का अधिकार जोखिम में हो तो अभिव्यक्ति और बोलने की आजादी में खतरे में आ जाती है। उदाहरण के लिए आप धूम्रपान करते हैं यह सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने की जरूरत नहीं है पर स्वास्थ्य का मामला हो तो आप निजी तौर पर बता देंगे। अगर दोनों का घालमेल हो जाए तो आप मुश्किल में पड़ सकते हैं।

बेशक, ऐप्प का डाटा एनक्रिप्टेड है और सर्वर पर ट्रांसफर कर दिया जाता है। सरकार उसके फोन को एक अनूठी पहचान देती है। जब दो पंजीकृत फोन एक दूसरे के करीब होते हैं तो वे सरकारी सर्वर में स्टोर किए गए अनूठे पहचान का आदान-प्रदान करते हैं। अगर व्यक्ति नोवल कोरोनावायरस से संक्रमित पाया जाता है तो पूर्व में उसके आस-पास रहे जिन व्यक्तियों की पहचान आरोग्य सेतु द्वारा बनाई गई उनकी अनूठी पहचान से हुई रहेगी, को सूचित किया जाएगा। इसके लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा लोग ऐप्प का उपयोग करें। सरकार का सारा जोर इसी लिए है। पर इसके लिए पारदर्शिता जरूरी है। यह इसलिए भी जरूरी है कि भारत में डाटा प्रोटेक्शन कानून नहीं है। इसलिए निजता के उल्लंघन के लिए जनता ऐप्प बनाने वाले को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती हैं। यह भी स्पष्ट नहीं है कि सरकार की कौन सी एजेंसी डाटा बेस और डाटा कलेक्शन (एकत्रीकरण) पर नजर रख रही है। 

ऐप्प अपना मूल काम ठीक से करे इसके लिए जरूरी है कि कांटैक्ट ट्रेसिंग ऐप्प को बड़े पैमाने पर तैनात किया जाए। पर्याप्त लोग ऑनलाइन होंगे तभी फोन आधारित निगरानी में गैप (खाली जगह) नहीं होगी। इसके लिए जरूरी है कि उसपर जनता का भरोसा हो और यह तभी संभव है जब इस मामले में पारदर्शिता हो। सिंगापुर और इजराइल जैसे देशों ने इसके लिए ऐप्प का सोर्स कोड सार्वजनिक कर दिया है ताकि स्वतंत्र रूप से  इसका आकलन किया जा सके। अनुसंधान करने वाले तब देख सकेंगे कि डाटा कहां से कैसे लिया और ट्रांसफर किया जा रहा है। कहने की जरूरत नहीं है कि भारत के कोविड ऐप्प से संबंधित चीजें अस्पष्ट हैं और सोर्स कोड सार्वजनिक तौर पर तो नहीं ही उपलब्ध है। सरकार ने यह भी नहीं बताया है कि इस ऐप्प का विकास किन कंपनियों ने किया है।  दूसरी ओर निजता नीति कहती है कि सूचना तीसरे पक्ष को नहीं दी जाएगी। सब सारा काम ही तीसरा पक्ष कर रहा है तो इसे कैसे मान लिया जाए यह भी स्पष्ट नहीं है। इसका नतीजा यही होगा कि आखिरकार यह ऐप्प बड़े पैमाने पर तैनात नहीं किया जा सकेगा। 

डाटा को कौन ऐक्सेस कर सकता है और यह सरकारी सर्वर पर कब तक रहेगा इस बारे में बहुत मामूली स्पष्टता है। वैसे तो निजता नीति कहती है कि डाटा बिना पहचान के, एक जगह, एक साथ रहेगा पर संबंधित लोगों की दोबारा से पहचान करना संभव है। मोजिला टेक पॉलिसी के स्वतंत्र फेलो फ्रेडरिक कलथेउनर ने यह बात कही। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, “अहमदाबाद के टेलीकॉम सेंटर ऑफ एक्सीलेंस में सिक्यूरिटी रिसर्चर ज्योति पांडे ने कहा, “आरोग्य सेतु की निजता नीति कहती है कि फोन से डाटा 30 दिन में डिलीट हो जाएगा पर ऐप्प द्वारा एकत्र की गई सूचना सरकारी सर्वर में अनंत काल तक बनी रह सकती है। नीति कहती है कि कोविड-19 से संबंधित जवाब के अलावा सूचना का उपयोग कानूनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जा सकता है।”

इसलिए, निजता के विशेषज्ञों और साइबर सुरक्षा के जानकारों ने सतर्क किया है। इससे भी बुरी बात यह है कि आरोग्य सेतु उपयोगकर्ता से जो करार करता है उसमें कहा गया है कि भविष्य में इस डाटा का उपयोग महामारी नियंत्रण से अलग काम के लिए भी किया जा सकता है बशर्ते, कानूनी आवश्यकता हो। ऐप्प की निजता नीति कहती है कि आरोग्य जो निजी सूचना तैयार करेगा उसे “तीसरे पक्ष” के साथ साझा नहीं किया जाएगा। पर यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि सरकार जिसे उपयुक्त समझे उसके साथ इसे साझा किया जा सकता है।  संबंधित नीति कहती है, इस तरह की निजी सूचना उन आवश्यक और संबंधित व्यक्तियों से साझा की जा सकती है जिनसे आवश्यक चिकित्सा और प्रशासनिक हस्तक्षेप के लिए जरूरत समझी जाए।

यह भी पता नहीं है कि इस डाटा को व्यवस्थित रखने और साझा करने का काम किस मंत्रालय के तहत आएगा। ऐसे में निजता के लिए काम करने वालों की चिन्ता यह है कि महामारी की आड़ और डाटा सुरक्षा कानून की अनुपस्थिति में सरकार निगरानी के अपने अधिकार बढ़ा रही है। उदाहरण के लिए, निगरानी कंपनी स्टैकु ने एक तरीका विकसित किया है जिससे मास्क नहीं पहनने वालों या फिर लॉकडाउन के नियमों का पालन नहीं करने वालों की पहचान की जा सकती है। यह वही कंपनी है जो राज्य सरकारों और पुलिस अधिकारियों को चेहरा पहचानने वाली टेक्लॉजी मुहैया कराती है। सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी की पॉलिसी ऑफिसर, पल्लवी बेदी ने कहा, मैं समझती हूं कि बड़ी चिन्ता यह है कि क्या इससे भविष्य में बड़े पैमाने पर निगरानी का रास्ता खुल जाएगा।

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Shweta R Rashmi

Special Correspondent-Political Analyst, Expertise on Film, Politics, Development Journalism And Social Issues. Consulting Editor Thejanmat.com

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