JANMATReligion
Trending

जानिए नवरात्रि की नौवीं शक्ति माँ सिद्धिदात्री जी की सम्पूर्ण कथा।

देवी माँ सिद्धिदात्री जी का यह स्वरूप भक्तों का मन मोहने वाला है। इस स्वरूप में इनकी चार भुजाएं है जिनमे सुदर्शन ,पुष्प,गदा आदि विराजमान है। सिंह की सवारी करते हुए देवी माँ अपने भक्तों के सभी कष्टों को हर लेती है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ मनुष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।

नवरात्रि के नौवें स्वरूप में देवी सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है जिसे नवदुर्गा का पूर्ण स्वरुप भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन मां की उपासना करने वालों को नवरात्रि पर्व की सभी दिव्य देवियों का पूर्ण आशीर्वाद मिलता है।

आपको बता दें कि नवरात्रि पर्व की नवमी तिथि पर होने वाली इस पूजा को महानवमी व् रामनवमी भी कहा जाता है। ज्ञानी जन कहते है कि इस देवी की अर्चना करने से निश्चित रूप से विजय की प्राप्ति होती है। नवरात्रि पर्व के अंतिम दिवस माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।

माता सिद्धिदात्री जी के नाम से ही आप लोग समझ गए होंगे कि नवदुर्गा का यह स्वरूप अपने भक्तों को हर प्रकार की सिद्धियां प्रदान करता है। मान्यता है कि इस दिन सच्ची श्रद्धा और पूर्ण निष्ठा के साथ के साथ इस देवी की साधना करने वाले साधकों को सभी प्रकार की श्रेष्ट सिद्धियों मिल जाती है।

जैसाकि आप सभी जानते है कि इस पर्व विधि के अनुसार नवरात्रि के अंतिम तीन दिन शेवत वस्त्र धारिणी देवी सरस्वती को समर्पित होते हैं। इसलिए हम कह सकते है कि शक्ति माता सिद्धिदात्री भी माता सरस्वती जी का ही स्वरूप है। हिन्दू धर्म व् ग्रंथो के अनुसार ब्रह्माण्ड में सभी प्रकार की सिद्धियां इस देवी शक्ति के ही अधीन होती है।

धर्म ग्रन्थ – मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व- ये आठ सिद्धियां होती हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है।

इनके नाम इस प्रकार हैं -अणिमा 2. लघिमा 3. प्राप्ति 4. प्राकाम्य 5. महिमा 6. ईशित्व,वाशित्व 7. सर्वकामावसायिता 8. सर्वज्ञत्व 9. दूरश्रवण 10. परकायप्रवेशन 11. वाक्‌सिद्धि 12. कल्पवृक्षत्व 13. सृष्टि 14. संहारकरणसामर्थ्य 15. अमरत्व 16. सर्वन्यायकत्व 17. भावना 18. सिद्धि .

देवीपुराण के अध्यन से पता चलता है कि देवों के देव महादेव ने भी इसी देवी की कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। आपको बता दें कि कईं ग्रंथो में ये उल्लेख है कि इन्ही की अनुकम्पा से ही महादेव का आधा शरीर देवी आदिशक्ति का हुआ था। इसी कारण भगवान् तीनों लोकों में ‘अर्द्धनारीश्वर’ नाम से जाने जाते है।

स्वरूप – देवी माँ सिद्धिदात्री जी का यह स्वरूप भक्तों का मन मोहने वाला है। इस स्वरूप में इनकी चार भुजाएं है जिनमे सुदर्शन ,पुष्प,गदा आदि विराजमान है। सिंह की सवारी करते हुए देवी माँ अपने भक्तों के सभी कष्टों को हर लेती है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ मनुष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।

श्लोक – सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि | सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ||

स्तुति – हिन्दू समुदाय के ज्ञानी पंडित इस देवी को प्रश्न करने के लिए देवी माँ की निम्नलिखित स्तुति बताते है।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

इस अर्थ है हे जगत जननी माँ ! आप सर्वत्र विराजमान है। हे माँ, सिद्धिदात्री जी के रूप में स्वरूप में मेरा आपको बार-बार नमन प्रणाम है। हे माँ, आप मेरे सभी गुनाहों को माफ़ करे और मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाए।

Tags
Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close