हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन आखिर क्यों इतना जरूरी है और कोरोना से क्या नाता है
कोरोना वायरस बढ़ते मामले और मेडिकल जगत की बेसब्री को आप यू समझ सकते है कि अभी तक इस खतरनाक दुश्मन को पूरी तरफ से खत्म करने का फार्मूला किसी के पास नही हैं। कोई दवा या वैक्सीन जो इसे रोक सके अभी तक ईजाद नहीं की जा सकी है पर दुनिया भर के वैज्ञानिकों की टीम दिनरात लगी हुई है इसकी दवा की खोज में उम्मीद है जल्द ही सफलता मिल जाये।
अभी दुनिया का हर देश अपने अपने स्तर पर कोरोना को मात देने की कोशिश पर बिना रुके चल रहे है। अभी कोरोना के चपेट में आये पीड़ितों को सिंप्टम्स के आधार पर ट्रीट किया जा रहा है और दिनरात उनको संघन निगरानी में रखा जा रहा है, जरूरत और उनके स्थिति को देखते हुये पर राहत की बात ये है कि सभी व्यक्तियों को हॉस्पिटल में एडमिट करने की जरूरत नहीं है अगर वो खुद को मॉनिटर कर सके और डॉक्टर की सलाह के हिसाब से बताये गये नियमों का पालन करें और खुद को भीड़ से अलग रखे यही सबसे बड़ा बचाव है इससे लड़ने में सहायक।
अभी कोरोना संक्रमित किसी भी व्यक्ति को मलेरिया और कुछ मामलों में HIV में इलाज में इस्तेमाल में होने वाली दवा के साल्ट से ठीक करने की कोशिश की जा रही है।अब इन दवाओं का सहारा है। किसी भी बीमारी की तरह कोरोना भी आपके बॉडी के इम्यून सिस्टम को सबसे पहले अपनी चपेट में लेता है। खैर हाइड्रोक्सीक्लोरोक़वीन की बड़ी चर्चा है और सबसे बड़ी खबर भी यहीं है ।
आइये जानते है क्या है हाइड्रोक्सीक्लोरोक़वीन ??
भारतीय दवा कंपनियों का जेनेरिक दवाइयों के मामले में दुनिया भर में दबदबा रहा है भारतीय दवा कंपनियां बड़े स्तर पर हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन का उत्पादन करती हैं। मलेरिया जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने में हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन बेहद कारगर दवा है। भारत में हर साल बड़ी संख्या में लोग मलेरिया की चपेट में आते हैं, दरअसल यह दवा उन स्वास्थ्य कर्मियों के लिए भी बहुत काम आती है जो मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में काम करते हैं, इसलिए भारतीय दवा कंपनियां बड़े स्तर पर इसका उत्पादन करती हैं। माना जा रहा है कि इस दवा का खास असर सार्स-सीओवी-2 पर पड़ता है। यह वही वायरस है जो कोविड-2 का कारण बनता है। इसके अलावा जैसे रयुमेटिक ऑर्थराइटिस में भी ये दवा काम आती है। मरीजों को इसका रेगुलर सेवन करना पड़ता है।
विश्व में भारत में इसके उत्पादन में क्या स्थिति है और क्या भारत को यह दवा निर्यात करना चाहिये ?
भारत हाइड्रोक्सीक्लोरोक़वीन का एपीआई (एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट) स्वयं बनाता है, और पूरे विश्व में हाइड्रोक्सीक्लोरोक़वीन के 6 सबसे बड़े निर्माताओं में से चार कम्पनियां भारत की ही है, भारत के पास प्रति माह हाइड्रोक्सीक्लोरोक़वीन की 20 करोड़ खुराक उत्पादन की मौजूदा क्षमता है। जिसके बलबूते भारत दूसरे देश की भी मदद कर सकता है।
अभी किन देशों को भारत से निर्यात की इजाज़त है !
कोरोना के कहर को देखते हुए भारत सरकार ने इज़रायल को छोड़कर विश्व के अन्य सभी देशों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक़वीन और पेरासिटामोल जैसी दवाओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसकी संघन निगरानी करते हुए विदेश व्यापार महानिदेशालय DGFT ने 25 मार्च को इस दवा के निर्यात पर रोक लगा दी थी और घरेलू बाजार में खुदर बिक्री को प्रतिबंधित कर दिया गया था। इसके बाद कोई भी केमिस्ट इस दवा को केवल पंजीकृत डाक्टर की पर्ची पर बेच सकेगा। साथ ही उसे उस पर्ची की एक प्रति ड्रग विभाग को जमा करानी होगी। भारत में मलेरिया की दवा की बिक्री पर प्रतिबंध पहली बार लगा है। एक हफ्ते पहले तक इस दवा को बिना डाक्टर की पर्ची के भी कोई भी खऱीद सकता था।
भारत सरकार ने अपने लिए कितना स्टॉक रखा है
भारत सरकार ने अपनी फार्मा कम्पनियों को इसके उत्पादन के लिए निर्देश दिए है और हाइड्रोक्सीक्लोरोक़वीन की 10 करोड़ खुराक का ऑर्डर भी दिया है, जो 15 दिनों कि उपचार अवधि में 22 लाख रोगियों के लिए पर्याप्त मात्रा है।
DGFT ने अचानक क्यों 12 दवाइयों की बिक्री को लेकर फेरबदल किया है।
6 अप्रैल को DGFT ने 12 जरूरी दवाओं और 12 एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट (API) के निर्यात पर लगी रोक हटा दी है. लेकिन क्लोरोक्वीन के मुद्दे पर पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है। ऐसा इसलिए माना जा रहा है कि अमेरिका के अनुरोध को ध्यान में रखते हुए किया गया है। कठिन समय से जूझ रहे अमेरिका और वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मदद के लिए भारत ने ये फैसला लिया है अमेरिका और इजराइल के साथ भारत अन्य दूसरें देशों की भी मदद में आगे आ सकता है। भारत सरकार द्वारा लिया गया यह एक तार्किक निर्णय है।
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