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जानिए नवरात्रि की छठवीं देवी शक्ति माँ कात्यायनी जी की पावन कथा।

कहा जाता है कि जिन कन्याओ के विवाह मे किसी भी कारण वश अधिक विलम्ब हो रहा हो, या किसी की बुरी नज़र से उनका विवाह का सयोंग बंध चुका हो उन कन्याओं को इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, इससे उनके विवाह के सयोंग जल्द ही खुल जायेगें और बुरी नज़र वालों का सर्वनाश हो जाएगा।

आपको बता दें कि नवरात्रि के 9 दिनों के पर्व में इसके छठे दिन नवदुर्गा की छठी दिव्य शक्ति देवी माँ कात्यायनी जी की आराधना की जाती है। अमरकोष में आदिशक्ति देवी पार्वती जी के लिए कात्यायनी दूसरा नाम है।

इन्हे कात्यायनी, हेेमावती, ईश्वरी, उमा, काली, गौरी, चंडी आदि के नाम से भी दुनिया भर में जाना जाता है। शक्तिवाद में इस देवी को भद्रकाली और भद्र चंडिका के रूप में भी पूजा जाता है।

इनकी अर्चना से भक्तों के सभी दुखों का सर्वनाश होता है और उन्हे धर्म,अर्थ,भक्ति और मोक्ष का आशीर्वाद मिलता है। उनके सभी रोग,कष्ट, भय संताप आदि सब पूर्णता नष्ट हो जाते है।

पौराणिक कथा – हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार इनके सम्बन्ध में बहुत सी कथाएं सामने आती है है। एक कथा से पता चलता है कि विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन जोकि कात्य गोत्र से थे , उन्होंने देवी के इस स्वरूप की बहुत कठिन तपस्या की और देवी से उनके गोत्र में आने की बात की।

वे चाहते थे कि देवी के आशीर्वाद से उन्हे एक पुत्री प्राप्त हो। महर्षि कात्यायन जी की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने स्वयं उनके घर में पुत्री रूप में जन्म लिया। मान्यता है कि कात्य गोत्र में जन्म लेने की वजह से देवी के इस स्वरूप का नाम कात्यायनी पड़ गया।

एक दूसरी कथा यह भी बताती है कि जब दानव राज महिषासुर का पृथ्वी पर अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था उस समय त्रिदेवों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर इस देवी को दानव महिषासुर का वध करने लिए उत्पन्न किया था।

कहा जाता है कि महर्षि कात्यायन ने विश्व में सर्वप्रथम इस दिव्य देवी की आराधना की थी । इसी वजह से जगत जननी का यह रूप कात्यायनी के नाम से जाना जाने लगा।

ऐसी मानयता है कि भगवान् श्री विष्णु जी के अवतार भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की सभी गोपियों ने कालिन्दी-यमुना के तट पर आदिशक्ति के इसी स्वरूप की आराधना की थी। पूरे ब्रजमंडल में यह देवी अधिष्ठात्री देवी के रूप पूजी जाती है।

स्वरूप – देवी का यह स्वरूप अत्यंत कल्याणकारी और कष्टों को हरने वाला है। इस स्वरूप में इनकी चार भुजाएं है जिनमे वरमुद्रा ,अभयमुद्रा,तलवार और कमल-पुष्प सुशोभित रहते है।

सिंह की सवारी करती हुई यह देवी अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती है। जो मनुष्य श्रद्धा भाव से इनकी भक्ति करता करता है वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।

श्लोक – ज्ञानी पंडित इस देवी को प्रसन्न करने के लिए अपनी पूजा में देवी के इस श्लोक का निरंतर जप करते है और मोक्ष की प्राप्ति करते है।

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन ।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥

नवरात्रि का छठा दिन सूर्य की पहली किरण के साथ ही माँ कात्यायनी का गुणगान करने लगता है। इनकी आराधना से मनुष्य अपने दुश्मनों का संहार करने में पूर्णता सक्षम बन जाते है। आदिशक्ति के इस दिव्य स्वरूप की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि पर्व के छठे दिन इसका मंत्र जाप करना चाहिए।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

इसका अर्थ है हे जगत जननी माँ ! आप सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे है। आपको मेरा कोटि-कोटि नमन है।

कहा जाता है कि जिन कन्याओ के विवाह मे किसी भी कारण वश अधिक विलम्ब हो रहा हो, या किसी की बुरी नज़र से उनका विवाह का सयोंग बंध चुका हो उन कन्याओं को इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, इससे उनके विवाह के सयोंग जल्द ही खुल जायेगें और बुरी नज़र वालों का सर्वनाश हो जाएगा।

दुष्टों का सर्वनाश करने वाली इस दिव्य देवी से हम प्रार्थना करते है कि ये आपके और आपके परिवार जनों पर सदैव अपनी कृपा बनाए रखे।

जय माँ कात्यायनी।

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