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विकास एक प्रक्रिया है जिसका अनवरत चलते रहना और चलाते रहना ही मानव की सबसे बड़ी उपलब्धि है- राजेश कुमार सिंह

आखिर 70 साल , 70 साल , 70 साल से देश का बेड़ा गर्क किया गया और अचानक से एक अल्लादीन का चिराग गुजरात से आकर और एक ही झटके में सब कुछ सही कर देता है

आखिर 70 साल , 70 साल , 70 साल से देश का बेड़ा गर्क किया गया और अचानक से एक अल्लादीन का चिराग गुजरात से आकर और एक ही झटके में सब कुछ सही कर देता है

लेकिन जो बात मैं समझता हूँ और काफी लोग सहमत भी होंगे कि विकास एक प्रक्रिया है जिसका अनवरत चलते रहना और चलाते रहना ही मानव की सबसे बड़ी उपलब्धि है क्योंकि मानव मस्तिष्क आवश्यकता के अनुसार अपनी सुविधानुसार नए नए उपक्रम करता रहता है। और यह भी जायज़  है कि विकास के स्वरूप को समझना और उपयोग करना अलग अलग मनुष्य पर निर्भर करता है कोई उसका सदुपयोग करता है तो कोई दुरुपयोग करता है .

आप सोचिये आज से 40 साल पहले हमारे देश की क्या हालत थी और आज क्या है चाहे वो व्यक्तिगत विकास या सार्वजनिक विकास यह प्रकिया समय के साथ चलती ही रहती है, परन्तु इस विकास के क्रम में आर्थिक  उदारवादी विचार ने ज़रुर देश का बेड़ा गर्क किया, क्या जिस प्रकार से पहले कोऑपरेटिव संस्थाओं का विकास हुआ किसानों का विकास हुआ 1985 से पहले वैसा आगे भी हुआ , नही हुआ क्योंकि सौदागर किस्म के लोगो का उदय हुआ जिन्होंने देश को धर्म जाति  सम्प्रदाय के नाम पर देश को बांटने का काम किया , ज़रा सोचिए हम सुबह से शाम तक अपने काम के सिलसिले से आते है जाते है कभी कोई पूछता है कि आपकी जाति क्या है ? नही, क्योंकि मानव की यह भावना प्रकृति है विचारों के साथ जुड़ा है और मेरा मानना यह है कि धर्म केवल और केवल जीवन जीने की कला है इसके अलावा कुछ भी नही और सबसे बड़ा धर्म मानवता है और सम्पूर्ण विश्व मे 3 ही जातियां है एक पुरुष दूसरा स्त्री और अंतिम उभयलिंगी । यह बात सबको समझने की ज़रूरत है। इसी में सबका भला है ।

किसी के आने और किसी के जाने से कुछ नही होने वाला क्योंकि जो भी आते है कमीशन के ही चक्कर मे आते है, देश सेवा का नाम लेने वाले लगभग सभी राजनेता और मंत्री करोड़ो के पूँजीवादी सोच के पक्षधर है नही तो क्या जरुरत है bmw और ऑडी जैसे गाड़ी की , क्योंकि चलने के लिए तो मारुति और महिन्द्रा जैसे स्वदेशी वाहन भी काफी है ।।

मुझे नही पता कि मैं सही हूँ या गलत परंतु आज के लोकतंत्र केवल सिम्बोलिक लोकतंत्र है जहां पर राजनीतिक पार्टी रजवाड़ो का रूप परिवर्तन है । अगर ऐसा नही है  तो देश मे 30 साल से चल रही परियोजना कभी पूरी नही होती और एक दल होटल वाली साज सज्जा का कार्यालय दो ढाई साल में ही कर लेता है ।

मैंने सुना है कुछ बुद्धिजीवी लोगो ने चुनाव के समय पार्टी सिंबल को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन किया है मेरा मानना है कि देश के सभी नागरिकों को इसका समर्थन करना चाहिए ।।

राजनीतिक दल रहें लेकिन इनके निशान के बजाय प्रत्याशी  के नाम और उनकी तस्वीर ही बैलेट पेपर पर हो या EVM पर वैसे evm भरोसेमंद नही है ।

Rajesh Kumar Singh

राजेश कुमार सिंह (राजनीतिक विश्लेषक)

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