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मोदी सरकार की नोटबंदी के बाद अब बैंक भी निचोड़ेंगे जनता का खून ।

देश के लगभग सभी बैंकों ने जनता को प्रत्यक्ष रूप से कह दिया है कि कल को यदि किसी भी स्तिथि में बैंक दिवालिया होती है तो बैंक सिर्फ खाताधारक की एक लाख तक की राशी की ही ज़िम्मेवारी लेगा। यदि खाताधारक के खाते में एक लाख से अधिक की राशि जमा हुई है तो बैंक इसकी कोई भी ज़िम्मेवारी नहीं लेगा और ना ही उसके ऊपर एक नया पैसा प्रदान करेगा। इस बात की पुष्टि स्वयं भारतीय रिज़र्व बैंक ने भी की है।

पिछले कईं दिनों से ख़बरों की सुर्ख़ियों में पीएमसी बैंक घोटाले की घटना चर्चा पर बनी हुई थी। आपने देखा ही होगा कि किस तरह से देश की जनता की खून पसीने की कमाई बैंकों के घोटाले का शिकार हुई। जनता का हंगामा ऐसा था कि बैंक घोटाला उजागर होने के बाद से जगह जगह बैंक के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए, जिसमे कितने ही खाताधारकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। कुछ लोग पैसा न होने की वजह से सही समय पर दवाइयां ना लेने के कारण मौत के हवाले हुए तो कुछ बैंक द्वारा दिए गए मानसिक तनाव की वजह से।

ख़बरों के मुताबिक़ जेट एयरवेज के पूर्व तकनीशियन स्व :श्री संजय गुलाटी की सोमवार रात को ओशिवारा में अपने घर में खाना खाने के बाद दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई जबकि फत्तोमल पंजाबी (59) को मंगलवार दोपहर के समय दिल का दौरा पड़ा। ये सभी आंकड़े सरकार और देश की जनता के सामने ही है। पीएमसी बैंक घोटाले खबर अभी पूर्णता ठंडी भी नहीं हुई थी कि अब देश के कुछ बैंकों ने जनता से अपना पलड़ा झाड़ने का विचार कर लिया है।

आम भाषा में कहे तो देश के लगभग सभी बैंकों ने जनता को प्रत्यक्ष रूप से कह दिया है कि कल को यदि किसी भी स्तिथि में बैंक दिवालिया होती है तो बैंक सिर्फ खाताधारक की एक लाख तक की राशी की ही ज़िम्मेवारी लेगा। यदि खाताधारक के खाते में एक लाख से अधिक की राशि जमा हुई है तो बैंक इसकी कोई भी ज़िम्मेवारी नहीं लेगा और ना ही उसके ऊपर एक नया पैसा प्रदान करेगा। इस बात की पुष्टि स्वयं भारतीय रिज़र्व बैंक भी करता है चुकी यह नियम पहले से है परन्तु बैंक और ग्राहक के बीच एक विस्वाश की डोर थी जो वर्तमान हालात में कमजोर हुई है।

अब तो एचडीएफसी (HDFC) बैंक ने तो खाताधारकों की पासबुक में इस बात पर सीधी सीधी मोहर लगाते हुए खुद का पलड़ा झाड़ लिया है नतीजन जनता के बीच में जो बैंकों को लेकर के विश्वसनीयता थी वो पूरी तरह से तहस नहस हो गयी है।

बैंक देश की जनता और सरकार और के बीच में एक विश्वास का स्तंभ होता है जिसे विगत वर्षों में पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर जी ने बड़े यकीन से सींचा था ताकि देश की जनता संकटमुक्त रहे। लेकिन जिस तरह से एचडीएफसी (HDFC) बैंक व् अन्य बैंकों ने बैंक व्यवस्था के जो प्रदशर्न किये है ऐसे में जनता की तक़लीफ़े व् परेशानियां किस हद्द तक सुलझाने वाली है इस बात का अंदाजा आप मुझ से बेहतर लगा सकते है। वैसे भी जमा राशि पर कोई गारंटी नहीं लेकिन लोन लेने पर गारंटर की प्रक्रिया जरूर है।

इतिहास की बात करी जाये तो एक समय था विगत 19 जुलाई, 1969 का, जब देश की तत्काल प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी ने अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व चंद्रशेखर जी के विचार से सहमत होते हुए जनता व् देश के विकास के लिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण का एक अहम फ़ैसला किया था। जिससे कोई भी खाताधारक अपनी सुरक्षित राशि को देश के किसी भी हिस्से में उस बैंक की शाखा से आसानी से हासिल व् जमा कर सकता था।

उनका मानना था कि इससे जनता का बैंको और सरकार के प्रति विश्वास और मज़बूत होगा जो देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में कारगार साबित होगा क्योंकि उस समय बैंक कुछ निजी घराने की बपौती हुआ करते थे, चंद्रशेखर जी की इस सोच को जनता उस समय से सराहती आई है। विगत वर्षों के आंकड़े इसके पुख्ता सबूत है। देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में बैंकों के राष्ट्रीयकरण की ओर से जो योगदान मिला है उसे किसी भी प्रकार से नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

लेकिन वर्तमान सरकार ने ऐसे हालात देश में पैदा कर दिए है जिससे देश व् देश की जनता विकास के नहीं बल्कि मंदी और संकटों के पथ पर पहुँच चुकी है। एक समय था जब लोगों को यक़ीन था कि उनकी खून पसीने की कमाई बैंकों के खातों में पूर्णता सुरक्षित है। लेकिन आज जो फेरबदल देश में हो रहा है ,जिस तरह से बैंक खुलेआम खाताधारकों की पासबुक पर मोहर लगाते हुए लिख रहे कि बैंक सिर्फ उनके एक लाख तक की राशि की ही ज़िम्मेवारी लेगा। ऐसे में जनता का पैसा कितना सुरक्षित होगा ? समुद्र में तूफान आने से ज्यादे खतरा उस सुचना का होता है कि तूफान आ रहा है यह बैंकों का प्रदशर्न भी और सरकार का रवैया भी कुछ इस प्रकार से ही है।

यकीन नहीं होता पर आज बैंकों की बैंकिंग व्यवस्था सीधी सीधी जनता का खून पीते हुए साफ़ साफ़ देखी जा सकती है। ऐन केन प्रकारेण रेवेन्यू बढ़ाने के लिए नए नियमों से आम आदमी के गले और जेब दोनों पर छुरी चलाई जा रही है। अगर आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि न्यूनतम राशि को ना बनाए रखने की वजह से लगभग सभी बैंकों ने तथा देश के सबसे बड़े बैंकिंग संस्था स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (SBI) जैसी बैंक को तीन हज़ार करोड़ से भी अधिक का मुनाफा कर गए वो भी उनसे जिसने बड़ी मुश्किल से एक हजार या दो हजार रूपये जोड़े थे।

मैं पूछना चाहता हूँ कि क्या ये पैसा बड़े बड़े साहूकार का था या फिर मल्टी नेशनल कम्पिनियों का ? ये पैसा सिर्फ और सिर्फ गरीब- मजदूर ग्रामीण परिवारों के खून पसीने का था। ये वही लोग है जो बेचारे अपने खाते में न्यूनतम राशि तक भी नहीं रख पाते है, जिसका फायदा SBI जैसे शिर्षथ बैंक उठाने में ज़रा भी देर नहीं करते और इनके नियम बनाने वाले हुक्मरान संकोच भी नहीं करते ।

कहने को सरकार की ओर से विदेशों में सुनाए जा रहा कि “भारत में सब चंगा है” लेकिन हक़ीक़त कुछ और तस्वीर बयान कर रही है। यूं लग रहा है कि अंदर ही अंदर देश की जनता और देश दोनों की ही जड़ें खोखली की जा रही है। आज हमरे देश की जीडीपी पड़ोसी मुल्क पकिस्तान ,बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों से भी नीचे गिर चुकी है,बची खुची कसर बैंक पूरी कर रहे है। ऐसे में सरकार के भाषण बताते है कि “भारत में सब चंगा है” यदि ये चंगा है तो मंदा क्या है ? ये सरकार क्या हमे फिर से किसी वैश्विक गुलामी ओर अग्रसर रही है ? विचारणीय प्रश्न है।

आज छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा व्यक्ति बैंकों में अपना पैसा रखने से डर रहे है और उनका डरना बनता भी है। आज भारत के नागरिक का बैंको पर से जबरन भरोसा उठाया जा रहा है। ऐसे में जनता अपना पैसा क्या अपने घर में सुरक्षित रखेगी ? आसान भाषा में हम कह सकते है कि हमे फिर से एन केन प्रकारेण मजबूर किया जा रहा है कि हम बैंकों की शरण छोड़ कर फिर से गुलाम भारत की तरह किन्ही बड़े बड़े साहूकारों से आसरा मांगे या फिर अपनी कमाई को अन्य तरीके से संभाल कर रखे। जो कि न्यू इंडिया के निर्माण और 5 ट्रिलियन इकॉनमी वाले सपने के विपरीत है।

क्या इस तरह से न्यू और डिजिटल भारत के सपनो का नए पंख मिल पाएंगें ? यदि सरकार ऐसा सोच रही है या सोचती है तो उसे अपने विचारधारा में मूल्यांकन की जरूरत है उसे आज ही अपनी विचारधारा बदल लेनी चाहिए क्योकि ऐसा करने से इस देश की ना तो अर्थव्यवस्था कभी सुधर पाएगी और ना ही कभी देश में प्रगति आ सकती, क्योकि सरकार के इस नए रास्ते की आख़री मंज़िल सिर्फ देश को एक ऐसे अंधकार के तरफ़ ले जाएगी जिसकी कल्पना करना भी अपने आप में एक नई चुनौती होगी। लोकतंत्र के अंदर अगर असहमति के लिए सहमति नहीं होगी तो वह प्रजातंत्र स्वस्थ नहीं हो सकता ,सरकार में बैठे हुक्मरानो को अपना अहम् त्याग कर के अपने सहयोगी और विपक्षी दोनों के सहयोग से ऐसी निति निर्धारण करने की जरुरत है जिससे विश्वाश और विश्वसनीयत दोनों को बल मिले।

लेखक के यह निजी विचार है इसका thejanmat.com से कोई वास्ता नहीं है

RAJESH . K. SINGH
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