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रोज़गार पर चुप्पी साधने के बाद, 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था कितनी कारगर होगी देश के लिए?

मोदी सरकार ने देश की पेट्रोलियम, पर्यावरण, रेल, रसायन, कपड़ा और वाणिज्य मंत्रालयों के तहत चलने वाली 19 सरकारी कंपनियों को बंद करने की भी घोषणा की है जिसकी वजह कंपनियों में चल रहा घाटे का दौर बताया गया है आपको बता दें कि इन कंपनियों में लाखों कर्मचारियों को रोज़गार मिला हुआ है जो अब खतरे में है।

ख़बरों के माध्यम से हाल ही में सामने आए आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 में पता चला है कि मोदी सरकार ने देश को 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का  बड़ा एलान किया है। लेकिन आपको दें कि अगर भारत को 5 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है तो साल 2025 तक सालाना 8 फ़ीसदी जीडीपी वृद्धि दर बनाए रखना होगा। 

अगर “एनडीए” सरकार इससे जुड़ीं सारी बातों को भली-भाँती समझती है तो फिर इस जीडीपी दर से जुड़ीं बातों पर अपना मौन क्यों नहीं तोड़ती ? क्यों नहीं देश को बताया जा रहा कि रोज़गार के बिना आखिर किस तरह “जीडीपी दर” को बढ़ाया जाएगा। ये सारे सवाल इसलिए सामने आ रहे है  क्योंकि आर्थिक सर्वे में रोज़गार पर ज़्यादा कुछ नहीं कहा गया है। 

आपको बता दें कि साल 2014 की सरकार में मोदी सरकार ने देश के युवाओं को वादा दिया था कि वे सत्ता में आने के बाद दो करोड़ लोगों को रोज़गार देंगे जिससे देश विकास की राह पर चलेगा। लेकिन जब एनएसओ के आंकड़े पता करने का समय आया तो उनपर ताला लगा दिया गया. जिससे रोज़गार के सही आंकड़ें जनता के सामने ना आ सकें। 

मोदी सरकार ने सिर्फ इतना कहा की जीडीपी वृद्धि  के लिए रोज़गार बढ़ाए जायेंगे लेकिन किस तरह बढ़ाएं जायेगें इस पर कोई टिप्पणी नहीं की, ना तो देश के सामने कोई आंकड़ा रखा गया और ना ही यह बताया गया है की देश से युवाओं को नौकरी कैसे और कितनी देंगे। 

आप भी जानते है नौकरी अथवा रोज़गार देश की अर्थव्यवस्था सबसे अहम घटक होता है। लेकिन वित्तमंत्री  निर्मला सीतारमण ने 2019 के आर्थिक सर्वेक्षण  में नौकरी या रोज़गार को लेकर कोई भी आँकड़ा देश के सामने पेश नहीं किया। 

आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक देश की अर्थव्यवस्था 2018-19 में एक हिसाब से 6.6 प्रतिशत की दर से बढ़ी है जिसमे खेती की अर्थव्यवस्था सिर्फ 2.9 फीसदी और  सेवा क्षेत्र की अर्थव्यवस्था 7.5 प्रतिशत बढ़ी है यानी खेती वाला किसान साल में 3 % भी नहीं बढ़ पा रहा है ओर सेवा क्षेत्र वाला 7.5 % से बढ़ा है। 

कहने को कहा जा रहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था जापान जैसी हो जाएगी, पांच ट्रिलियन डॉलर की। लेकिन आपको बता दे कि जापान की कुल जनसंख्या 13 करोड़ है और भारत की सवा-सौ करोड़। अब आप खुद ही सोचें कि  13 करोड़ की जनसंख्या और सवा-सौ करोड़ की जनसंख्या वाले देश पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था क्या एक जैसा रंग दिखाएगी ? क्या इस अर्थव्यवस्था से भारत जापान जैसा विकसित हो जाएगा? बिना जीडीपी दर को बढ़ाये हुए ? बिना रोज़गार को बढ़ाये हुए। आप बिलकुल सही सोच रहें है। बिना संसाधानों के बढ़ाए हुए ऐसा संभव ही नहीं है।

सर्वेक्षण और ‘मुद्रा’ कर्ज़ योजना-

सूत्रों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार सर्वेक्षण में जिस तरह ‘मुद्रा’ कर्ज़ योजना को आगे बढ़ाने की बात पर बल दिया गया है,जिस तरह उसके लिए बजट कोष से राशि आवंटित की गयी है यूं लग रहा है कि सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि मुद्रा योजना के तहत कर्ज़ लेकर ही अपनी दाल-रोटी शुरू करें। 

सीधे शब्दों में कहें तो सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण में साफ़ कर दिया है कि वह सरकारी नौकरियाँ देने में सक्षम नहीं है इसलिए मुद्रा योजना से नए काम की शुरुआत करें। अब मुद्रा योजना से कितने लोग सफल हुए है इसका पता तो योजना के रोज़गार-आंकड़ों से चल सकेगा। 

आपको बता दें कि सरकार का कहना है कि वे देश में नई-नई कंपनियाँ लाएगी जिससे रोज़गार की मात्रा वृद्धि होगी,लेकिन इस बात का ढोल साल 2014 के चुनावों से ही पीटा जा रहा है जिसकी सिर्फ आवाज़ ही सुनने को मिलती है। बीते 5 सालों में कितने लोगों को नौकरियाँ मिली हैं, इस सवाल का जवाब सरकार के पास नहीं है। 

“एनएसएसओ” की रिपोर्ट के आंकड़े भी सरकार के दावों को गलत ठहराती है। एयर इंडिया, बीएसएनएल और एमटीएनएल के मामलों को देखकर साफ़ पता चलता है कि हमारी सरकार रोज़गार को लेकर कितनी गंभीर है। सरकार ने साफ़ कर दिया है कि वह अब एयर इंडिया का बोझ नहीं उठा सकती है और अब अपनी 76 फ़ीसदी हिस्सेदारी निजी कंपनियों को दे देगी। ऐसे में “एयर इंडिया” के 20 हजार से ज्यादा कर्मचारियों की नौकरी खतरे में पड़ गई है। 

हाल ही में मोदी सरकार ने देश की पेट्रोलियम, पर्यावरण, रेल, रसायन, कपड़ा और वाणिज्य मंत्रालयों के तहत चलने वाली 19 सरकारी कंपनियों को बंद करने की भी घोषणा की है जिसकी वजह कंपनियों में चल रहा घाटे का दौर बताया गया है आपको बता दें कि इन कंपनियों में लाखों कर्मचारियों को रोज़गार मिला हुआ है जो अब खतरे में है। 

अब सवाल ये आता है देश की सरकारियों को खत्म करने से रोज़गार सृजन कैसे होगा? खेर,अब देखना ये होगा कि जो भी हो देखना होगा कि सरकार का यह फैसला देश और देश की जनता के लिए कितना कारगर सिद्ध होता है।

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