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अपराजित निडर ईमानदार राजनेता बाबू जगजीवन राम से वर्तमान के राजनेताओं को सीखना चाहिए !!

बाबूजी ने सदैव निडरतापूर्वक अन्याय का सामना किया एवं साहस, ईमानदारी, ज्ञान व अपने अमूल्य अनुभव से सदैव देश की भलाई की। वे स्वतंत्र भारत के उन महान नेताओं में से एक थे जिन्होनें दलित समाज की दशा बदल दी व एक नयी दिशा प्रदान की। इन्होनें सदा एक ही चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया व सदा अपराजित ही रहे। बाबू जगजीवन रामजी ने वर्ष 1936 से वर्ष 1986 तक अर्थात आधी शताब्दी तक राजनीति में सक्रिय रहने का विश्व कीर्तिमान भी स्थापित किया।

जगजीवन राम तपे कंचन की भांति खरे व सच्चे हैं | मेरा हृदय इनके प्रति आदरपूर्ण प्रशंसा से आपूरित है – राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी

आज जब देश में हर जगह जोरों की चर्चा चल रही है निजीकरण, नई कृषि नीति, नई शिक्षा नीति तथा देश में कोरोना के कारण स्वास्थ्य आपातकाल जैसी परिस्थिति है, हमारे अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं पर तनाव है तो इस समय बाबू जगजीवन राम को याद करना महत्वपूर्ण हो जाता है।

जब गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के तहत 1937 में चुनाव हुए तो बाबूजी डिप्रेस्ड क्लास लीग के उम्मीदवार के रूप में निर्विरोध एमएलए चुने गए थे । अंग्रेज़ बिहार में अपनी पिट्ठू सरकार बनाने के प्रयास में थे। उनकी कोशिश थी कि जगजीवन राम को लालच देकर अपने साथ मिला लिया जाए। उन्हे मत्री पद और पैसे का लालच दिया गया, लेकिन जगजीवन राम ने अंग्रेज़ों का साथ देने से साफ इनकार कर दिया। पद का लालच उन्हें छू तक नहीं गया था।

बाबू जगजीवन राम के राजनीतिक जीवन का आगाज़ कलकत्ता से ही हुआ। कलकत्ता आने के छः महीनों के भीतर ही उन्होंने विशाल मजदूर रैली का आयोजन किया जिसमें भारी तादाद में लोगों ने हिस्सा लिया। इस रैली से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी को भी बाबूजी की कार्यक्षमता व नेतृत्वक्षमता का आभास हो गया। इस काल के दौरान बाबूजी ने वीर चन्द्रशेखर आज़ाद तथा सिद्धहस्त लेखक मन्मथनाथ गुप्त जैसे विख्यात स्वतंत्रता विचारकों के साथ काम किया।

वर्ष 1934 में जब सम्पूर्ण बिहार भूकंप की तबाही से पीड़ित था तब बाबूजी ने बिहार की मदद व राहत कार्य के लिए अपने कदम बढ़ाए। बिहार में ही पहली बार उनकी मुलाकात उस काल के सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रभावशाली व अहिंसावादी स्वतंत्रता सेनानी माननीय महात्मा गाँधी से हुई। महात्मा गाँधी ने बाबू जगजीवन राम के राजनीतिक जीवन में एक बहुत अहम भूमिका निभाई, क्योंकि बाबूजी यह जानते थे कि पूरे भारत वर्ष में केवल एक ही स्वतंत्रता सेनानी ऐसा था जो स्वतंत्रता व पिछड़े वर्गों के विकास, दोनों के लिए लड़ रहा था, और वे थे गांधीजी। अन्य सभी सेनानी दोनों में से किसी एक का चुनाव करते थे। जब ईस्ट इण्डिया कंपनी के अंग्रेज फूट डालो राज करो नीति अपनाते हुए दलितों को सामूहिक धर्म-परिवर्तन करने पर मजबूर कर रहे थे तब बाबूजी ने इस अन्यायपूर्ण कर्म को रोका। इस घटनाक्रम के पश्चात् बाबूजी दलितों के सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता के रूप में जाने गए व गांधीजी के विश्वसनीय एवं प्रिय पात्र बने व भारतीय राष्ट्रीय राजनीती की मुख्यधारा में प्रवेश कर गए। कमजोर और दलित वर्ग के उत्थान के लिए उन्होंने दो अन्य संस्थानों का भी गठन किया था। – खेतिहर मजदूर सभा व भारतीय दलित वर्ग संघ

बाबूजी की बढ़ती राजनैतिक शक्ति व लोकप्रियता के कारण अंग्रेज़ों ने उनके समक्ष बड़ी रकम के बदले समर्थन देने की बात रखी जिसे बाबूजी ने क्षण भर की भी देर न करते हुए तुरन्त ही ठुकरा दिया। कठपुतली सरकार का खेल ख़त्म हो चुका था व कांग्रेस ने सरकार का गठन किया। बाबूजी को इस सरकार में कृषि मंत्रालय, सहकारी उद्योग व ग्रामीण विकास मंत्रालय में संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया। वर्ष 1938 में अंदमान कैदियों के मुद्दे पर व द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेज़़ सरकार द्वारा भारतीय सैनिकों के इस्तेमाल से महात्मा गाँधी अति क्रोधित हुए व उनके एक आवाह्न पर सभी कांग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया। तत्पश्चात गांधीजी ने 9 अगस्त 1942 से उनके विख्यात आन्दोलन ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ को प्रारम्भ किया। उन्होने बाबूजी को बिहार व उत्तर पूर्वी भारत में इस आन्दोलन के तेज़ी से प्रचार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी जिसे बाबूजी ने बहतरीन रूप से निभाया। किन्तु प्रचार के दस दिन बाद ही बाबूजी गिरफ्तार कर लिए गए। 1943 में रिहा होने के पश्चात् बाबूजी ने भारत को आज़ाद करने के लिए पूरा ज़ोर लगाया। बाबूजी उन बारह राष्ट्रीय नेताओं में से एक थे जिन्हें अंतरिम सरकार के गठन के लिए लार्ड वावेल ने अगस्त 1946 को आमंत्रित किया था।

पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित प्रथम लोकसभा में बाबूजी ने श्रम मंत्री के रूप में देश की सेवा की व अगले तीन दशकों तक कांग्रेस मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ाई। इस महान राजनीतिज्ञ ने भारतीय राजनीति को अपने जीवन के 50 वसंत से भी अधिक दिए। संविधान के निर्माणकर्ताओं में से एक बाबूजी ने सदैव सामाजिक न्याय को सर्वोपरि माना है।

पंडित नेहरू का बाबूजी के लिए एक विख्यात कथन कुछ इस प्रकार है – ‘समाजवादी विचारधारा वाले व्यक्ति को, देश की साधारण जनता का जीवन स्तर ऊँचा उठाने में बड़े से बड़ा खतरा उठाने में कभी कोई हिचक नहीं होती।

श्री जगजीवन राम उन में से एक ऐसे महान व्यक्ति हैं’ श्रम, रेलवे, कृषि, संचार व रक्षा, जिस भी मंत्रालय का दायित्व बाबूजी को दिया गया हो उसका सदैव कल्याण ही हुआ | बाबूजी ने हर मंत्रालय से देश को तरक्की पहुँचाने का अथक प्रयास किया। स्वतंत्र देश घोषित होने के उपरान्त भारत के निर्माण की पूरी ज़िम्मेदारी नयी सरकार पर थी और इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान बाबूजी का रहा।

बाबूजी संसद भवन को अपना दूसरा घर मानते थे। वर्ष 1952 में पंडित जवाहरलाल नेहरु ने सासाराम से निर्वाचित बाबू जगजीवन राम को संचार मंत्री की उपाधि दी। उस समय संचार मंत्रालय में ही विमानन विभाग भी शामिल था। बाबूजी ने निजी विमान कम्पनियों के राष्ट्रीयकरण की ओर कदम बढ़ाए। परिणामस्वरूप वायु सेना निगम, एयर इंडिया व इंडियन एयरलाइन्स की स्थापना हुई। इस राष्ट्रीयकरण योजना के प्रबल विरोध होने के कारण लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल भी इसे स्थगित करने के पक्ष में खड़े हो गए थे। परन्तु बाबूजी के समझाने पर वे मान गए व विरोध भी लगभग ख़त्म हो गया। गाँवों में डाकखानों का जाल बिछाने की बात भी उन्होंने कही व नेटवर्क के विस्तार का चुनौतीपूर्ण कार्य आरम्भ किया।

बाबूजी के इस मेहनती अंदाज़ को भारत वर्ष के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने कुछ इस प्रकार बयान किया है – ‘बाबू जगजीवन राम दृढ़ संकल्प कार्यकर्ता तो हैं ही, साथ ही त्याग में भी वे किसी से पीछे नहीं रहे हैं | इनमें धर्मोपासकों का सा उत्साह और लगन है’

विमान सेवा को देशहित में करने के लिए निजी कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करके वायु सेना निगम, एयरइंडिया व इंडियनएअरलाइंस की स्थापना की। रक्षामंत्री के रूप में उन्होंने कहा कि युद्ध भारत के सूई की नोंक के बराबर भूभाग पर भी नहीं लड़ा जायेगा व 71 में बांग्लादेश के मुक्तिसंग्राम में ऐतिहासिक रोल निभाया। उन्होंने जनवितरण प्रणाली की नींव रखी।

चीन व पाकिस्तान से जंग के पश्चात भारत में गरीबी व भुखमरी के हालात पैदा हो गए थे तथा अमेरिका से पी.एल. – 480 के तहत मिलने वाला गेहूं व ज्वार खाद्य आपूर्ति का मुख्य स्रोत था। ऐसी कठिन परिस्थिति में बाबूजी ने डॉ॰ नॉर्मन बोरलाग की सहायता से हरित क्रान्ति की बुनियाद रखी व मात्र दो वर्षों के उपरान्त ही भारत फ़ूड सरप्लस देश बन गया। कृषि एवं खाद्य मंत्रालय में रहते हुए बाबूजी ने देश को भीषण बाढ़ से भी राहत पहुँचाई व भारत को खाद्य संसाधनों में आत्मनिर्भर बनाया था।

1974 में बाबूजी ने कृषि एवं सिंचाई विभाग की ज़िम्मेदारी ली व एक नयी प्रणाली ‘सार्वजनिक वितरण प्रणाली’ की नीव रखी जिसके द्वारा यह सुनिश्चित किया गया कि देश की आम जनता को पर्याप्त मात्रा व कम दाम में खाद्य पदार्थ उपलब्ध हों।

बाबू जगजीवन राम महात्मा गांधीजी के प्रिय तो थे ही साथ ही पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं श्रीमती इन्दिरा गाँधी जी के सबसे अहम सलाहकारों में से भी एक थे। वर्ष 1966 में माननीय डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद जी के निधनोपरांत कांग्रेस पार्टी का आपसी मतभेदों व सत्ता की लड़ाई के कारण बंटवारा हो गया | जहां एक तरफ नीलम संजीवा रेड्डी, मोरारजी देसाई व कुमारसामी कामराज जैसे दिग्गजों ने अपनी अलग पार्टी की रचना की वहीं श्रीमती इन्दिरा गाँधी, बाबू जगजीवन राम व फकरुद्दीन अली अहमद जैसे आधुनिक सोच के व्यक्ति कांग्रेस पार्टी के साथ खड़े रहे। वर्ष 1969 में बाबूजी निर्विरोध कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के रूप में स्वीकारे गए व बाबूजी ने पूरे देश में कांग्रेस पार्टी को मज़बूत करने व उसकी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए पूर्ण प्रयास किया जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी 1971 के आम चुनावों में ऐतिहासिक व प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई।

श्रीमती इन्दिरा गांधी ने इस ऐतिहासिक घटना का श्रेय बाबूजी को देते हुए कहा – “बाबू जगजीवन राम भारत के प्रमुख निर्माताओं में से एक है | देश के करोड़ों हरिजन, आदिवासी, पिछड़े व अल्पसंख्यक लोग उन्हें अपना मुक्तिदाता मानते हैं

श्री राजीव गाँधी ने कुछ इस प्रकार से अपने विचार व्यक्त किए थे – ‘राष्ट्र को आज़ाद करने में बाबूजी का योगदान बड़ा ही सराहनीय रहा है | देश को अनाज की दृष्टी से आत्म-निर्भर बनाने तथा बांग्लादेश की मुक्ति के युद्ध में उनका योगदान हमेशा याद रखा जायेगा


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