पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की जयंती के अवसर पर गोष्ठी का आयोजन -परमार्थ और मर्यादा रहित राजनीति देश और लोकतंत्र के लिए खतरा
आज देश मे राजनीतिक मर्यादा नाम की चीज रही नही कोई बाथरूम की बात करता गाली गलोज आदि प्रमुख रूप से सत्ताधारी दल का आचरण राह गया है अतिवाद उनका संस्कार हो गए है ।। लेकिन चंद्रशेखर जी तो कई बार संसद में भी अटल जी को गुरु बोलते थे जबकि वैचारिक मतभेद थे यह भी सब जानते है
आज, १७ अप्रैल 2019 को पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर का जन्मदिन है। सोच, समझ और संकल्प सभी में अद्भुत, अद्वितीय। निडर तो जैसे शब्द ही उनके लिए बना हो। आज नरेंद्र निकेतन के सभागार में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका बिषय परमार्थ और मर्यादा रहित राजनीति लोकतंत्र के लिये बड़ा खतरा है। जिसकी अध्यक्षता प्रोफेसर लल्लन सिंह उपाध्यक्ष सजपा चंद्र शेखर ने की ।।
उपस्थित समाजवादियों में प्रमुख रूप से डॉक्टर प्रेम सिंह अध्यक्ष सोसिलिस्ट पार्टी, अभय सिन्हा जयप्रकाश संघर्ष समिति, डॉक्टर शिव शरण सिंह महासचिव सजपा, श्याम जी त्रिपाठी महासचिव, संजय सिंह खुटैल अध्यक्ष किसान मोर्चा , कमरे आलम सचिव सजपा, गिरिजा सिंह मुख्य महासचिव दिल्ली प्रदेश, अशोक चौधरी अध्यक्ष दिल्ली प्रदेश डॉक्टर हेमंत कुमार सिंह , बिजय प्रताप सिंह तथा सैकड़ो के संख्या में आये पूरे देश से समाजवादी साथियों ने पूर्व प्रधानमंत्री को श्रद्धा सुमन अर्पित कर गोष्ठी में भाग लिया ।
आज देश के हर एक राज्य की राज्य इकाइयों के द्वारा भी चंद्रशेखर जयंती मनाई गई ।।
समाजवादियों के तरफ से दिए वक्तव्यों में से कुछ अंश
वे औचित्य को सदैव वरीयता देते थे। और इस बात के लिए उन्होंने बड़ी विश्वसनीयता भी अर्जित की थी. इतनी , कि दोस्त-दुश्मन सभी मानते थे कि अध्यक्ष जी ने कह दिया है, तो करेंगे ही; और जो उचित होगा, न्याय और तर्क संगत , वही करेंगे।
अनेक मुद्दे हैं, जो औचित्य को महत्व न देने से ही उलझे हैं। जैसे, राम मंदिर पर जो लोग अदालत की ओट लेना चाहते हैं ; उस मुद्दे पर उनका सीधा कहना था– जो उचित है, वह हो.
अचरज नहीं कि इस फॉर्मूले से राम मंदिर निर्माण का मामला दो-तीन महीने में ही हल होने की कगार पर था। अमेरिकी विमानों को तेल देने का मसला या उल्फा के आतंक को ख़त्म करना हो ; निर्णय लेने में न तो देर लगती थी , और न कोई ऊहापोह होता था।
एक घटना और-
उल्फा को तो प्रफुल्ल महंत ही बचा रहे थे। लेकिन एक क्षण में दो टूक बात हुई, और उल्फा के शिविरों पर बम बरसाने के आदेश दे दिए गए। जो उचित नहीं होता था, उस पर वे अपनी नापसंदगी भी जाहिर कर देते थे। एक वाकया मनमोहन सिंह जी का देखें। उन्हें रिज़र्व बैंक का गवर्नर चंद्रशेखर जी ने ही बनाया था। प्रकाश सिंह बादल जी की सिफारिश पर। वे ही क्या, कई सिख नेता पैरवी कर रहे थे। कांग्रेस से झगड़ा हुआ। चंद्रशेखर जी ने प्रधानमंत्री पद छोड़ दिया। राजीव गांधी हतप्रभ. कोई प्रधानमंत्री का पद छोड़ देगा इसकी तो उन्होंने और उनके सलाहकारों ने कल्पना ही नहीं की थी। बात भी कभी की होगी तो केवल औपचारिक।
आज देश मे राजनीतिक मर्यादा नाम की चीज रही नही कोई बाथरूम की बात करता गाली गलोज आदि प्रमुख रूप से सत्ताधारी दल का आचरण राह गया है अतिवाद उनका संस्कार हो गए है ।।
लेकिन चंद्रशेखर जी तो कई बार संसद में भी अटल जी को गुरु बोलते थे जबकि वैचारिक मतभेद थे यह भी सब जानते है इमरजेंसी की ज्यादतियों और आरक्षण आंदोलन के विष को शमन करने में भी वे आगे रहे थे।
आज स्थिति बिपरीत है ।। दुःखद .
प्रणाम। अशेष प्रणाम।
I am in fact delighted to read this weblog posts which carries lots of valuable information, thanks for
providing these kinds of statistics.