गणेश चतुर्थी : क्या होती है गणेश चतुर्थी ? आखिर क्यों है दुनिया भर इस पर्व की इतनी मान्यता ?
गणेश चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्यदेकर ब्राह्मण को मिष्ठान पान करवाने से बाप्पा प्रसन्न होते है और हर मनोकामना पूर्ण करते है। वर्षपर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
गणेश चतुर्थी हिन्दू समाज के प्रमुख पर्वों में से एक है। यह त्यौहार भारत के विभिन्न भागों के साथ साथ उन सभी राष्ट्रों में भी धूम-धाम से मनाया जाता है जहां जहां गणेश जी के अनुयायी वास करते है।
यूं तो सारे भारत में ही इस पर्व धूम अलग देखी जा सकती है लेकिन महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी देश के बाकी भागों अधिक धूमधाम से मनाया जाता है। यहां कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा का नो से 11 दिन तक पूजन किया जाता है। लोग बड़े समूह में गणपति बप्पा के दर्शन करने पहुँचते है। 9 से 11 दिन के पूजन के बाद गाजे बाजे से श्री गणेश प्रतिमा को किसी बहते तालाब इत्यादि जल में विसर्जित किया जाता है।
पुराण और गणेश चतुर्थी – पुराणानुसार भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की अवतरण-तिथि बताई गयी है जबकि गणेशपुराण के मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। गण + पति = गणपति। संस्कृतकोशानुसार ‘गण’ अर्थात पवित्रक। ‘पति’ अर्थात स्वामी, ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकों के स्वामी।
गणेश चतुर्थी और प्राचीन कथा – आपको बता दें कि शिवपुराण के अनुसार यह वर्णन है कि एक बार आदि शक्ति माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व बालक गणेश को द्वारपाल के रूप नियुक्त किया और आदेश दिया कि जब तक वे स्नान कर रही है कोई भी अंदर ना आ सके।
लेकिन आदि शक्ति के पति महादेव ने अपने ग्रह में प्रवेश करने की कोशिश की तो बालक गणेश ने उन्हे रोक दिया। (चूंकि बालाक गणेश को माँ पार्वती पनी मैल से बनाया था इसलिए महादेव और बालक गणेश अपने रिश्ते के सत्य से दूर थे) . इस पर शिवगणों ने बालक गणेश से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर धड़ से अलग कर दिया।
जिससे आदि शक्ति माँ पार्वती क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। चारो ओर त्राहि त्राहि मचने लगी। सभी देवतागण भयभीत होने लगे और देवी को शांत करने के लिए उनकी स्तुति करने लगे। लेकिन देवी का क्रोध शांत नहीं हुई अंत में इस पृथ्वी को त्राहि से बचाने व् माता को शांत करने के लिए शिवजी के निर्देश पर विष्णुजी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए।
जिसे मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया और वरदान दिया कि गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर!तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी।
आपको बता दें कि गणेश चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्यदेकर ब्राह्मण को मिष्ठान पान करवाने से बाप्पा प्रसन्न होते है और हर मनोकामना पूर्ण करते है। वर्षपर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
चंद्र दर्शन के करें बचाव – कहा जाता है कि जब भगवान गणेश को गज का मुख लगाया गया तो सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की पर चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराते रहे थे, उन्हे अपने सौंदर्य पर अभिमान था। इसलिए गणेशग जी ने उनका अहंकार तोड़ने के लिए उन्हे श्राप दे दिया और कहा कि आज से तुम काले हो जाओगे, तुम्हारा ये सौंदर्य जिसपर तुम्हे इतना घमंड है ये तुम्हार साथ छोड़ देगा।
इसके बाद जब चंद्रमा को अपनी भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने श्रीगणेश से क्षमा मांगी तो गणेशजी ने कहा सूर्य के प्रकाश को पाकर तुम एक दिन पूर्ण हो ओगे यानी पूर्ण प्रकाशित होंगे। लेकिन आज का यह दिन तुम्हें दंड देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। इस दिन को याद कर कोई दूसरा व्यक्ति अपने सौंदर्य पर कभी अभिमान नहीं कर पाएगा। जो कोई व्यक्ति आज यानी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारे गलती से भी दर्शन करेगा, उस पर कोई झूठा आरोप लगेगा। इसलिए भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं किया जाता।
आपको बता दें कि प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात् व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। लेकिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है। शास्त्रों के अनुसार यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-
‘सिहः प्रसेनम् अवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥’