सिखों के चौथे गुरु श्री राम दास जी की ऐसी रही जीवन यात्रा।
कहते है कि गुरू रामदास साहिब जी ने सिख धर्म को ÷आनन्द कारज' के लिए ÷चार लावों' (फेरों) की रचना की और सरल विवाह की गुरमत मर्यादा को समाज के सामने रखा। इस प्रकार उन्होने सिक्ख पंथ के लिए एक विलक्षण वैवाहिक पद्धति दी।
श्री गुरु राम दास जी सिख धर्म के चौथे गुरु माने गए है। जिन्होंने ने सिख धर्म के साथ साथ दुनिया के सभी धर्मों के लोगों का ज्ञान का नया उपदेश दिया। कहा जाता है कि इनको गुरु की उपाधि 30 अगस्त 1574 को दी गयी थी।
लोगों का मानना है कि उस दौर में जब हर कोई इक दूजे के खून का प्यासा हो रहा था,विदेशी आक्रमणकारी एक शहर के बाद दूसरा शहर तबाह कर रहे थे। उस समय श्री गुरु राम दास जी ने एक पवित्र शहर रामसर का निर्माण किया था। जो आज के समय में गुरु नगरी अमृतसर के नाम से जाना जाता है।
परिचय- सिख धर्म के चौथे गुरु श्री राम दास जी का जन्म चूना मण्डी (लाहौर पकिस्तान) में 24 सितम्बर 1534 ईस्वी में कार्तिक वदी २ को हुआ। इनके पिता जी का नाम बाबा हरिदास तथा माता का नाम दया कौर था।
अपने घर का ज्येष्ट पुत्र होने के कारण बचपन में ही इनका नाम भाई जेठा जी था। कहा जाता है कि इनका परिवार बहुत ही गरीब था ,इनके पिता जी का नाम बाबा हरिदास एक छोटे से दुकानदार थे।
राम दास जी भी काम में पिता का हाथ बटाते थे और उबले हुए चने बेच कर घर का निर्वाह करते थे। जब वे मात्र 4 वर्ष के थे तो इनके माता पिता का इनके सर से हाथ उठ गया था। जिसके बाद इनके भरण पोषण इनकी नानी ने किया।
कहा जाता है कि एक बार गुरू अमर दास साहिब जी, रामदास साहिब जी की नानी के साथ उनके दादा की मृत्यु पर बसर्के आये और उन्हें राम दास साहिब से एक गहरा लगाव सा हो गया। रामदास जी अपनी नानी के साथ गोइन्दवाल आ गये एवं वहीं बस गये। यहाँ भी वे अपनी रोजी रोटी के लिए उबले चने बेचने लगे एवं साथ ही साथ गुरू अमरदास साहिब जी द्वारा धार्मिक संगतों में भी भाग लेने लगे। उन्होंने गोइन्दवाल साहिब के निर्माण की सेवा की।
विवाह – गुरु रामदास जी का विवाह तीसरे गुरु श्री अमरदास साहिब जी की पुत्री बीबी भानी जी के साथ हुआ था और उनके तीन पुत्र भी हुए जिनका नाम पृथी चन्द, महादेव , अरजन था।
कहते है कि शादी के पश्चात गुरु साहिब जी गुरु अमरदास जी के पास रहते हुए गुरु घर की सेवा करने लगे और धीरे धीरे गुरू अमरदास साहिब जी के अति प्रिय व विश्वासपात्र सिक्ख बन गए।
भारत के विभिन्न भागों में लम्बे धार्मिक प्रवासों के दौरान श्री गुरु राम दास जी श्री अमरदास साहिब जी के साथ ही रहते थे। श्री गुरु राम दास जी ने ही आनन्द कार्ज की शुरुआत की थी जो के सिक्ख विवाह के दौरान किया जाता है।
जीवन व् ज्ञान – आपको बता दें कि श्री गुरु रामदास जी ने अमृतसर में हरमंदिर साहिब की नींव रखी थी। श्री गुरु रामदास जी ने स्वर्ण मंदिर की चारों और द्वार बनवाएं जिसका उद्देश्य था यह दीवारें हर धर्म के लोगों के लिए खुलीं है कोई भी यहां बिना किसे रोक -टोक के आ जा सकता है।
लंगर प्रथा को चालने वाले भी श्री गुरु रामदास जी की इस प्रथा में सभी धर्मों के लोगों को भोजन करवाया जाता था,ये प्रथा आज भी दुनिया के सभी गुरुघरों में आदर भाव से चलती आ रही है। सिक्ख धर्म को फैलाने के लिए गुरु साहिब जी ने अपनी सारी जिन्दगी सिक्ख धर्म का प्रचार किया और भूले भटके लोगों को सीधा रास्ता दिखाया । श्री गुरु रामदास जी ने धार्मिक यात्रा को बढ़ावा दिया।
श्री गुरू रामदास जी एक बहुत ही उच्च वरीयता वाले गुणी व्यक्ति थे। जो अपनी भक्ति व् सेवा के लिए विश्व भर बहुत प्रसिद्ध हो गये थे। जब श्री गुरू अमरदास साहिब जी ने रामदास जी को हर पहलू में गुरू बनने के योग्य पाया तो उन्होंने 1 सितम्बर 1574 ईस्वी चतुर्थ नानक’ यानी धर्म के चौथे गुरु के रूप में स्थापित किया।
इसके बाद गुरु रामदास जी ने चक रामदास’ की नींव रखी जो कि बाद में अमृतसर कहलाया। देखते ही देखते यह शहर व्यापारिक दृष्टि से लाहौर की ही तरह महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया।
गुरू रामदास साहिब जी ने स्वयं विभिन्न व्यापारों से सम्बन्धित व्यापारियों को इस शहर में आमंत्रित किया। यह कदम सामरिक दृष्टि से बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ।
यहाँ सिक्खों के लिए भजन-बन्दगी का स्थान बनाया गया। इस प्रकार एक विलक्षण सिक्ख पंथ के लिए नवीन मार्ग तैयार हुआ।
कहते है कि गुरू रामदास साहिब जी ने सिख धर्म को ÷आनन्द कारज’ के लिए ÷चार लावों’ (फेरों) की रचना की और सरल विवाह की गुरमत मर्यादा को समाज के सामने रखा। इस प्रकार उन्होने सिक्ख पंथ के लिए एक विलक्षण वैवाहिक पद्धति दी।
श्री गुरु रामदास जी अपने कार्यकाल के दौरान 30 रागों में 638 भजनों का लेख किया। जिनमें पौउड़ी 138 श्लोक 31 अष्टपदी और 4 वारें शामिल है। जिसे बाद में सिखों के सबसे बड़े ग्रंथ श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी में भी उतारा गया। श्री गुरु राम दास जी ने अपने सबसे छोटे बेटे अर्जुन साहिब को पांचवें साहिब गुरु की उपाधि सौंपी।
अपने अंत समय में वे अमृतसर छोड़कर गोइन्दवाल चले गये और 1 सितम्बर 1581 ईस्वी को गुरु रामदास जी परम ज्योति – ज्योत समा गए। आज गुरु रामदास जी के लिखे श्लोक व् भजन पूरे दुनिया को ज्ञान व् भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते है।