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गंगा नदी को बचाने के लिए 22 साल की संन्यासी साध्वी पद्मावती 8 दिनों से मातृ सदन हरिद्वार में आमरण अनशन पर

गंगा को उसकी अविरलता को मुक्त किया जाये, गंगा को बांधों से बांधा ना जाये, अवैध खनन माफियाओं पर रोक लगे, गंगा को अवैध कब्ज़ों से आज़ाद करवाया जाये।

गंगा का बेटा हूँ और माँ गंगा ने मुझे बुलाया है ये प्रधानमंत्री मोदी जी बार-बार दोहराते है। ठीक भी है माँ तो हमारी प्रकृति ही है जिसकी गोद में हम सब हवा, पानी और अन्य मूलभूत सुविधाओं के साथ बड़े होते है। क्यों नहीं अब वो संज्ञान ले रहे है। क्यों उनके पार्टी के लोग और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री अनाप शनाप बयानबाज़ी कर रहे है बगैर मामले की गंभीरता को समझे बिना। पूरे विश्व में जल, जंगल और जमीन बचाने की मुहिम चल रही है।

इसी पवित्र गंगा को बचाने के लिए पूर्व में 3 संन्यासियों ने अपने आप को होम कर दिया, या कहें उनकी हत्या करवा दी गई। इस बार 22 साल की संन्यासी साध्वी पद्मावती ने जीडी अग्रवाल के बाद अनशन पर बैठने का निर्णय लिया है। वो 8 दिनों से मातृ सदन हरिद्वार में आमरण अनशन पर बैठी है। अपने प्राण देने के लिए कृत संकल्प है अगर सरकार ने उनकी मांगे नहीं सुनी ऐसा उनका कहना है। 4 मुख्य मांगे है उनकी कि गंगा को उसकी अविरलता को मुक्त किया जाये, गंगा को बांधों से बांधा ना जाये, अवैध खनन माफियाओं पर रोक लगे, गंगा को अवैध कब्ज़ों से आज़ाद करवाया जाये।

ये कोई नाजायज़ मांगे नहीं है।ऐसे में आखिर क्यों नहीं सरकार अपने किये वादे पूरे कर रही है, इन मांगों को पूरा करने के लिए जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी और उमा भारती ने खुद प्रधानमंत्री मोदी ने आश्वाशन दिया था। जिसके पूरे ना करने पर प्रोफेसर जी. डी अग्रवाल ने आमरण अनशन करते हुए अपने प्राण त्याग दिये। साध्वी का आरोप है कि मेरी भी हत्या हो सकती है जिस तरह से पिछले बार जहर दे कर संतो को मारा गया मुझे भी मार दिया जाएगा पर मैं पीछे नहीं हटूंगी। अपनी गंगा माँ के लिए मुझे अपने जान की परवाह नहीं है। आखिर क्यों इन मांगों को हल्के में ले रही है और वो कौन लोग है जो नहीं चाहते ये मांगे पूरी हो। साथ ही स्थानीय प्रशासन और सरकार का रैवैया संदेह उत्पन्न करता है। एक तरफ साधु संतों की राजनीति और एक तरफ 22 साल की साध्वी जिसकी जान की परवाह नहीं है।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का बयान बेहद निराशाजनक है कि उत्तराखंड की धरती अनशन करने के लिए नहीं है। वो क्यों नहीं अवैध खनन पर रोक लगाने की बात करते हैं या इस मामलों को निपटाने के लिए किसी तरह की जांच कमेटी की सिफारिश करते है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ और उसके परिणाम उत्तराखंड ने केदारनाथ में बखूबी देखा है। 22 साल की उम्र में कोई अपने आप को गंगा के लिए समर्पित करके प्राणों की आहुति दे दे ये स्वाभाविक नहीं है।

सरकार इतने बड़े बड़े विज्ञापन में एक गिलास पानी बचाने के लिए पैसा खर्च कर रही है आज उसी पानी और गंगा को बचाने के लिए क्यों कोई रास्ता नहीं निकाल रही साध्वी की मांगे कोई गलत नहीं है गंगा को लेकर वैज्ञानिक लगातार रिसर्च कर रहे है जब गंगा अपने खुद के स्थान पर नहीं होगी तो पूरे देश मे इसकी स्थिति का अंदाजा आप आसानी से लगा सकते हैं। गंगा के पानी को लेकर अलग अलग तरह की राजनीति हमेशा होती रही है पर इस तरह साधु और उसकी लड़ाई लड़ने वाले लोगों की जान जाना अच्छी बात नहीं है। पूरे देश में एक मुहिम खड़ी होनी चाहिये ताकि बिना जान दिए जनता के समर्थन से इसे सुलझाया जाएं। साथ ही सरकार की जबावदेही भी तय हो क्योंकि कानून बनाना उसका काम है क्यों नहीं वो गंगा को बचाने के लिए मातृ सदन से लगातार साधु संतों के द्वारा उठाये जा रहे मांगो पर गौर करते हुए करवाई करती है।

श्वेता रश्मि

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Shweta R Rashmi

Special Correspondent-Political Analyst, Expertise on Film, Politics, Development Journalism And Social Issues. Consulting Editor Thejanmat.com

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