जानिए आदिशक्ति की सातवीं शक्ति माता कालरात्रि जी की पावन कथा।
गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है और इनकी नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। वाहन गर्दभ की सवारी करते हुए इनके हाथो में खड्ग-खप्पर के साथ राक्षसों के कटे हुए सर भी है। इनके इस स्वरूप से इनके भक्तो से सभी नकारात्मक शक्तियां दूर रहती है।
नवरात्रि की सातवीं दुर्गा देवी कालरात्रि के रूप में जानी जाती है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार‘ चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों मार्ग खुलने लगता है।
हिन्दू धर्म ग्रंथो में इस देवी की उपासना का अलग ही महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस सृष्टि को दानावों से बचाने के लिए आदिशक्ति ने यह संहारक अवतार लिया था। आपको बता दें कि जगत जननी का यह रूप काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृित्यू, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है।
यह देवी भी भगवान् शिव की तरह त्रिनेत्रधारी हैं। नवदुर्गा के इस कालरात्रि स्वरूप को दुष्टों के संहार की अधिष्ठात्री देवी भी कहा जाता है।
पौराणिक कथा – हिन्दू धर्म मान्यताओं के अनुसार पता चलता है कि इस सृष्टि में एक ऐसा समय भी आया था जब रक्तबीज नामक एक दानव के अत्याचार से देव,पशु,गन्धर्व प्रकृति आदि सब भयभीत होने लगे थे। उस राक्षस से कोई युद्ध नहीं कर सकता था,क्योकिं जैसे ही उसके रक्त का कतरा धरती पर गिरता था वहां एक और रक्तबीज का जन्म हो जाता था। इसलिए सब उस राक्षस जान बचाकर भागते रहते थे।
तीनों लोकों में मचे हुए हाहाकार को देखकर सभी देवता देवों के देव महादेव के पास गए और उनसे सहायता की गुहार लगाने लगे। देवताओं व् प्रकृति की ऐसी हालात देखकर महादेव क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपने क्रोध की अग्नि से महाकाली का आह्वाहन किया और उन्हे रक्तबीज को समाप्त करने का आदेश दिया।
देवी महाकाली का क्रोध भी भगवान् शंकर के क्रोध के समान था। क्रोधित कालरात्रि महाकाली ने अपने खडग से रक्तबीज का शीश धड़ से अलग कर दिया और उसका सारा लहू पी लिया।
रक्तबीज की मृत्यु के बाद भी कालरात्रि का प्रचंड क्रोध शांत नहीं हुआ अब अन्य लोग उनके क्रोध की बलि चढ़ने लगे। इनके भयंकर स्वरूप और उतपात से सृष्टि में हाहाकार मच गया।
ऐसे में मां काली को प्रत्यक्ष रूप में रोकने की शक्ति स्वयं आदिदेव महादेव में भी नहीं थी। इसलिए वे देवी महाकाली के क्रोध को शांत करने के लिए उनकी राह में लेट गए। जब देवी ने देखा कि चराचर ब्रह्माण्ड के स्वामी और उनके पति परमेश्वर उन्ही के पांव के नीचे है तो वे एकदम से शांत हो गई।
श्लोक – देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने वाले उनके निम्नलिखित श्लोक का निरन्तर जप करते रहते है।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता | लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी || वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा | वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि ||
स्वरूप – जैसा कि आप सभी जानते है कि आदिशक्ति का यह सबसे क्रोधित स्वरूप है। इनके शरीर का रंग घने अन्धकार से भी काला है। इनके सर के बाल बिखरे हुए है। महादेव की तरह ये देवी भी त्रिनेत्र धारी है।
गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है और इनकी नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं। वाहन गर्दभ की सवारी करते हुए इनके हाथो में खड्ग-खप्पर के साथ राक्षसों के कटे हुए सर भी है। इनके इस स्वरूप से इनके भक्तो से सभी नकारात्मक शक्तियां दूर रहती है।
देवी कालरात्रि की आराधना से इस ब्रह्मांड की सभी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और सारी की सारी असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। सभी दैत्य, राक्षस,और भूत-प्रेत व् दानव आदि सब उनके स्मरण से ही भागते हैं।
मान्यता है कि इनकी महिमा सभी ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय से भी मुक्त करती हैं। इनकी कृपा से भक्त जन हर प्रकार के डर से दूर हो जाते है।
जिन भक्तों को डरावने स्वप्न या अन्य कोई बाधा होती हो उन्हे एक बार सच्चे ह्रदय से देवी कालरात्रि की उपासना करनी चाहिए। हम देवी कालरात्रि से आराधना करते है कि वे आपके और आपके परिवार जनों पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखे।
जय माँ कालरात्रि।