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उन्नाव की बेटी के लिए न्याय मांग।

एक पूरा परिवार मौत के घाट उतार दिया गया लड़की की आबरू सरेआम उछाली गई और उसे मानसिक रूप से लेकर शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। आम आदमी कहा जाकर अपनी फरियाद करे। पैसा राजनीति और सिस्टम एक मासूम की आबरू पर इतना हावी हो गया है।

उन्नाव बलात्कार मामले की पीड़िता के साथ हुई सड़क दुर्घटना को लेकर भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के साथ जिन लोगों के बारे FIR रजिस्टर्ड की है उनके बारे में कुछ चौकाने वाली जानकारी हाँथ लगी है , इस घटनाक्रम को छुपाने और दबाने में जिन लोगों का सहयोग कुलदीप सिंह को मिला वो कौन लोग है आखिर ??

2017 में जब पीड़िता ने अपने साथ बलात्कार होने के बाद शिकायत दर्ज करवानी की कोशिश की तो इन्हीं लोगों ने उसके साथ खड़े होकर पीड़ित और उसके परिवार को धमकी देनी शुरू की। कुलदीप सेंगर का अपना एक अखबार भी है स्वतंत्र भारत के नाम से जिसे स्थानीय हिंदुस्तान अखबार का पत्रकार ज्ञानेंद्र सिंह देखता था उसी ने लोकल और राज्य की मीडिया में इस खबर को मैनेज किया कुलदीप के लिए सोमवार जो पीड़ित के परिवार की तरफ से दी गई FIR में उसका भी नाम है।

दूसरा शख़्स अरुण सिंह उन्नाव नवाबगंज उन्नाव के ब्लॉक प्रमुख है और रणेंद्र सिंह उर्फ धुन्नी सिंह फतेहपुर जनपद से विधायक हैं प्रदेश सरकार में कृषि मंत्री है, अरुण सिंह हालिया सांसद बने रवि किशन के भी काफी करीबी है। इसके अलावा कोमल सिंह पुराना हिस्ट्रीशीटर है और सेंगर का काफी मुँह लगा है। उसके सारे व्यवसाय को यही संभालता था। एडवोकेट अवधेश सिंह।

जब पीड़िता के जेल में पिटाई हुई तब भी ये लोग शामिल थे और अरुण सिंह कुलदीप के भाई के साथ घटनास्थल पर मौजूद था पर इन लोगों ने अपने प्रभाव से उसका नाम दबा दिया था। खुद कुलदीप सिंह सेंगर की पत्नी उन्नाव जनपद में जिला पंचायत अध्यक्ष हैं उनका नाम संगीता है ऐसे में पूरे सिस्टम में किसी की आवाज़ दबाना कोई मुश्किल काम नहीं है।


गौरतलब है कि पीड़िता ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को खत लिखा, कहा- आरोपी झूठे केस में फंसाने की धमकी देते हैं चिट्टी में 12 तारीख अंकित है और 28 को हादसा हो गया ये कैसे संभव है। पीड़ित को दिये गए सुरक्षा गार्ड उस दिन उसके साथ क्यों नहीं थे जेल से सेंगर पीड़ित परिवार को इस केस को वापस लेने का दबाव डाल रहा था इसकी जानकारी क्या जेल प्रशासन को नहीं थी।

एक पूरा परिवार मौत के घाट उतार दिया गया लड़की की आबरू सरेआम उछाली गई और उसे मानसिक रूप से लेकर शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। आम आदमी कहा जाकर अपनी फरियाद करे। पैसा राजनीति और सिस्टम एक मासूम की आबरू पर इतना हावी हो गया है उत्तर प्रदेश में लॉ एंड आर्डर की कोई सुध लेने वाला नहीं है।

क्या है पूरा मामला –

सेंगर के खिलाफ फरवरी में ज़िले की जेल में बंद बचे चाचा की शिकायत पर रायबरेली के गुरबख्शगंज थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी। जिसपर इस हादसे से पहले कोई समुचित करवाई नहीं हुई बल्कि लोकसभा चुनाव जीतने पर साक्षी महाराज जेल में जाकर कुलदीप से मिलकर उसे धन्यवाद देते है इस हादसे में पीड़िता के परिवार की दो महिलाओं की मौत हो गई जिसमें एक उसकी मौसी और दूसरी उसकी चाची थी , और उनके पति महेश जेल में बंद है सेंगर के भाई के शिकायत पर कोई 10 साल पुराने मामले में।

विधायक पर हत्या, हत्या के प्रयास, आपराधिक साजिश और आपराधिक धमकी के लिए मामला दर्ज किया गया है।


उनकी शिकायत में, बचे के चाचा का उल्लेख है कि उन्हें और उनके परिवार को विधायक और उनके लोगों से बार-बार धमकियों का सामना करना पड़ रहा था और उन्हें अदालत में अपने बयान बदलने या सामूहिक बलात्कार मामले में विधायक के साथ समझौता करने के लिए डराया जा रहा था और जेल में है।

पीड़िता के चाचा ने ये भी कहा कि जब भी वह उनके मामले में सुनवाई के लिए उन्नाव जाएंगे, तो विधायक के लोगों ने उन्हें याद दिलाया कि “सरकार विधायक के साथ है।” और केस वापस ना लेने की सूरत में मार डाले जाएंगे।

चाचा का कहना है कि जिस ट्रक में उनका परिवार यात्रा कर रहा था उस ट्रक के ड्राइवर को विधायक और उसके लोगों से जोड़ा गया था। उन्होंने कहा, “टक्कर मारने के इरादे से टकराया गया था।” ताकि गवाह खत्म हो जाये।

एक अलग आवेदन में, पीड़ित के चाचा ने उत्तर प्रदेश सरकार से रायबरेली दुर्घटना के मामले को सीबीआई को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया। एजेंसी पहले से ही सामूहिक बलात्कार मामले और बचे हुए व्यक्ति के पिता की हिरासत की मौत की जांच कर रही है। बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पूरे मामले में मुख्य आरोपी हैं।

उत्तरप्रदेश डीजीपी ने कहा कि प्रथम दृष्टया घटना एक दुर्घटना के रूप में दिखाई देती है लेकिन पुलिस मामले की निष्पक्ष जांच करेगी। श्री कृष्ण ने कहा कि ट्रक चालक, मालिक और क्लीनर को हिरासत में ले लिया गया था और घटनाओं के सटीक क्रम का पता लगाने के लिए एक फोरेंसिक जांच जारी थी। इसमें चश्मदीद गवाह, टायर के निशान और अन्य सबूत शामिल होंगे। इस मामले में पहले ही एक गवाह की हत्या हो चुकी है जो सीबीआई का सरकारी गवाह भी था।

लड़की मुख्यमंत्री आवास पर खुद को जलाने की कोशिश करती है, तब पुलिस की कार्रवाई होती है। लड़की के पिता की मौत हो जाती है. पुलिस हिरासत में। ख़बरें आईं उसे विधायक के भाई ने पीटा था।

क्या उन्नाव काण्ड में इन सवालों के उत्तर- पुलिस ,पार्टी और प्रशासन के पास हैं ?

नोट : पूरी तरह मानवीय संवेदनाओं पर आधारित है .


उन्नाव – काण्ड किसी भी सभ्य समाज के लिए कलंक है। मध्यकाल की बर्बर कथाओं के खलनायक अपने सर्वाधिक हिंसक और रौद्र रूप में एक बार फिर हमारे सामने हैं । किसी को भी यह अनुमान लगाने में पल भर नहीं लगेगा कि अब बागड़ ही खेत को खाने लगी है । न्याय आम अवाम के हाथ से फिसल चुका है .अब जिसकी लाठी है ,भैंस भी उसी की है

उन्नाव की दुष्कर्म पीड़िता के साथ समूचा देश खड़ा है । उस बेचारी के पास अब खोने को कुछ नहीं बचा है । पाने के लिए न्याय था , जो अब मिलता नहीं दिखाई दे रहा है ।

आज तक के घटनाक्रम के आधार पर कुछ बुनियादी सवाल खड़े होते हैं। आमतौर पर किसी भी केस में दो तरह के साक्ष्य होते हैं -एक तो सीधे या डायरेक्ट सुबूत और दूसरे परिस्थितिजन्य साक्ष्य. इस मामले में

( अ ) सीधे सुबूत

  1. पीड़िता – उसे मारने की पक्की कोशिश .वह अब जीवन मरण के बीच झूल रही है ।
  2. पीड़िता के पिता – उन्हें जेल में डाला गया .जेल का मामला आरोपी विधायक ने दर्ज़ कराया था .वहाँ आरोपी विधायक के लोगों की पिटाई से मौत ।
  3. एक प्रत्यक्ष दर्शी – उसकी संदिग्ध हाल में मौत हो गई।
  4. पीड़िता की चाची -मामले की प्रत्यक्षदर्शी .उसकी भी रविवार को ट्रक की टक्कर से मौत हो गई ।
  5. पीड़िता दुष्कर्म के समय नाबालिग़ थी । ऐसे में अपराध साबित होने पर आरोपी विधायक को उम्र क़ैद तक हो सकती है .
  6. न्याय न मिलने पर इज़्ज़त के लिए पीड़िता की आत्महत्या की कोशिश ।

( ब ) परिस्थितिजन्य साक्ष्य

  1. इस मामले में पीड़िता के सगे चाचा ही उसके वकील हैं .वे जेल में भेज दिए जाते हैं .उनके स्थान पर जो वकील आते हैं ,उनकी भी ट्रक की टक्कर से मौत हो गई .वे ही कार ड्राइव कर रहे थे ।
  2. वह सड़क चार गाड़ियों के निकलने के बराबर चौड़ी थी .सामने से ट्रक आकर अपनी सीधी लाइन छोड़कर सामने से आ रही कार पर चढ़ बैठता है ।
  3. ट्रक की नंबर प्लेट पर कालिख़ पोती गई थी ।क्या हाई वे पर कोई गाड़ी इस तरह निकल सकती है .भारत का मोटर व्हीकल एक्ट बहुत कठोर है . इस पर दो दिन तक कोई अपराध दर्ज़ नहीं हुआ .उल्टे एक आईपीएस ने इतनी तेज़ रफ़्तार से जांच की कि ट्रक मालिक के किसी आदमी से क़र्ज़ लेने की कहानी मीडिया को बता दी ।
  4. सवाल यह है कि ट्रक के लिए निजी क़र्ज़ अगर पाँच लाख से भी अधिक है तो नक़द क्यों लिया गया । सरकार ने तो इतनी अधिक राशि के कैश लेनदेन पर रोक लगा रखी है ,क़र्ज़ किससे लिया गया ,कब लिया गया ,क्या क़र्ज़ देने वाले के पास सूदखोरी का लायसेंस था ? इस पर पुलिस ने कुछ नहीं किया ज़ाहिर है कि कहानी गढ़ी गई है ।
  5. ट्रक – कार टक्कर के समय 9 सुरक्षा कर्मी नहीं थे ।सारे एक साथ ग़ायब .क़ानूनन एक गनर तो हर हाल में होना ही चाहिए था सुरक्षाकर्मियों के तार आरोपी विधायक से जुड़ते हैं ।उसके सहयोगियों से सुरक्षा कर्मियों की बात होती थी । क्यों नहीं सुरक्षाकर्मियों के ख़िलाफ़ हत्या की साज़िश में शामिल होने का मामला दर्ज़ किया गया ? जो सुरक्षा मांग रहे थे ,वे कैसे मना कर सकते थे ? ज़ाहिर है यह कहानी भी गढ़ी गई है ।साज़िश तो ऐसी रची गई थी कि कार में सवार सारे लोग मारे जाते फिर सुरक्षाकर्मियों को मना करने की कहानी गढ़ने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती।
  6. डीजीपी कहते हैं कि परिवार कहे तो सीबीआई जांच कराई जाएगी । एक डीजीपी को यह क्यों कहना चाहिए ,जबकि सीबीआई को केस सौंपने का अधिकार उनके पास है ही नहीं ।यह तो राज्य सरकार जब केंद्र से अनुशंसा करेगी तो ही सीबीआई जांच करेगी । दूसरी बात पीड़िता के जिस परिवार की बात डीजीपी कर रहे हैं ,क़ानूनन उस परिवार में है ही कौन ? पीड़िता बचेगी तभी कुछ कहने की स्थिति में आएगी ।
  7. सवाल है कि चाचा को जेल में क्यों डाला गया क्योंकि वह पीड़िता का सगा चाचा है ।वह केस लड़ेगा तो जीतने के लिए जान लगा देगा । उसकी भतीजी या एक तरह से उसकी बेटी की इज़्ज़त का मामला है .इसीलिए उसे जेल भेजा गया । दूसरा वकील किया जाएगा तो एक बार उसे प्रभावित करने की कोशिश की जा सकती है।

8. आरोपी विधायक सारे सुबूत इसलिए मिटा रहे हैं क्योंकि अगर साक्ष्य उनके ख़िलाफ़ गए तो सौ फीसदी आजीवन क़ैद होगी उनका राजनीतिक करियर समाप्त हो जाएगा ।कोई सज़ायाफ्ता व्यक्ति ज़िंदगी में कभी चुनाव नहीं लड़ पाएगा । इसलिए अब सुबूत नष्ट होने से उनके बचने की गारंटी बढ़ गई है । कितनी ही कठोर धाराएं लगा दी जाएँ ,सज़ा तो तभी होगी ,जब साक्ष्य होंगे

पार्टी ने अब तक क्यों चुप्पी साधे रखी

  1. उनतीस जुलाई को किसी चैनल की चर्चा में बीजेपी के प्रवक्ता ने कहा कि विधायक अब पार्टी में नहीं हैं .न इसकी कोई औपचारिक घोषणा हुई और न इसकी सूचना पार्टी विधायक दल की ओर से विधानसभा में दी गई । न ही विधानसभा ने कोई अधिसूचना जारी की ।
  2. प्रश्न है कि पार्टी दो साल से क्या कर रही थी । इसके उलट एक सांसद जेल में जाकर विधायक से मिलते हैं । उन्हें खेद नहीं होता न कोई मलाल । अगर विधायक पार्टी से बाहर हैं तो वे एक आम अपराधी हैं और एक अपराधी से जेल में जाकर मिलने पर सांसद से स्पष्टीकरण क्यों नहीं मांगा गया ?

चाचा ने यह एफआईआर दर्ज करवाई है. उधर, एफआईआर के अनुसार एक नया मामला सामने आया है. एफआईआर के अनुसार उन्नाव रेप पीड़िता की सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मियों ने उसकी गतिविधियों की सूचना जेल में बंद बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर को पहुँचाई थी।

कौन है कुलदीप सिंह सेंगर


कुलदीप सिंह सेंगर ने राजनीति की शुरुआत बसपा से की थी और सेंगर ने वर्ष 2002 का चुनाव बसपा के टिकट पर उन्‍नाव से जीता था। इसके बाद बसपा का साथ छोड़कर 2007 में सेंगर ने सपा की टिकट पर बांगरमऊ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की, सेंगर ने ‘साइकिल’ की सवारी शुरू की, और 2012 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी की टिकट पर लड़ा। मुलायम ने सेंगर को भगवंत नगर सीट से टिकट दी, और यहां कुलदीप की जीत हुई। इसके बाद राज्‍य में बदलते माहौल को भांपकर कुलदीप सिंह सेंगर ने समाजवादी पार्टी का साथ छोड़कर BJP का दामन थाम लिया।

उत्‍तर प्रदेश में 2017 में हुआ विधानसभा चुनाव कुलदीप सेंगर ने BJP की टिकट पर बांगरमऊ सीट से लड़ा, और चौथी बार जीत हासिल की। कुलदीप सिंह सेंगर ने 2007 में चुनावी घोषणापत्र में अपनी कुल संपत्ति 36 लाख बताई थी और 2012 में यही संपत्ति एक करोड़ 27 लाख की हो गई। वहीं 2017 के चुनावी घोषणापत्र के मुताबिक, सेंगर की संपत्ति 2 करोड़ 14 लाख तक पहुंच गई।

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Shweta R Rashmi

Special Correspondent-Political Analyst, Expertise on Film, Politics, Development Journalism And Social Issues. Consulting Editor Thejanmat.com

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