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वर्त्तमान समाज और युवावर्ग :– किसी भी राष्ट्र अथवा देश के नवयुवक उस राष्ट्र के विकास एवं निर्माण की आधारशिला होते है।

युवा पीढ़ी में आदर्श और प्रेरक साहित्य के प्रति उनकी अपनी अभिरुचि में भारी कमी आयी गई है।अश्लील एवं स्तरहीन साहित्य की आज भरमार है।

युवा-आंखों में उम्मीद के सपने,नई उड़ान भरता हुवा मन ,जीवन मे कुछ दिखाने का दमखम, और दुनिया को अपनी मुट्ठी में करने का साहस रखने वाला ही युवा कहा जाता है ।युवा सब्द ही मन मे उड़ान और उमंग पैदा करता है ।उम्र का यही वह दौर है जब न केवल उस युवा का बल्कि उसके राष्ट्र का भविष्य तय किया जा सकता है ।

आज के भारत को युवभारत कहा जाता है क्योंकि हमारे देश मे संभव को बदलने वाले युवावों की संख्या अधिक है।

किसी भी राष्ट्र अथवा देश के नवयुवक उस राष्ट्र के विकास एवं निर्माण की आधारशिला होते है। स्वस्थ और शिक्षा से परिपूर्ण नव युवक ही स्वस्थ राष्ट्र और समाज का निर्माण कर सकते है ।इन नवयुवको से ही देश और उस समाज की वास्तविक पहचान होती है।यदि देश के नवयुवको में चारित्रिक दृढ़ता, व नैतिक मूल्यों का समावेश है या कर दिया जाए तथा वे बौद्धिक,मानशिक,धार्मिक,एवं आध्यात्मिक शक्तियों से परिपूर्ण है या परिपूर्ण हो जाये तो नि संदेह हम एक स्वस्थ एवं विकशित राष्ट्र और समाज की कल्पना कर सकते है।

परंतु यदि हमारे युवको की मानशिकता रूण है अथवा उनमे नैतिक मूल्यों का अभाव है तो यह देश अथवा राष्ट्र का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है क्योंकि इन परिस्थितियों मर विकाश और परिवर्तन की केवल कल्पना तक ही सीमित रह सकती है और उसे यथार्त का रूप नही दिया जा सकता है।।

इतिहास साक्षय है कि संसार मे जितनी भी महत्वपूर्ण क्रांतियां हुई है उनमें युवावों की भूमिका सैदव ही महत्वपूर्ण रही है।मानव जीवन का सबसे सर्वश्रेष्ठ समय युवावास्था ही होता है ।उत्साह एवं उमंग से भरपूर युवावों में पहाड़ से टकराने की ललक होती है ।कठिन से कठिन परिस्थितियों से भी जूझने की शक्ति और साहस होता है ।उनकी शारीरिक एवं मानशिक शक्तियां भी अपने विभिन रूपो में प्रस्फुटित होती है और असंभव को भी संभव कर दिखाने की छमता होती है युवावों की नेतृत्व शक्ति कई बार शिद्ध की जा चुकी है ।

।।सर्वप्रथम युवावों को अपने मन से निराशा और हताशा के भावो को अपने मन से उखाड़ फेकना होगा।अपनी शक्तियों पर,अपनी क्षमता व अपनी प्रतिभा पर अटूट विश्वास जगाना होगा ।

नेपोलियन ने कहा था-कि युवा के सब्दकोश में असंभव शब्द है ही नही । ऐशे अपने जीवन का आधार बनाकर सैदेव यही विचार करना होगा कि संसार मे ऐसा कोई कार्य नही जो हम न कर सके।कल्पना करे कि अपने शरीर मे शक्ति श्रोत फुट रहा है ,ऊर्जा की धाराएं प्रवाहित हो रही है,जो कठिन से कठिन कार्य को भी चुटकियो में पूरा कर सकती है।उज्ज्वल भविष्य हमारे लिए स्वागत हेतु तैयार है।इस प्रकार का युवावों को अपने भीतर आत्मविश्वाश अस्थापित करने पर ही अनेक चुनौतियों का सामना करने में सफल हो सकेंगे।एक बार भली भांति ठोक बजा कर युवा अपना लक्ष्य निर्धारित कर ले और दृढ़ एक्छा शक्ति के साथ उस पथ ओर आगे बढ़े।धैर्य पूर्वक अपने पथ पर आगे बढ़ते जाए,असफ़लता आएंगी, पुनः प्रयाश करे, पुनः पुनः प्रयाश करते रहे जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये।

उत्तीष्टत:प्राप्य वरान्निबोधत। इस वाक्य को अपने जीवन का ध्येय बना ले।कठिनाईयो व असफलताओ से कभी घबराये नही।यदि हमारा आत्मविश्वास दृढ़ है तो कोई भी अवरोध अधिक समय तक टिक नही सकता,अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मार्ग में आने वाली अवरोधों पर विजय पाने के लिए साधना, संयम,स्वाध्याय,और सेवा का अभ्याश करे।इस प्रकार आप शारीरिक एवं मानशिक रूप से किशी भी विकट समश्या का सामना करने के लिए स्वयं को तैयार कर सकेंगे।।।

आज के युवा की बर्तमान की हालत,
शिक्षा, बेरोजगारी के हालात में दिशाहीनता भी एक प्रमुख कारण है आज ।
दिशाहीनता की इस स्थिति में युवावो की उर्जावो का नस्करात्मक दिशाओ की ओर मार्ग व भटकाव होता जा रहा है।


लक्ष्य हीनता- लक्ष्य हीनता के मौहाल ने युवावों को इतना दिग्भर्मित करके रख दिया हैं कि उनहे सूझ ही नही ,रहा है कि क्या करे,क्या करना है, देश और समाज मे क्या हो रहा है, और आखिर उनका क्या होगा।

धैर्य,आत्मकेंद्रित, नशा,हिंसा, – आज के युवावों में हिंसा,धैर्य की कमी,आत्मकेंद्रीयता की कमी ,नशा,और कामुकता तो जैशे उनके स्वभाव बनते जा रहे हैं यह एक चिंतनीय विषय है।

वर्तमान समाज-साहित्य समाज का दर्पण होता है आदर्शहीन समाज से किशी युवा को सही मार्गदर्शन नही मिल सकता है,दिशाहीन शिक्षा पद्धति उशे और भ्रमित करती जा रही है ।
भोगवादी आधुनिकता के भटकाव में फशी युवा पीढ़ी दुष्परवीरतियो के दलदल में फसती जा रही है ।
पहले युवा पीढ़ी को अपने आदर्श ढूढने के लिए परिवार समाज के अतरिक्त पुस्तको का भी सहारा रहता था जो कि भारतीय संस्कृति की बहुमूल्य धरोहर है।आज वेद पुराण,राष्ट्र प्रेम,भक्ति की किताबें मात्र 10% युवा पढ़ रहे है ।युवा पीढ़ी में उनको पढ़ना और उस पर चर्चा करना तो दूर अगर कोई युवा अपने युवा साथियो के बीच एशका नाम भी आज लेता है तो बाकी युवा उसको पिछड़े पन की निशानी कह रहे है ।

युवा पीढ़ी में आदर्श और प्रेरक साहित्य के प्रति उनकी अपनी अभिरुचि में भारी कमी आयी गई है।अश्लील एवं स्तरहीन साहित्य की आज भरमार है।

आईये सोचिये,विचारिये और एक ससक्त कदम पे चलिए,जागिये,युवावों को जगाइए और एक ससक्त युवा नेतृत्व में अपनी भागीदारी दीजिये।

लेखक : आलोक सिंह कुंवर
वरिष्ट छात्र नेता टी डी कॉलेज बलिया

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2 Comments

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