370 का हटना सौभाग्य या दुर्भाग्य से एक ऐसे अवसर को जन्म देता है जिसमे संयम की जरुरत है।
चंद गद्दारों की वजह से पूरी कौम को दोष देना उचित है क्या ? जब किसी एक माल्या, मोदी,या किसी भटके हुए सिख को लेकर हम पूरी सिख कौम को गद्धार नहीं कहते तो फिर किसी खान, पठान या कुरैशी की बात आते ही क्यों सारी की सारी कौम पर गद्दारी का लांछन लगा दिया जाता है।
हम उस देश में रहते है जहाँ मैच जीतने पर क्रिकेटरों को भगवान मानने की परंपरा है ,और हारने पर उन्हीं क्रिकेटरों को दे दनादन गालियां देने का रिवाज़ भी है …
आँखें बंद करके फैसला करना ठीक हो सकता है लेकिन कभी कभी। हर बार ये पैंतरा ठीक नहीं हो सकता। इसके दूरगामी परिणाम हमेशा ठीक नहीं हो सकते। जिनको रत्ती भर की जानकारी भी नहीं है।
आज वो सब कश्मीरियों को इस तरह कोस रहे हैं जैसे कश्मीर का हर बंदा पाकिस्तानी ठप्पा लगा कर घूम रहा हो। और हमारी सरकार ने भी भारी युद्ध करके पूरा कश्मीर मुंह लिंचिंग को सौंप दिया है…
देश में मुंह लिंचिंग का दौर जाने कब से चलता आ रहा है। कभी रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर, कभी बांग्लादेशी मुसलमानों को लेकर, और अब ये कश्मीरियों को लेकर दे धड़ा-धड़ शुरू कर दिया है…..
मै उन लोगों के सख्त खिलाफ हूँ जो भारत देश में रह कर भी भारत के प्रति ज़हर उगलते हैं लेकिन मैं देश के तमाम अखबारों को जो भी देख कर पढ़ रहा हूँ उसमें मुझे देश का पैसा लेकर भागे हुये तमाम हिंदू दिखते हैं .
तब मैं जरूर सोचने पर मजबूर होता हूं कि जिस तरह किसी एक भटके हुये कश्मीरी युवक (जो हाथ में “एके 47” लिये एनकाऊंटर में मारा जाता है) उसे देख सारी कश्मीरी कौम को गद्धार मान लिया जाता हैं. ठीक उसी तरह ये नियम नीरव मोदी या मेहुल चौकसी या विजय माल्या जैसे लोगों पर क्यों नहीं लागू होता ?
चंद गद्दारों की वजह से पूरी कौम को दोष देना उचित है क्या ? जब किसी एक माल्या, मोदी,या किसी भटके हुए सिख को लेकर हम पूरी सिख कौम को गद्धार नहीं कहते तो फिर किसी खान, पठान या कुरैशी की बात आते ही क्यों सारी की सारी कौम पर गद्दारी का लांछन लगा दिया जाता है
उस वक्त ना तो हमे कवि “रसखान” याद आते है ,ना शायर “ग़ालिब” , न “मुहम्मद रफी” के नगमे तराने याद आते है , ना सीमांत “गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान”,ना “अशफ़ाक़ उल्लाह खान” की शाहदत दिखाई देती है और ना ही देश को दी हुई महान “एपीजे कलाम साहब” की उपलब्धियाँ। न ही याद रहती है वो मुसलमान कौम जिसका एक मुसलमान कभी देश का पैसा लेकर विदेश भागा हो….
मै आपको बता देना चाहता हूँ कि एक राजनैतिक दल विशेष बरसों से आज़ादी की आड़ लेकर पूरे देश का सांप्रदायिक तानाबाना बिगाड़ने की अपनी राजनैतिक गोटी खेल रहा था जिसे शायद अब जाकर वो मुंह में राम बगल में छुरी वाली कहावत सिद्ध होने पर गौरवान्वित महसूस कर रहा है.
इतिहास गवाह है कि किसी भी त्रासदी से उबरने में बरसों लगते हैं जिसमे लाखों लोगों की जानें चली जाती है। सैकड़ों सुहागिनों का श्रृंगार श्वेत धारण करने पर मजबूर हो जाता है परिवार वालों के चिराग बुझ जाते है,हज़ारों की तादाद में देश का भविष्य बनने वाले पल में यतीम हो जाते है।
जब भी ये नेता लोगों की वजह दंगा होता है उन दंगों लाखों इंसान मुर्दों में तब्दील हो जाते है ज़रूर लेकिन कभी भी इन नेताओं का अपना बच्चा नहीं मरता। मरता है तो एक आम इंसान।
आप लोग अपनी पसंदीदा सरकार के किसी भी निर्णय पर जम कर जश्न मनायें ये आपका अधिकार है मगर भूलियेगा नहीं कि जब भी किसी कौम की बर्बादी पर जश्न मना है ( उसकी ) निगाह आपके घर पर हमेशा रही है. इतिहास कहता है कि के ढेर की चिंगारी ने भी पूरा महल फूंकने की ताकत हासिल की है.
उन कश्मीरियों को कोसने से पहले केवल इतना याद रखिये कि परिवर्तन ने उन अंग्रेज़ों को भी आखिरकार डुबो दिया था जिनका सूर्य कभी अस्त नहीं होता था।. परिवर्तन ने सिकंदर और हिटलर जैसे तानाशाहों की खटिया कड़ी कर दी जो स्वयं को भगवान समझते थे।
जीत का जश्न मनाना अच्छी बात है उसकी खुमारी में किसी कौम के एवं जनता के साथ अन्याय करना ठीक नहीं है। ध्यान रखिये और ईश्वर से दुआ कीजिये कि लोगों को गालियों और कोसने की आंच से कहीं हमारे प्यारे वतन लोग गद्दारों के साथ न मिले।
अभी भी कुछ नहीं बदला आप इतिहास को फिर से अपने ज़हन में उतारिए और देखिये कि किस तरह हमे अंग्रेजों से मिली थी आज़ादी। तब जाकर आपको समझ आएगा कि आखिर ये “जंग ए आज़ादी” क्या है? क्या है कुर्बानी और किस किस कौम के योद्धाओं की देन से मिली है इस देश को आज़ादी। ये देश जितना आपका है इस पर उतना ही हक उनका भी है जिन्होंने अल्लाह हू अकबर कह कर अंग्रेजी सरकार के पसीने छुड़ाए है.
जिस देश के मुसलमान ने देश को परमाणु ताक़त से रूबरू करवाया उन मुसलमानों की आड़ में अपनी ज़हरीली कुंठा पर यहीं रोक लगा लीजिए ताकि हमारे वतन में शांति कायम रहे नहीं तो इतिहास में सिकंदर के हाल को याद रखियेगा।
इस देश में रहकर जो इस देश का वफादार नहीं है वो मेरा दुश्मन है मै उसकी कड़ी निंदा करता हूँ फिर चाहे वो चाहे भाजपा का हो या काँग्रेसी या किसी भी अन्य पार्टी का या फिर चाहे मेरे परिवार का कोई सदस्य ही क्यों न हो। इस मिटटी इस वतन का गद्दार यानी मेरा दुश्मन।
Let me clear here it was the last option left with us. And if there was any option left, then why was it withheld in last 70 years?. We have seen the termoil of 90’s(speaking as a native Kashmiri Pandit). Please dont write anything without any proper ground report. Go to Kashmir and Experience urself.