जन्म दिवस विशेष – अंतिम समय तक युवा तुर्क रहे चंद्रशेखर – रितेश सिंह
युगपुरुष चन्द्रशेखर जी भारत देश की राजनीति के इकलौते अपवाद है।
उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के चन्द्रशेखर जी के लिए यह देश इतना कृतघ्न कैसे हो सकता है। शायद बाबू साहेब का दुर्भाग्य रहा कि वो कृतघ्नों के नायक हुए या फिर वो उस दौर की मेन स्ट्रीम पॉलिटिक्स में रहे जब देश मे भारी राजनीतिक उठापटक रही। शायद इसलिए भी देश चन्द्रशेखर जी के लिए कृतघ्न है, कि वो इस देश के पॉलिटिक्स संरचना से ही खारिज थे।
युगपुरुष चन्द्रशेखर जी भारत देश की राजनीति के इकलौते अपवाद है। जिस विकट दौर में मोरारजी देसाई, ताऊ देवी लाल, राजा मांडा वीपी सिंह, मिस्टर क्लीन राजीव गांधी जैसे स्वयम्भू नेताओ के षड्यंत्र राजनीतिक सुचिता को धक्के पर धक्का देते जा रहे थे। उन्ही षडयंत्रकारियो की फेहरिश्त में एक सिरफिरा भी था जो उसूलों की पतवार थामे धारा के विपरीत रोशनी की तलाश में था।
जब चन्द्रशेखर जी किशोर थे तब आचार्य नरेन्द्र देव और लोकनायक जयप्रकाश ने उनके महान लीडर बनने की भविष्यवाणी कर डाली थी।जब वो वयस्क हुए तो इंदिरा गांधी ने उनके माथे का तेज पढ़ लिया और दुनिया के सुपर बॉस अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन तक को नजरअंदाज कर देने वाली बोल्ड इंदिरा ने उस युवा तुर्क से उलझने की जुर्रत तक नही की।
बात-बात पर अपने चेलों पर खिजकर बरस पड़ने वाले लोहिया को भी यह समझते देर नही लगी कि इब्राहिम पट्टी से आये इस लड़के की तासीर कुछ जुदा है और वे जब पहली बार बतौर सांसद संसद की डिबेट में बोले तो जुबान का वजन देखकर एक सीनियर सांसद ने कंधे पर हाथ रखकर कहा कि नाम से सिंह चाहे बेशक हटा लो लेकिन पहचाने वही जा रहे हो जो तुम हो।
अगर आप मुझसे कहोगे की एक कम्प्लीट लीडर की डेफिनेशन क्या? है तो मैं चन्द्रशेखर जी को आगे करूंगा। लोहिया जी अपने समय के सबसे रचनात्मक लीडर्स में गिने जाते थे।उनके नए-नए विचार पूरे देश में सुने जाते थे। व्यक्तिवादी राजनीति से ग्रसित लोहिया जी के बौद्धिक भाषणों की हर तरफ चर्चाएं जोरो पर हुआ करती थी कि तभी प्रतापगढ़ के एक समाजवादी दल के कैम्प में लोहिया जी का सामना चन्द्रशेखर जी से हो गया…
दरअसल लोहिया जी उस सभा मे जबर भाषण कर रहे थे। लोहिया जी ने कहा कि अगर लड़के को तैराकी सिखानी है तो उसे पानी मे छोड़िए हर बार हाथ पकड़े रहोगे तो वह तैराकी नही सीख पायेगा।पानी के दो घूंट पियेगा तो तैराकी अपने आप सीख जाएगा। इसलिए आपको खतरा मोल लेना पड़ेगा।
जब इस पर लोहिया जी ने प्रश्न करने को आमंत्रण दिया तो चन्द्रशेखर जी खड़े हुए और कहा कि लोहिया जी आपने तैराकी के सिलसिले में तीन बिंदु पर चर्चा करी लेकिन एक चौथा बिंदु भी है जिस पर आप गए ही नही। लोहिया जी ने कहा वह क्या? है,तो चन्द्रशेखर जी ने बताया कि पहला बिंदु है तैराकी सीखने वाला दूसरा सीखाने वाला तीसरा है पानी लेकिन चौथा बिंदु है पानी का नेचर अगर उस पर ध्यान नही देंगे तो तैराकी कैसे सीखेगा मान लीजिए पानी का वेग बहुत ज्यादा हो अथवा पानी मे मगरमच्छ हो।
चन्द्रशेखर जी का यह बौद्धिक स्तर देखकर लोहिया जी अचानक से आवक रह गए और उनकी बात को बिना तर्क के स्वीकार कर आगे बढ़ गए।चन्द्रशेखर जी अपनी आत्मकथा में लिखते है कि लोहिया जी को देखकर मुझे उसी दिन लग गया था कि एक दिन लोहिया जी ही पार्टी तोड़ेंगे।
बाबू साहेब अपने राजनीतिक जीवन मे भी उतने ही स्पष्टवादी रहे जितने की व्यक्तिगत जीवन मे।उन्होंने कभी किसी भी बड़े नेता तक से सीधी बात कहने में गुरेज नही किया।लोहिया को तो वो अपने बगावती तेवर से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही परिचय करवा चुके थे लेकिन अपनी बात के लिए उन्होंने जेपी और इंदिरा गांधी से भी खरी-खरी कहने में कोई गुरेज नही किया।
बाबू साहेब को हमेशा से ही इस बात का ध्यान रहा कि आज के दौर के नेता जिस पद और प्रतिष्ठा के लिए सबकुछ दांव पर लगाने को तैयार है वो इन सबके लिए नही बने है और इसीलिए मोरार जी की सरकार में उन्होंने जेपी के कहने के बाद भी मंत्री पद ठुकरा दिया।
जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो मंत्री पद को लेकर खूब माथापच्ची हुई मोरार जी ने एक नेता मोहन धारियां का नाम मंत्रीयो की सूची में शामिल नही किया तो धारियां शिकायत लेकर बाबू साहेब के पास आये तो बाबू साहेब ने तुरंत मोरारजी को फोन करके कहा कि मैं अपना मंत्री पद मोहन धारियां को दे रहा हूँ आप मेरी जगह उन्हें मंत्री बना दीजिये।
राजनीति में रहते हुए बाबू साहेब के दिल मे सबके लिए अपार स्नेह था। ईर्ष्या और द्वेष की राजनीति उन्हें छू तक नही पाई।आपातकाल के बाद के चुनावों में जनता पार्टी चन्द्रशेखर जी की लोकप्रियता को इंदिरा गांधी के खिलाफ उपयोग लेना चाहती थी और उन्हें रायबरेली से चुनाव लड़वाना चाहती थी। बाबू साहेब जानते थे कि यह उन्हें बदले की राजनीति में घसीटने की चाल है। बाबू साहेब ने एसके लिए तुरंत मना कर दिया। जब मोरारजी की सरकार इंदिरा गांधी के खिलाफ बदले की कार्यवाही करना चाहती थी तो बाबू साहेब अपनी पार्टी के खिलाफ हो गए और उन्होंने इंदिरा गांधी को संरक्षण का पूरा भरोषा दिलाया। बाबू साहेब कहते थे कि लोकतंत्र में वास्तविक सजा जनता देती है और वह सजा इंदिरा गांधी को मिल चुकी है।
अपने अंतिम दिनों में जेपी चन्द्रशेखर के लिए मन ही मन बहुत प्रायश्चित करते थे।दरअसल जब जेपी के सारे चेले नाकारा और निकम्मा निकल गए तो चन्द्रशेखर ही जेपी को अंतिम समय तक रोशनी देते रहे।जेपी कहते थे कि मैं तो चाहता था कि चन्द्रशेखर मोरारजी की जगह ही प्रधानमंत्री बनता लेकिन ऐसा होता तो कुछ लोग जानबूझकर पार्टी तोड़ देते।
बहरहाल जब चन्द्रशेखर जी प्रधानमंत्री बने तो उसके कुछ वक्त बाद ही ब्रिटेन के एक प्रतिष्टित अखबार ने लिखा कि नेहरू के बाद अब जाकर भारत मे कोई प्रभावशाली प्रधानमंत्री बना है,जो बेहत्तर काम कर रहा है।राजनीतिक अस्थिरताओ के बीच जब देश की अर्थव्यवस्था वेंटिलेटर पर सांसे गिन रही थी तब राजीव गांधी के आग्रह पर चन्द्रशेखर जी ने प्रधानमंत्री पद लेकर नीलकंठ बनना स्वीकार किया और बेहतरी से देश चलाने की कोशिश की।
चन्द्रशेखर जी अपनी आत्मकथा में लिखते है कि अगर कुछ महीने और वह इस पद पर बने रहते तो रामजन्म भूमि का विवाद सुलझ गया होता।उन्होंने दोनों पक्षो को इसके लिए राजी भी कर लिया था। लेकिन उससे पहले ही इस नायक का पटाक्षेप हो चुका था।
मैंने नेहरू से लेकर मोदी युग के लगभग सभी अच्छे लीडर को जानने की कोशिश की है। मुझे भारत की महान राजनीति में नेता तो बहुत मिले लेकिन चन्द्रशेखर जी जैसा नायक मैं अभी तक नही ढूंढ पाया। क्योकि वास्तविकता मायनो में शायद चन्द्रशेखर जी इस तरह की राजनीति के स्ट्रेक्चर में बिल्कुल फिट नही बैठते थे जिस तरह की राजनीति हमारे देश मे रही है। इसलिए वह भारतीय राजनीति के सबसे बड़े अपवाद और अपने तरह के इकलौते राजनेता हुए है।
महान नायक की जयंती पर शत-शत नमन!
लेखक रितेश सिंह