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नही रहे जहानाबाद से तालुकात रखने वाले विख्यात हास्य कवी असरार जामई !

असरार जामैई की पहली कविता संग्रह " शायर आज़म"1996 मे प्रकाशित हुआ। कई सरकारी और गैर सरकारी सम्मान से सम्मानित

असरार जामई की एक पंक्ती :-
ऐ देश के रक्षक ये तो बता क्या तुझको नही ये दिखता है !
जिस देश में गंगा बहती है उस देश में पानी बिकता है !!
महान सख्सियत को The जनमत के तरफ से सादर नमन।

असरार जामैई का पुरा नाम सैयद मोहम्मद इसरार उल हक़ है जिनका जन्म बिहार के जहानाबाद जिला के नेज़ाम्पुर मे 20 जुलाई 1938 को हुआ। निजाम्पूर असरार जामैई का ननिहाल था। आप के पिता का नाम सैयद मोहम्मद वली उल हक़ शहोबिघ्वी था शाहो बीघा वो भी जहानाबाद मे ही आता है। सैयद मोहम्मद वली उल हक़ खेलाफत मोवेमेंट मे के दौरान खेलाफत मोवेमेंट मे मोलाना मोहम्मद अली जौहर के साथी थे।

असरार जामैई की प्राथमिक शिक्षा दिल्ली के जामिया विश्वविद्यालय मे हुआ फ़िर रांची विश्वविद्यालय से बी एस सी और BIT pillani से इंजीनियरिंग किया। इंजीनियरिंग करने के बाद पटना आये और 1963 मे अपने मकान सब्ज़ीबाग मे इक़बाल अकादमी की शुरूआत की और और साथ साथ असरार साहिब ने उर्दू, हिन्दी अंग्रेज़ी टाइपिंग इंस्टीट्युट की सहयोग से सैकडों युवाओं को उस समय रोजगार मिला।

असरार जामैई की पहली कविता संग्रह ” शायर आज़म”1996 मे प्रकाशित हुआ। कई सरकारी और गैर सरकारी सम्मान से सम्मानित

असरार जमई की शायरी में चार किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। युवावस्था में उन्हें भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद से अवॉर्ड भी मिल चुका था। अभी तक उर्दू शायरी के प्रति उनका प्रेम और समर्पण पहले की तरह ही मौजूद था और वे इसमें योगदान भी करते रहते थे।

कभी मुशायरों में अपने शेरों से जान डाल देने वाले बुजुर्ग शायर असरार जमई विगत सालों से खुद को जिंदा साबित करने की लड़ाई लड़ रहे थे 80 साल के असरार जमई को सरकारी दस्तावेजों में मृत घोषित किया जा चुका था इसी आधार पर समाज कल्याण विभाग उनकी बुजुर्ग पेंशन भी बंद कर चुका था। जबकि वे खुद अधिकारियों से मुलाकात कर जिंदा होने का सबूत पेश कर रहे थे

जाकिर नगर में रहने वाले असरार जमई पूरी जिंदगी उर्दू शायरी को समर्पित रहे। दक्षिणी दिल्ली के समाज कल्याण विभाग ने उन्हें मृत घोषित करके उन्हें मिलने वाली 1500 रुपये महीने की पेंशन को बंद कर दिया। तब से ही वे सरकारी रिकॉर्डों को दुरुस्त करने के लिए कार्यालयों के चक्कर काट रहे थे

असरार खुद बताते थे कि उन्होंने अधिकारियों को बताया कि मैं आप लोगों के सामने खड़ा हूं। इससे बढ़कर और क्या सबूत हो सकता है। पर अधिकारी कहते हैं कि यह बात तो वे जानते हैं फिर भी इस मामले में कोई मदद नहीं कर सकते। सरकारी दस्तावेजों को दुरुस्त कराने को लेकर वे शीला दीक्षित सरकार और बाद में केजरीवाल सरकार के दौरान भी कार्यालयों में जाते रहे थे

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