AgricultureHealthNationNature
Trending

हर वर्ष बाढ़ की तबाही से होता है करोड़ों का नुकसान। आखिर किन उपायों से रोका जा सकता है बढ़ती हुई बाढ़ को।

भारत में लगभग 400 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ के खतरे हर समय रहता है। एक रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष हमारे देश में लगभग 77 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित होता है। और अगर मानसून की वर्षा अपने उफान पर रहे तो यह आंकड़ा बढ़ते बढ़ते 100 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र की फसलों को नष्ट कर देता है

बाढ़ हमारे देश की वो समस्या है जो हर बार मानसून में पहले से प्रचंड रूप में आती है और फिर चारों तरफ करोड़ों रुपयों की सम्पत्ति को निगलती हुई ना जाने कितनी ही जानों का शिकार करती है। गांव के गांव पलक झपकते ही जल-समाधि ले लेते हैं। हरे-भरे खेत,लहलहाती खड़ी फसलें, बाग, घर-मकान, देखते-देखते नदियों की तेज धारा के साथ बहते हुए अपने अस्तित्व को खो बैठते है।

 अनगिनत पेड़-पौधे एवं दुर्लभ वनस्पतियाँ नदी के तीव्र बहाव से खुद को बचा नहीं पाते है। लाखों पशु बाढ़ की भेंट चढ़ जाते हैं। देश में वर्षा के आगमन के साथ ही बाढ़ का ख़तरा देश की बड़ी आबादी पर मंडराने लगता है और धीरे धीरे आँखों के सामने बीते साल से अधिक बुरी तबाही की तस्वीर बनने लगती है। 

यद्यपि सरकारों द्वारा इस विनाशलीला को रोकने के लिए समय समय कईं प्रबंध किये गए लेकिन नदियों का उफान हर बार उनकी उम्मीदों को तोड़ता हुआ गांव के गांव बर्बाद करके आगे बढ़ जाता है। जिससे साल दर साल विनाश बढ़ता ही जाता है। 

मिली जानकारी के अनुसार पता चलता है कि पिछले 10 सालों में बारिश की मात्रा में बहुत उतार चढ़ाव हुए है जिसकी वजह से बाढ़ से नदियों के निकट रहने वाले गांव को हर साल नुकसान होता रहा। हमारे देश में बाढ़ अधिकतर पूर्वी उत्तर प्रदेश, असम, प.बंगाल, बिहार, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब जैसे राज्यों में आती है। 

भारत में लगभग 400 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ के खतरे हर समय रहता है। एक रिपोर्ट के अनुसार प्रतिवर्ष हमारे देश में लगभग 77 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित होता है। और अगर मानसून की वर्षा अपने उफान पर रहे तो यह आंकड़ा  बढ़ते बढ़ते 100 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र की फसलों को नष्ट कर देता है

क्या है बाढ़ के मुख्य कारण ? 

ऐसे बहुत से कारण है जिनकी वजह से बाढ़ देश में हर बार विकराल रूप के साथ प्रवेश करती है इनमे कुछ इस प्रकार हैं। 

1.  नदी मार्ग में मानव निर्मित व्यवधानों का बढ़ना 

2.  नदी के तल और किनारों में अत्यधिक मलबे का जमा होना

3.  बहती नदियों के धारों में परिवर्तन करना 

4. वनस्पतियों का लगातार विनाश होना 

5. नए जलाशयों का निर्माण 

6. सरकार की ज़िम्मेदारी

ये कुछ ऐसे कारण है जिनकी वजह से बाढ़ प्रभावित राज्यों के साथ साथ देश के अन्य राज्यों को भी ख़तरा बना रहता है। 

क्या हो सकते है बाढ़ को रोकने के मुख्य उपाय – 

1. नदी मार्ग में मानव निर्मित व्यवधानों पर रोक – 

नदियाँ प्रकृति की अद्बुध एवं अतुल्य रचना है जो पर्वतों से निकल कर अलग अलग क्षेत्रों से गुज़रते हुए समुद्र में जा मिलती है। नदियाँ जिन जिन क्षेत्रों से गुज़रती है, वहां के जन जीवन का पालन पोषण एवं जल की कमी को दूर करते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचती है। 

लेकिन जब नदी मार्ग में किसी भी कारणवश मानव निर्मित व्यवधान बनाये जाते है तो नदी अपना प्रकृति मार्ग खो बैठती है, मानसून की बारिशों के दौरान जब इनमे जल का प्रवाह तेज़ होता तो समुद्र तक पहुँचने के लिए इन्हे नया रास्ता बनाना पड़ता है जो हरे-भरे खेत या गांव आदि को अपनी चपेट में ले लेता है। इसलिए विकास के बदले यदि हमारी सरकार सतत विकास कार्य प्रणाली पर अधिक बल दे तो इस समस्या से निजात पाया जा सकता है। 

2. नदी के तल पर मलबे के जमाव को रोकना– 

जब भी किसी मानवीय या अमानवीय कार्यों से नदी की तली में मलबा आदि जमा हो जाता है तो नदी की प्रकृतिक गहराई काम हो जाती है जिसका नतीजा ये होता है कि मानसून के दिनों नदी में जल फ़ैल जाता है और बाढ़ आने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए गांव तथा फसलों को बर्बादी से बचाने के लिए हमे नदी तल में मलबे का जमाव भी रोकना पड़ेगा। ताकि बाढ़ आने की संभावना ना के बराबर रहे .

3. बहती नदियों के धारों में परिवर्तन – 

नदियों के धारों में परिवर्तन करना भी बाढ़ को आमंत्रण देता है जब नदी अपने प्रकृतिक मार्ग के विरुद्ध चलती है, तो खतरा अधिक बढ़ जाता है। उदाहरण के तौर पर जब नदी में पानी का बहाव तेज़ होता है तो उसके रास्ते में आने वाले क्षेत्रों को भी क्षति पहुँचती है. इसलिए जब नदी का मार्ग उसके प्रकृतिक पथ से बदलकर किसी अन्य पथ पर लाया जाएगा तो उन क्षेत्रों में भी नुक्सान की भावना बढ़ जाएगी। 

4. वनस्पतियों का लगातार विनाश होना- 

वनस्पति कुदरत का वो तोहफ़ा है जो पृथ्वी को बाढ़ जैसी आपदाओं से बचाने में सहायता करता है इसलिए जिन क्षेत्रों में वनस्पति ही नहीं होगी वहां वर्षा के जल को नियंटतीत असंभव हो जायेगा। जिसका परिणाम ये होगा कि पानी के तीव्र बहाव के कारण भूमि क्षरण अधिक मात्रा में होगा। पिछले कुछ वर्षों से जिस प्रकार हिमालय के सभी क्षेत्रों में जिस गति से वनस्पतियों का विनाश हुआ है उससे दुगनी गति से देश के उत्तरी भागों में बाढ़ का प्रकोप देखने को मिला है।

5. नए जलाशयों का निर्माण – 

जलाशयों का निर्माण

जानकारों का मानना है कि जब भी किसी क्षेत्र में सामान्य से अधिक वर्षा होती है तो पानी का बहाव देखते ही देखते बढ़ने लगता है और बाढ़ व् तबाही आने का खतरा अधिक हो जाता है राजस्थान, बिहार आदि राज्य अधिक वर्षा के कारण प्रायः हर वर्ष बाढ़ से प्रभावित होते रहते है। लेकिन यदि इन क्षेत्रों में नए जलाशयों का निर्माण किया जाये तो नदी के साथ साथ बारिश के पानी को भी उपयोग में लाया जा सकता है और बाढ़ आदि के खतरे से भी बचा जा सकता है। 

6. सरकार की ज़िम्मेवारी- 

बाढ़ की लगातार समस्या को देखते हुए यह देश की सरकार की ज़िम्मेवारी बनती हैं कि विभिन्न नदी घाटियों के लिये बाढ़ नियंत्रण संबंधी महायोजनाएं तैयार करे और उसे उन क्षेत्रों में लागू करे जहाँ बाढ़ का खतरा अधिक रहता है। इसी के साथ सरकार को नियंत्रण निर्माण कार्यों का बड़े पैमाने पर कार्योत्तर मूल्यांकन करना चाहिए तथा तकनीकी गतिविधियों से सुधारात्मक कार्रवाई पर अधिक बल देना चाहिए। 

यदि इन सभी बातों के अमल पर अधिक बल दिया जाये देश में हर साल आने वाली बाढ़ के खतरे से बहुत हद तक बचा जा सकता है।

जिस तरह बिहार,राजस्थान,उत्तर-प्रदेश आदि जैसे राज्यों में बाढ़ हर साल लाखों लोगो को प्रभावित करते हुए करोड़ों की तबाही करके जाती है ऐसे में यदि मनुष्य कुदरत से खिलवाड़ न करते हुए केवल सतत विकास करने पर अधिक बल दे, तो इस तबाही के मंज़र की तस्वीर कुछ ही सालों में बदल सकती है नहीं तो वो दिन दूर नहीं है जब कुदरत का विकराल रूप हमे बाढ़ के पानी में बहने पर मजबूर कर देगा और हम कुछ भी नहीं कर पाएँगें। 

Tags
Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close