शिक्षा के अधिकार RTE के तहत पब्लिक स्कूल के फ़ीस का भुगतान सरकारें करें – प्रताप चंद्रा
आर्थिक उदारवाद की उपज पब्लिक स्कूल आज जनता के लिए सरदर्द बन चुकी है शिक्षा के नाम पर जिस प्रकार का मुहमाँगा फ़ीस और उनके खर्चे सामान्य नागरिकों के लिए बहुत बड़ी चुनौती के रूप में सामने आये है लॉक डाउन के समय में।
वर्तमान समय में जहाँ पर कोरोना वायरस और लॉक डाउन के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति नाजुक है और यह महामारी ऐसे वक्त में आई है जब देश में वित्तीय क्षेत्र पर दबाव के कारण पहले से ही भारतीय इकोनॉमी सुस्ती की मार विगत समय से झेल रही थी और इसी समय कोरोना वायरस के कारण इसपर और दवाब बढ़ गया है।
दरअसल कोरोना वायरस के कारण देशभर में लॉकडाउन है. सभी फैक्ट्री, ऑफिस, मॉल्स, व्यवसाय आदि सब बंद है. घरेलू आपूर्ति और मांग प्रभावित होने के चलते आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई है ऐसे समय में कोई अभिवावक कहाँ से पब्लिक स्कूलों की भारी भरकम फीस दे पाए। इन्ही विषयों पर चर्चा के लिए हमारे The जनमत प्रतिनिधि ने राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी के अध्यक्ष श्री प्रताप चंद्रा जी से बात की।
विगत ६ दिनों से स्कूल फीस माफ़ी की मांग हेतु राष्ट्रीय राष्ट्रवादी पार्टी के अपील पर पूरे देश से असंख्य लोग भिन्न भिन्न शहरों से अनवरत घर पर ही सामाजिक दूरी के नियम का पालन करते हुए धरना दे रहे हैं और फेसबुक लाईव के माध्यम से अपनी मज़बूरी बताते हुए सरकार से मांग कर रहे हैं .
इसी क्रम में मानव संसाधन मंत्रालय सहित सभी मुख्यमंत्रियों से पत्र लिखकर 7 अप्रैल से लगातार ये लोग मांग कर रहे है कि सभी बच्चों की फीस सरकार RTE के तहत निर्धारित फीस, लाकडाउन के दौरान की ३ महीने की फीस स्कूलों को भुगतान करे जिससे अभिभावकों को राहत मिल सके क्यूंकि इस संक्रमण काल में सभी नागरिकों की स्थिति एक सी हो गई है.
देश के हर एक नागरिक को आर्थिक न्याय का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है, जब देश संक्रमण काल से गुजर रहा है, लोगों की आमदनी नगण्य हो चुकी है, ऐसे में सभी बच्चों की फीस RTE कानून के तहत आर्धिक कमजोर वर्ग हेतु निर्धारित फीस सरकार स्कूलों को भुगतान करे जिससे नागरिकों को आर्थिक न्याय मिल सके और देश के दोयम दर्जे का नागरिक होने का एहसास न हो.
देश संक्रमण काल से गुजर रहा है, जिससे लगभग सभी प्रकार का व्यवसाय बंद है, लोग बड़ी मुश्किल से गुजारा कर रहे हैं और सरकार के निर्देशानुसार अपने व्यवसाय के कर्मचारियों को तनख्वाह देकर उनका जीवन यापन करा रहे हैं, मकान के किरायेदारों को राहत भी दे ही रहे हैं, जबकि दुकानों का किराया, बिजली आदि भी भुगतान कर रहे हैं जिसमे अभी तक सरकार से कोई सहयोग नहीं मिला है।
देश के नागरिक निरंतर सरकार को अपना वित्तीय योगदान भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष टैक्स के रूप में देते ही रहते है आज जब आपदा की स्थिति से नागरिक गुजर रहे हैं तो इस संक्रमण काल में सरकार से कम से कम अपने बच्चों की फीस माफ़ी की अपेक्षा करते हैं और सरकार की यह जिम्मेदारी भी बनती है की वो इसपर संज्ञान ले।