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जानिए सिख धर्म के तीसरे गुरु श्री अमरदास जी की सम्पूर्ण जीवन यात्रा।

ऊंच-नीच की प्रथा पर करारा वार करते हुए गुरु साहिब जी ने लंगर प्रथा को और सशक्त किया और हर जाति के लिए भोजन व्यस्था की। उस समय में भोजन करने के लिए जातियों के अनुसार कतारें लगा करती थीं, लेकिन गुरु अमर दास जी ने सभी के लिए एक ही कतार में बैठकर लंगर छकना यानी भोजन करना अनिवार्य कर दिया।

श्री गुरु अमरदास जी सिख धर्म के तीसरे गुरु के रूप में आज विश्व भर में जाने जाते है। श्री गुरु अमरदास जी सिख पंथ के ऐसे महान प्रचारक थे जिन्होंने परम ज्योति गुरसाहिब बाबा नानक जी के जीवन दर्शन व् उनके दिखाए गए प्रकाश पथ को लोगों तक पहुंचाया तथा उनके द्वारा लगाए गए प्रेम व् भक्ति के पौधे को जन जन तक पहुंचाया।

उस समय की सामाजिक कुरीतियों से लड़ते हुए गुरु अमरदास जी ने एक पंथ की नीव रखी। उनका मानना था कि निस्वार्थ भाव से की गयी जनसेवा और पूर्ण समर्पण से ही ईश्वर को प्रसन्न किया जा सकता है।

आरम्भिक जीवन – सिख धर्म के जानकारों के अनुसार श्री गुरु अमर दास जी का जन्म 4वीं ईस्वी में सन 1479 को वैशाख शुक्ल पक्ष में गुरनगरी अमृतसर के “बसर्के गिलां” गांव में हुआ। इनके पिता जी का नाम तेज भान भल्ला जी था जो एक मध्यवर्ग परिवार के करता हर्ता थे। इनकी माता जी का नाम माता बख्त कौर जी था।

गुरु अमर दास जी बचपन से ही बहुत बड़े आध्यात्मिक चिंतक थे। एक सनातनी हिन्दू परिवार से ताल्लुक रखने वाले गुरु अमरदास जी हर वर्ष माँ गंगा जी के दर्शन के लिए हरिद्वार नगरी जाया करते थे।

अपने परिवार का निर्वाह करने के लिए वे पूरा दिन खेती और व्यापार के काम काजों में व्यस्त रहते और ईश्वर के रूप में हरी भजन करते थे। उनकी भगवान् की ओर ऐसी लगन देखते हुए गांव के लोग उन्हे भक्त अमर दास जी कहकर बुलाया करते थे।

कहा जाता है कि एक बार गुरू अमरदास साहिब जी ने गुरू अंगद साहिब की पुत्राी बीबी अमरो जी से गुरू नानक साहिब के शबद् सुने। उन शब्दों ने अमरदास जी पर ऐसा जादू किया कि गुरु शिष्य अंगद साहिब से मिलने के लिए खडूर साहिब पहुँच गए।

कहते है कि
शाह बिन पत नहीं, ते गुरु बिन गत नहीं।

उस समय दुसरी गद्दी पर विराजमान श्री गुरु साहिब अंगद देवजी के श्री मुख से बाबा नानक के शब्दों की वर्षा होती थी। अमरदास जी ने 61 वर्ष की आयु में अपने से 25 वर्ष छोटे और रिश्ते में समधी लगने वाले अंगद देवजी को अपना गुरु बनाने की ठान ली और लगातार 11 वर्षों तक एकनिष्ठ भाव से गुरु सेवा की। वे नित्य सुबह जल्दी उठ जाते व गुरू अंगद देव जी के स्नान के लिए ब्यास नदी से जल लाते। और गुरू के लंगर लिए जंगल से लकड़ियां काट कर लाते।

गुरु भक्ति और जीव प्रेम की भावना उनमे इस क़दर थी कि गुरू अंगद देव जी ने उन्हें सभी प्रकार से योग्य जानकर ‘गुरु गद्दी’ सौंप दी। आपको बता दें कि उस समय का भारत में अधिकतर समाज “सामंतवादी” था और बहुत सी सामाजिक बुराइयों से ग्रस्त था। जाति-प्रथा, ऊंच-नीच, कन्या-हत्या, सती-प्रथा जैसी समाजिक बुराइया उस समय अपने चरम पर थी। देश ,समाज और जनहित के लिए गुरु अमर दास जी ने इन सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ बड़ा प्रभावशाली आंदोलन चलाया।

ऊंच-नीच की प्रथा पर करारा वार करते हुए गुरु साहिब जी ने लंगर प्रथा को और सशक्त किया और हर जाति के लिए भोजन व्यस्था की। उस समय में भोजन करने के लिए जातियों के अनुसार कतारें लगा करती थीं, लेकिन गुरु अमर दास जी ने सभी के लिए एक ही कतार में बैठकर लंगर छकना यानी भोजन करना अनिवार्य कर दिया।

लंगर छकाने का उनका यह नियम ऐसा बना कि उस समय गुरु-दर्शन के लिए गोइंदवाल साहिब आए मुग़ल बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर ने उसी कतार में ‘संगत’ के साथ लंगर छका।

इसके बाद जब गुरु साहिब जी छुआछूत जैसी कुप्रथा से मिले तो उसको समापत करने के लिए उन्होंने ‘सांझी बावली’ का निर्माण भी करवाया। इसकी ख़ास बात ये थी हर व्यक्ति इसके जल का इस्तेमाल कर सकता था। सती-प्रथा को रोकने के लिए भी बाबा जी ने इसके विरोध में बहुत प्रचार किया। इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले गुरु अमर दास जी प्रथम समाज-सुधारक थे।

समाज में बद्लावव लाने के लिए बाबा जी ने 21 बार हरिद्वार तक की पैदल फेरी लगाई। मार्च 1552 में दिव्य स्वरूप गुरू अंगद साहिब जी ने अमरदास साहिब को तृतीय नानक के रूप में चुना। ये पद गुरू अमरदास साहिब जी की भक्ति एवं सेवा गुरू अंगद साहिब जी की शिक्षा का ही परिणाम था। गुरु प्रचार के लिए अमरदास जी ने 22 धार्मिक केन्द्रोंमंजियां’ की स्थापना की और हर मंजी पर एक प्रचारक प्रभारी को भी नियुक्त किया।

1 सितंबर 1574 को गुरु अमर दास जी दिव्य ज्योति में विलीन हो गए। समाज से भेदभाव खत्म करने के प्रयासों में सिखों के तीसरे गुरु अमर दास जी का बड़ा योगदान है। आज वे हमारे बीच नहीं है लेकिन उनका दिखाया गुरु मार्ग आज भी लोगों को प्रकाश की ओर अगर्सर कर रहे है।

जनसेवा करते हुए अमरदास जी ने निम्नलिखित कार्य किए।

  • गुरु अमरदास जी ने जाति भेदभाव को खत्म करके अपने अनुयायियों के बीच सामाजिक सद्भावना के बीज बोए।
  • गुरु अमरदास जी ने अपने से पहले दो गुरुओं के उपदेशों और संगीतों को लोगों तक पहुंचाने का काम किया।
  • “आनन्द साहिब” जिसे परमानन्द का गीत कहते हैं, का लेखन गुरु अमरदास जी ने ही किया था।
  • साथ ही उन्होंने मंजी और पिरी जैसे धार्मिक कार्यों की शुरूआत की।
  • महिलाओं और पुरुषों की शिक्षा व्यवस्था पर गुरु अमरदास जी ने विशेष जोर दिया था।
  • उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान लंगरों के आयोजन को विशेष महत्व दिया।
  • गुरु अमरदास साहिब ने ही बादशाह अकबर से कहकर सिखों और हिंदुओं को उनपर लगने वाले इस्लामिक जज़िया कर से निजात दिलवाई थी।
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