उच्च न्यायालय, प्रयागराज ने जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर की संदिग्ध नियुक्ति पर लिया संज्ञान, विश्वविद्यालय से मांगा जवाब।


1 सितम्बर 2022 को जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति में समाजशास्त्र विषय की अभ्यर्थी रही नेहा बिसेन की याचिका पर संज्ञान लेते हुए न्यायाधीश सौमित्र दयाल सिंह ने नियुक्ति में हुई धांधली पर कड़ा रुख अपनाते हुए विश्वविद्यालय को यह निर्देश दिया कि याची को एक प्रश्नपत्र की कॉपी औऱ सभी अभ्यर्थियों की नियुक्ति सम्बन्धी दस्तावेज उपलब्ध कराए औऱ याची भी नियुक्त अभ्यार्थी अभिषेक त्रिपाठी और कुमारी स्मिता को प्रतिवादी बनाना चाहे तो वह अगले तारीख में एक अन्य हलफनामा जोड़ने के साथ प्रतिवादी बना सकती है। इस मामले की अगली सुनवाई 15 सितम्बर 2022 को तय किया है। इसके पूर्व इस नियुक्ति पर कुलाधिपति के उपसचिव हेमन्त कुमार चौधरी ने विश्वविद्यालय से इस नियुक्ति में हुई धांधली पर पहले ही जवाब मांगा है।
जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो कल्पलता पांडेय जी ने भयंकर जातिवादी मानसिकता दिखाते हुए एसोसिएट प्रोफेसर के अनारक्षित चार पदों पर ब्राहाम्ण जाति के चार प्रभावी अभ्यार्थियों की औऱ असिस्टेंट प्रोफेसर के अनारक्षित 16 पदों में से 13 पदों पर ब्राहमण औऱ 3 पदों पर सम्पन्न भूमिहार अभ्यर्थियों की नियुक्ति किया है। साथ ही परिणाम जारी होने के तीन हफ्ते बाद भी विश्वविद्यालय ने अपनी बेबसाइट पर इस संदर्भ में कोई आवश्यक प्रपत्रों नही लगाया है।
10 जून 2022 को सह आचार्य यानि एसोसिएट प्रोफेसर के चार पदों का अंतिम परिणाम जारी हुआ जिसमें चारो पदों पर वाणिज्य विषय में डॉ अमित मंगलानी, समाजकार्य विषय में डॉ पुष्पा मिश्रा , समाजशास्त्र विषय में डॉ प्रियंका उपाध्याय पत्नी असीम उपाध्यायऔऱ अंग्रेजी विषय मे डॉ अजय चौबे यानि सभी प्रभावशाली ब्राहाम्ण अभ्यर्थियों को ही नियुक्ति दी। बाद में जारी असिस्टेंट प्रोफेसर के 16 अनारक्षित पदों पर 13 पदों पर सम्पन्न ब्राह्मणों औऱ 3 पदों पर सम्पन्न भूमिहारो की नियुक्ति कर एक भ्र्ष्ट जातिवादी मानसिकता का परिचय दिया है।
अनारक्षित कोटे के अन्य जाति के अभ्यर्थियों का यह आरोप है कि कुलपति ने घोर जातिवाद करते हुए पूरी चयन प्रक्रिया को असंदिग्धता से पूर्ण किया है। 40 अंक की लिखित परीक्षा में बिना प्रश्न पत्र अभ्यर्थियों को दिए ही उनसे ऑब्जेक्शन मांगा गया। कुछ विषय मे जो ऑब्जेक्शन अभ्यार्थियों ने दिए उसको लिया नही गया।
20 नम्बर के पावर पॉइंट प्रजेंटेशन और 10 नम्बर के साक्षात्कार जिस पर अंतिम सूची बननी थी । इस प्रक्रिया में अंक किस आधार पर दिये गये उसकी स्पष्ट जानकारी दिए बिना ही राजभंवन के पत्रों को बिना ध्यान दिए आनन -फानन में जारी कर दिए गए।

कुछ अभ्यार्थी तो ऐसे थे जिन्होंने विश्विद्यालय के शुरूआती दिनों से पठन पाठन में अपना योगदान देकर यहां की शैक्षणिक व्यवस्था में अपना योगदान दिया था। अपनी योग्यता के बावजूद सिर्फ कुलपति के जाति के सम्पन्न अभ्यर्थियों की नियुक्ति हो जाने से क्षुब्ध है ।