कृषि बिल के कारण आज जो भी हो रहा है उसके जिम्मेदार क्या राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह जी हैं ?
केंद्र सरकार ने लॉकडाउन के दौरान जिस प्रकार से कृषि बिल पास करवाया उसका जमकर विरोध हुआ और केंद्र सरकार जिसे अब तक का सबसे बड़ा कृषि सुधार कह रही है लेकिन, देश भर के किसानों का कहना है कि यह कृषि बिल किसानों के मौत का दस्तावेज है और किसानों के शोषण और कॉर्पोरेट्स का फायदा दिलाने का सुनियोजित षड्यंत्र है सरकार के तरफ से।
किसानों के असली गुनाहगार राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह जी हैं जिन्होंने अमर्यादित तरीके से राज्यसभा में बहुमत ना होते हुए भी ध्वनि मत से कृषि बिल की मंजूरी दे दी एनडीए सरकार को ये पता नहीं जाने अनजाने में उन्होंने अपने लिए कितनी बड़ी मुसीबत मोल ले ली हरिवंश जी जैसा व्यक्ति जिसकी ट्रेनिंग पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सहित काफी सारे समाजवादी योद्धाओं के बीच हुई हो वह आदमी इतना कैसे गिर सकता है यह एक यक्ष प्रश्न है जिसने कभी अपने जमीर की आवाज को भी नहीं सुना देश के किसान आज अगर सड़क पर इस ठंड रातों में सो रहे हैं सात किसान शहीद हुए है तो उसके सबसे बड़े दोषी हरिवंश जो दुर्भाग्य से किसान के घर ही पैदा हुए थे और प्रधानमंत्री मोदी जो अपने धनपशु मित्रों के लिए लोकतंत्र का गला घोट कर राज्यसभा में कृषि बिल की मंजूरी लुट ली, नियम क़ानून संविधान को ताक़ पर रखकर किसान विरोधी काला क़ानून बिना वोटिंग के पास किया गया जबकि BJP अल्पमत में थी और उपसभापति ही इसके लिये ज़िम्मेदार हैं और किसानो के असली गुनाहगार हैं।
कृषि बिल के पारित होने के दूसरे दिन जिस प्रकार से चिट्ठी लिखी और नाटकीय तरीके से कार्य करते हुए अनशन पर बैठे हुए राज्यसभा सदस्यों को उन्होंने चाय पिलाने का अभिनय किया और जो जनमानस को चिट्ठियां लिखी उसके एक एक शब्द उनके किए गए व्यवहार के विपरीत हैं।
हरिवंस जी क्या आप जानते हैं ?
बिना वोट कराए राज्यसभा में कृषि बिल क्यों पास हुआ ? क्या इसके पीछे पूँजीपतियों की साज़िश है ? अगर किसानों का फ़ायदा प्रधानमंत्री जी सोच रहे थे तो इस बिल मे किसानों को उनकी फ़सलों का न्यूनतम मूल्य (MSP ) देने वाला नियम क्यों नही जोड़ा गया ?
क्या आप बता सकते है लिखित रूप में कितने राज्यसभा सदस्य सदन में मौजूद थे , कितने अनुपस्थिति थे ?
कितने लोगों ने बायकाट कर सरकार का समर्थन किया? कितने पार्टी के कितने सांसद अनुपस्थिति कराए गए थे? कितने सांसद किस किस पार्टी के उपस्थित थे?वोटिंग की मांग को आपने किसके इशारे पर दरकिनार किया ?जब देश कोरोना से जूझ रहा था तो क्या जल्दी थी उसी दिन इतनी जल्दी में ध्वनि मत से आपने किसानों का डेथ वारंट जारी कर दिया? क्या आपने चंद्रशेखरजी के बारे में किताब लिखी तो उनके साथ भी रहे ! फिर पद की लोलुपता में आप कैसे फंस गए ?
ये सभी प्रश्नों के जबाब भी आप दें ताकि लाखों की संख्या में बैठे हमारे आपके परिवार के लोग ठण्ड की रात में रोड के किनारे ट्रैक्टर और ट्रॉली के साये में जी रहे है । जहां बीजेपी सरकार के सहयोग से उनपर दिन प्रति दिन भिन्न भिन्न प्रकार के यातनाओं से रूबरू होना पड़ रहा है ।
अगर आप मे तनिक भी अपने गुरु का मान है तो अविलंब किसानों से माफ़ी मानिये और उपसभापति के पद से इस्तीफा देकर अपने किये कुकर्मों का प्रायश्चित कीजिये ।।
हरिवंश जी की भूमिका यह सिद्ध करती है कि वो संसद के भीतर निर्वाचित प्रतिनिधि के सभापति के बजाय चयनित प्रतिनिधि के रूप में ही नजर आये इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा की पार्टीतंत्र ने संसद का अघोषित अपहरण कर लिया है और मुख्य राजनितिक पार्टियां आज पूर्ण रूप से धनपशुओं से वित्त पोषित होने कारण चाकर बन चुकी है और उनके नमक का कर्ज बखूबी निभा रही है।
वर्तमान का कारपोरेट जो राजनीतिक दलों को मोटा चंदा देता है! वह भी अदृश्य होकर! जिसको कोई भी दल ये बताने को तैयार नहीं है कि उसको अरबों रुपये चंदे दे देने वाली अदृश्य शक्तिमान कौन है! 1990 के पहले तक पार्टियों में किसानों के पैसे से भी पार्टियां चलती थी लेकिन वर्तमान में ऐसा नहीं है। इसलिए लोकतातंत्रिक व्यवस्था के इस संक्रमण काल में सामान्य मतदाता केवल शून्य की भूमिका में है और उसके लिए किसी भी प्रकार की गुंजाइश नहीं है।
यह मान कर चलें कि सरकार जिसका नमक खा रही है तो उसका हक तो अदा करेगी ही इस व्यवस्था के संक्रमण काल से एक नवीन ब्यवस्था का जन्म होगा इस नयी व्यवस्था में यह कहना मुश्किल होगा की देश की व्यवस्था जनता का शाशन यानि लोकतंत्र के 7 लाख गांव के आधार पर चलेगा या कारपोरेट के सौजन्य से चलेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा परन्तु यह तो स्पस्ट हो चूका है कि देश अब दो हिस्सों में बंट चूका है 98 फीसदी के सामने २ फीसदी लोग है जिसमे राज्य सत्ता और आम जन आमने सामने है, निर्णय तो भविष्य के गर्भ में है और हमें इसका इंतजार करना होगा। वर्तमान समय में पंजाब और हरियाणा और बाकि प्रदेशों के किसानों दवारा चलाया जा रहा आंदोलन के भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता परन्तु इतना तो सर्वविदित है कि इस जनआंदोलन ने किसानों को नयी चेतना और समझ से जोड़ा है।
देश के आजाद होने के बाद यह पहली घटना है जिसमे देश के बडे कारपोरेट घरानों के एकाधिकारवाद पर भी निशाना साधा गया है। यह कोई मामूली बात नही है और वो भी शांतिपूर्वक अनुशाशन के साथ। इन सभी घटनाओं के हम हरिवंश जी को साधुवाद देते हैं जिनके निर्णय ने देश को एक अलग दिशा की ओर सोचने और कुछ कर गुजरने के लिए मजबूर कर दिया।