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करगिल हथियाने की साज़िश में घुटनों पर आ गया था पाकिस्तान । जाने करगिल की कहानी,इतिहास की ज़ुबानी।

पाकिस्तान ने काश्मिरी मुजाहिदों के भेस में धीरे धीरे अपनी फौज के 5000 से भी अधिक सैनिक करगिल पहाड़ी व् आस पास के क्षेत्रों में छुपा लिए थे। जिसकी जानकारी ना तो भारतीय सैनिकों को थी ना ही खुफ़िया एजेंसियों को। इन घुसपैठियों ने भारत की उन चोटियों पर कब्ज़ा कर लिया था जिन्हे हमारे जवान सर्दियों में खाली कर दिया करते थे।

पाकिस्तान। एक ऐसा देश, जिसका निर्माण भारत की आज़ादी के साथ हुआ था। नाम से मुल्क भले ही पाकिस्तान था लेकिन इरादे शुरू से ही नापाक। आज़ादी के बाद से ही पाकिस्तान की नज़र भारत के कश्मीर पर थी.

पाकिस्तान चाहता था कि कश्मीर भारत का नहीं बल्कि पाकिस्तान का हिस्सा बन जाए। और इसी मुद्दे पर आज तक दोनों मुल्क वादी में खून की होली हर पल खेल रहे है। एक अपनी मिटटी को दुश्मनों से बचने में लगा है तो दूसरा हथियाने में। 

इतिहास कहता है कि इसी कश्मीर को जब पाकिस्तान 3 बार आमने सामने की जंग से नहीं जीत पाया तो साल 1999 में उसने करगिल से घुसपैठ करते हुए धोखे का रास्ता अपनाया। 

दरसअल उस वक़्त भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी ने दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए पाकिस्तान और भारत के बीच एक बस सेवा का एलान किया था लेकिन नापाक पाकिस्तान के एक हाथ में अमन का पैगाम तो दूसरे हाथ में धोखे बाज़ी का खंज़र था। 

सैन्य परम्परा के अनुसार सर्द मौसम में पहाड़ खुद को बर्फ के आगोश में छुपा लेते थे तो दोनों सेनाएँ पहाड़ों को छोड देती थी लेकिन इस बार पाकिस्तान के मंसूबे कुछ और थे। बस सेवा के कुछ दिनों बाद ही पाकिस्तान ने औकात दिखा दी थी। 

पाकिस्तान ने काश्मिरी मुजाहिदों के भेस में धीरे धीरे अपनी फौज के 5000 से भी अधिक सैनिक करगिल पहाड़ी व् आस पास के क्षेत्रों में छुपा लिए थे। जिसकी जानकारी ना तो भारतीय सैनिकों को थी ना ही खुफ़िया एजेंसियों को। इन घुसपैठियों ने भारत की उन चोटियों पर कब्ज़ा कर लिया था जिन्हे हमारे जवान सर्दियों में खाली कर दिया करते थे।

 9 मई को करगिल,द्रास जैसे  क्षेत्रों में ज़बरदस्त बमबारी के चलते पाकिस्तान ने भारी मात्रा में गोला बारूद अपनी फौज तक पहुंचा कर ऑपरेशन “अल बदर” शुरू कर दिया था।

भारतीय खेमे में सूचना पहुंची कि कुछ आतंकवादी तोलोलिंग पहाड़ी से गोलियां बरसा रहे है इसलिए कुछ सेनिको को भेजा गया लेकिन दुश्मन की संख्या की जानकारी ना होने की वजह से हमारे सैनिक लगातार शहीद होने लगे थे। अभी तक भारतीय फौज को उनके असली दुश्मन का पता नहीं चला था। 

आखिरकार हवाई फौज के “स्क्वाड्रन लीडर ए० पेरुमल” ने 17 मई को जब अपने विमान से करगिल, सियाचिन जैसे क्षेत्रों की हक़ीक़त देखी तो दंग रह गए। उनसे मिली तस्वीरों से साफ़ ज़ाहिर हो गया था कि दुश्मन जो भी है, मुठ्ठी भर नहीं है, बल्कि ऊँची पहाड़ियों पर भारी मात्रा में गोले बारूद के साथ पूरी तैयारी कर बैठा है। 

26 मई 1999 भारतीय सेना “ऑपरेशन विजय” शुरू किया लेकिन दुश्मन को ऊंचाई का फायदा मिल रहा था और हमारे जवान शाहदत को नसीब हो रहे थे। इसलिए रणनीति को बदलते हुए 30 सालों में पहली बार घुसपैठियों के खिलाफ हवाई हमलों का फैसला लिया गया. पाकिस्तान ने इस हमले को बेहद गंभीर बताया. इस हमले में पाकिस्तान ने 2 भारतीय विमानों को मार गिराया था। अब स्तिथि गंभीर होती जा रही थी। 

12 जून 1999 को “म०विवेक गुप्ता” की अगुआई में 16,000 ft तोलोलिंग पहाड़ी पर सेना क तीन तरफ के हमले दुश्मन को भागने पर मजबूर कर दिया।  हमला पूरी रात चला और 13 जून को तोलोलिंग पर तिरंगा फहराया गया। यह सैनिकों को पहली फ़तह हाथ लगी थी 

 लेकिन जंग अभी जंग खत्म नहीं हुई थी। अभी एक तरफ दुश्मन भारतीय मार्ग में लगातार विस्फोट करता जा रहा था दूसरी तरफ हमारे फ़ौजी द्रास सेक्टर की पहाड़ी pt. 5140 को फ़तह करने की तैयारी में थे। 20 जून 1999 को cp. विक्रम बत्रा ने अपनी टुकड़ी के साथ pt. 5140 पर भी जीत देश के नाम लिख दी। अब भारतीय फौज समझ चुकी थी कि इतने अधिक असले से लेस वो जिससे वे लड़ रहे है वे पाक फौज है। 

हमारे जवान अब जीत की ओर रुख कर चुके थे।  29 जून pt. 5060 और 5100 से भी दुश्मन भाग चुका था और कब्ज़ा पुनः भारत के पास आ चुका था। 2 और 3 जुलाई की दरमियाना रात लेफ्टिनेंट “मनोज पांडे” अदभुद साहस का परिचय दिया और “खारबार” की चोटी पर जीत हासिल की। 

लेकिन अभी भी दुश्मन “टाइगर हिल” अपने पैर जमाए था। ये वही चोटी थी जिसमे दुश्मन सबसे मज़बूत स्तिथि में था। इसलिए शुरू में हमारे सैनिकों को जानहानि का बहुत नुक्सान हुआ। लेकिन बाद में हवाई फौज के “मिराज-2000” विमानों ने चोटियों पर “लेज़र गाइडेड बम”  तेज़ी से बरसाना शुरू कर दिए। बेहद मुश्किल इस पहाड़ी पर जान की परवाह न करते हुए हमारे जवान आगे बढ़ते रहे।

 इतिहास कहता है कि इस चोटी को पाने के लिए भारतीय सेना ने इतिहास का सबसे बड़ा ऑपरेशन चलाया था। ज़मीन से 132 बोफोर्स तोपों के मुँह सीधा दुश्मन की तरफ खोल दिए गए थे। और आसमान से “मिराज-2000” आग बरसा रहे थे। ऐसे में दुश्मन कैसे संभल पाता ?

आखिरकार 5 जुलाई 1999 को 18,000 ft ऊँची इस पहाड़ी पर रक्त बरखा शुरू गयी थी। सुबह करीब 10.30  बजे निर्णायक युद्ध में “ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव” ने 15 गोलियां झेलने के बावजूद भी दुश्मन के बंकरों में तबाही मचाना शुरू कर दिया और शाम होने तक “टाइगर हिल” को अपने नाम दिया।

भारतीय फौज साहस ने पाक फौज पीछे हटने पर मजबूर दिया था। लेकिन सेना का ऑपरेशन विजय अभी तक पूरा नहीं हुआ था। अभी भी दुश्मन “मास्को घाटी” में गोला बारूद लिए पलटवार कर रहा था। यही दुश्मन का हेडक्वाटर था। 16,000 ft  से ऊंची इस चोटी में दुश्मन पूरी तरह से अपने पैर जमाये था। 

इस पहाड़ी की मुठभेड़ में “कैप्टन बत्रा” और “मेजर नैयर” शहीद हो गए थे लेकिन सेना का मनोबल नहीं टूटा। हाथ में बंदूक और सामने दुश्मन, भारतीय सेना घमासान करती रही और 7 जुलाई 1999 की सुबह की पहली किरण “मास्को घाटी” में लाइ जीत का संदेश और फहराता तिरंगा। 

दुश्मन भाग खड़ा हुआ था। और 13 जुलाई को भारतीय सेना ने “ऑपरेशन विजय” को सफल करार दिया। 500 से अधिक सैनिकों की शाहदत के बाद दुनिया की सबसे ऊंचाई पर लडे जाने वाली जंग भारत जीत चुका था। 26 जुलाई 1999 भारत की जीत पूरी तरह सुनिश्चित की जा चुकी थी। दुश्मन घुटने तक चुका था। आदेश आया कि दुश्मन को उनकी सरहद में भागने के लिए 48 घंटे का समय दिया जाये।

 बताया जाता है कि युद्ध समाप्ति के बाद पाक फौज ने जवानों ने अपने साथियों के शव लेने से भी इंकार कर दिया था। भारतीय फौज ने यहाँ भी समझदारी दिखयी और पाक शहीद जवानों का भी कायदे से अंतिम संस्कार किया। वहीँ पाकिस्तानी सेना ने भारतीय जवानों के शवों के साथ तक बर्बरता का सुलूक करके उन्हे भारत भेजा। शायद यही फ़र्क़ है इन दो मुल्कों में एक अपने दुश्मन के शव में भी इंसान देखता है और दूसरा शव के साथ भी बर्बरता करने को नहीं घबराता। 

करगिल युद्ध में मारे गए जवानों की प्रतिमाएं,उनके नाम के मार्ग व् पार्क आज आपको देश के कोने कोने में मिल जायेंगे . इस मामले रेड क्रास का कहना है कि जब ये युद्ध चरम पर था तो हज़ारों बड़े बड़े गोले दागे गए जिसमे दोनों तरफ ही तबाही का मंज़र दिखा .पाकिस्तान में युद्ध निकट तम इलाकों में उस समय 30 हज़ार से अधिक लोगों को अपने घर से हाथ धोना पड़ा था और भारत में यह आंकड़ा लगभग 20 हज़ार तक का रहा।

परमाणु ताक़त बनने के बाद दोनों मुल्कों ने यह पहला युद्ध लड़ा था दोनों तरफ सैंकड़ों जानें गयी . भारत की जीत को  इतिहास ने सुनहरे अक्षरों से लिखा।

आज भी दोनों देशों के बीच मुद्दा कश्मीर ही बना है पाकिस्तान इसे आज भी हथियाना चाहता है साम ,दाम, दंड, भेद के इस्तेमाल के बाद उसने अब कश्मीर में आतंकवाद बढ़ाने का रास्ता अपनाया है। लेकिन शायद वे यह नहीं जनता कि जब तक भारतीय सेना के जांबाज़ कश्मीर घाटी में टिकी  है तब तक दुनिया की कोई भी ताक़त कश्मीर को भारत से अलग नहीं कर सकती है। 

जय हिन्द।

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