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सादगी और संघर्ष की जीती जागती मिसाल थे डॉ०”ए॰पी॰जे॰अब्दुल कलाम” .

देश के राष्ट्रपति और अंतरिक्ष में तकनीकी उड़ान के इस महानायक ने अपने पूरे जीवन में कोई संपत्ति,धन और ऐश्वर्य नहीं कमाया था इन्होने कमाया था तो बस देश का यकीन और प्यार। इनके पीछे सिर्फ इनके दो सूट केस, 2500 किताबें, एक घड़ी, 6 शर्ट, चार पैंट, तीन सूट और एक जोड़ी जूते थे।

“सपने वही है जो नींद ना आने दे”

“अबुल पाकिर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम मसऊदी”. अंग्रेज़ी में कहें तो “डॉ०ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम” यानी सादगी और संघर्ष का दूसरा नाम।

“मिसाइल मैन” व् “जनता के राष्ट्रपति” के नाम से भारत के साथ साथ दुनिया भर में मशहूर कलाम साहब का जन्म 15 अक्टूबर 1931 धनुषकोडी गाँव तमिलनाडु  में एक मध्यमवर्ग मुस्लिम परिवार में इनका जन्म हुआ, पिता जैनुलाब्दीन न तो ज़्यादा पढ़े-लिखे थे, न ही पैसे वाले। इनके संयुक्त परिवार में पाँच भाई एवं पाँच बहन के साथ  घर में तीन परिवार रहा करते थे। घर का गुजारा चलाने के लिए इनके पिता मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे। पिता अनपढ़ थे , लेकिन बेटे को इस योग्य बनाया कि देश और दुनिया में “कलाम” का नाम ही अमर हो गया। 

पाँच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम की पंचायत के प्राथमिक विद्यालय में इन्होने आरंभिक शिक्षा शुरू की। शिक्षक इयादुराई सोलोमन इन्हे अक्सर सिखाया करते थे  कि “जीवन मे सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था, अपेक्षा इन तीन शक्तियों को भलीभाँति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए। 

उस समय नन्हे कलाम को परिंदों के उड़ने के तरीके की जानकारी हासिल करना बेहद पसंद था। अध्यापक उनको समुद्र तट ले जाते जहाँ उड़ते हुए पक्षियों को दिखाकर अच्छे से समझाया जाता , इन्ही पक्षियों को देखकर कलाम ने तय कर लिया कि उनको भविष्य में विमान विज्ञान में ही जाना है। 

उनकी ज़िंदगी के बीते दिन कहते है कि अपनी आरंभिक शिक्षा जारी रखने के लिए अख़बार वितरित करने का कार्य भी किया,भूखे भी रहे संघर्ष भी किया लेकिन कभी थकान को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। 

इनकी बचपन से ख़्वाहिश थी कि ये पायलट बने लेकिन ये ख़्वाहिश कभी पूरी नहीं हो सकी ,भर्ती 8 लोगों की थी लेकिन टेस्ट में युवा कलाम को 9 वा स्थान प्राप्त हुआ , शायद ईश्वर ने इनके लिए कुछ और महत्त्वपूर्ण कार्य सोचा था। 

इसके बाद कलाम साहब ने 1950 में मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलजी से अंतरिक्ष विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की.  स्नातक होने के बाद इन्होने “हावरक्राफ्ट परियोजना” पर काम करने के लिये भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश किया। 

साल  1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आये और सफलतापूर्वक कई उपग्रह प्रक्षेपण परियोजनाओं में अपनी भूमिका निभाई। और परियोजना निदेशक के रूप में देश के प्रथम  स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान “एसएलवी 3” के निर्माण में इन्होने अतुल्य योगदान दिया । जिससे जुलाई 1982 में रोहिणी उपग्रह सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। 

विज्ञान की बुलंदियों को छूने के लिए इन्होने कभी संघर्ष नहीं त्यागा ये हमेशा अपने शिक्षकों  से प्रभावित रहते थे, कलाम कहते है ” मैंने तीन महान शिक्षकों-विक्रम साराभाई, प्रोफेसर सतीश धवन और ब्रह्म प्रकाश से नेतृत्व सीखा। मेरे लिए यह सीखने और ज्ञान के अधिग्रहण के समय था”।

साल 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से जुड़े। और इन्हे मौका मिला भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का। और इस सुनहरे अवसर का कलाम साहब ने भरपूर लाभ उठाया। 1980 में इन्होंने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया था। कलाम के इस कमाल से अब भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन चुका था। 

इसके बाद इन्होने एक से बड़े एक मुक़ाम को हासिल किया लेकिन कभी खुद को ऊंचा नहीं समझा। “इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम” को परवान चढ़ाते हुए कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र (गाइडेड मिसाइल्स) को भी डिजाइन किया। 5000 km तक मारक दूरी को तय करने वाली “अग्नि एवं पृथ्वी” जैसे प्रक्षेपास्त्रों को स्वदेशी तकनीक से बनाकर इन्होने दुनिया भर में भारत का नाम चमका दिया। 

इन्होने  रणनीतिक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली का उपयोग आग्नेयास्त्रों के रूप में किया। इसी प्रकार पोखरण में दूसरी बार परमाणु परीक्षण भी परमाणु ऊर्जा के साथ मिलाकर किया,और देश को दुनिया को सामने बना दिया एक परमाणु शक्ति। 

कहते है कि पोखरण में किया गया ये परीक्षण दुनिया के सबसे गुप्त परीक्षण में से एक था।  अमरीका के जासूसी उपग्रहों की आँखों में धूल झोकते हुए कलाम साहब ने ये कामयाबी हासिल की। इसका पता उस समय सिर्फ कलाम के अलावा सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगों को ही था। यह उनका दूसरा सफल परमाणु परीक्षण था 

साल  1982 में वे भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में वापस निदेशक के तौर पर आये और उन्होंने अपना सारा ध्यान “गाइडेड मिसाइल” के विकास पर केन्द्रित किया। अग्नि मिसाइल और पृथ्वी मिसाइल का सफल परीक्षण का श्रेय कलाम साहब को ही है 

कलाम साहब ने भारत को  2020 तक विज्ञान के क्षेत्र में अत्याधुनिक करने के लिए एक विशिष्ट सोच प्रदान की है।  इन्हें भारतीय जनता पार्टी समर्थित एन॰डी॰ए॰ घटक दलों ने अपना उम्मीदवार बनाया था जिसका वामदलों के अलावा समस्त दलों ने समर्थन किया था। 

इतिहास के पन्ने छांटे तो पता चलता है कि 18 जुलाई 2002 को कलाम को नब्बे प्रतिशत बहुमत द्वारा भारत का राष्ट्रपति चुना गया। इस संक्षिप्त समारोह में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, उनके मंत्रिमंडल के सदस्य तथा अधिकारीगण उपस्थित थे।

 25 जुलाई 2007 राष्ट्रपति भवन से इनका कार्याकाल समाप्त हुआ। व्यक्तिगत ज़िन्दगी में बेहद अनुशासन-प्रिय रहे. कलाम अपनी जीवनी “विंग्स ऑफ़ फायर” भारतीय युवाओं को मार्गदर्शन प्रदान करने वाले अंदाज़ में कहते है कि “सफलता का रास्ता असफलताओं से होते हुए जाता है। यदि इन असफलताओं में मुस्कुराना सीख लिया तो तुम्हें कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता।

इनकी दूसरी पुस्तक ‘गाइडिंग सोल्स- डायलॉग्स ऑफ़ द पर्पज ऑफ़ लाइफ’ आत्मिक विचारों को उद्घाटित करती है। 

 दक्षिणी कोरिया में इनकी पुस्तकों की काफ़ी माँग है और वहाँ इन्हें बहुत अधिक पसंद किया जाता है।  इन्होंने अपनी पुस्तक “इंडिया 2020” में इन्होने अपना दृष्टिकोण स्पष्ट किया है। यह भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया का सिरमौर राष्ट्र बनते देखना चाहते थे और इसके लिए इनके पास एक कार्य योजना भी थी। 

राष्ट्रपति दायित्व से मुक्त होने के बाद “कलाम” भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग, भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद, भारतीय प्रबंधन संस्थान इंदौर व भारतीय विज्ञान संस्थान,बैंगलोर के मानद फैलो, व एक विजिटिंग प्रोफेसर बन गए।

 मई 2012 में, कलाम ने भारत के युवाओं के लिए एक कार्यक्रम,भ्रष्टाचार को हराने के एक केंद्रीय विषय के साथ, “मैं आंदोलन को क्या दे सकता हूँ” का शुभारंभ किया। 

कहते है कि इन्हे  कर्नाटक भक्ति संगीत और हिंदू संस्कृति में अधिक विश्वास था। इन्हें 2003 व 2006 में “एमटीवी यूथ आइकन ऑफ़ द इयर” के लिए नामाँकित किया गया। 

मृत्यु,संपत्ति और कलाम साहब- 

कलाम साहब को बच्चों के साथ वक़्त बिताना उनको सफल होने के नए नए तरीके सिखाना बेहद पसंद था। 

27 जुलाई 2015 की शाम को जब वे भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलोंग में ‘रहने योग्य ग्रह‘ पर एक व्याख्यान दे रहे थे तो अचानक उन्हें ज़ोरदार कार्डियक अरेस्ट (दिल का दौरा) हुआ जिसके कारण ये बेहोश हो गए। 6:30 बजे के करीब इन्हे  बेथानी अस्पताल में आईसीयू में ले जाया गया जहां दो घंटे के बाद इनकी मृत्यु हो गयी। 

देश के राष्ट्रपति और अंतरिक्ष में तकनीकी उड़ान के इस महानायक ने अपने पूरे जीवन में कोई संपत्ति,धन और ऐश्वर्य नहीं कमाया था इन्होने कमाया था तो बस देश का यकीन और प्यार। इनके पीछे सिर्फ इनके दो सूट केस, 2500 किताबें, एक घड़ी, 6 शर्ट, चार पैंट, तीन सूट और एक जोड़ी जूते थे। 

आज सदी का यह महानायक हमारे बीच नहीं है लेकिन इनके द्वारा दिखाई गयी सफलता की राह हमेशा हमारे देश को प्रगति के नए पथ पर बढ़ने के लिए अग्रसर करती रहेगी। 

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