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संत श्री बाबा कीनारामजी अघोर-परम्परा के दिव्य-स्वरूप अघोराचार्य

कहते हैं कि अघोरी गणों का इस सृष्टि पर पूर्ण नियंत्रण होता है लेकिन साथ में असीम करुणा और मानवता का प्रतीक भी होता है। ये संत लोग प्रसन्न या क्रोध में आकर कुछ बोल देते हैं तो उसका प्रभाव तब तक दिखता है, जब तक वो स्वयं उसका निदान ना कर दें।

अघोर संप्रदाय के अनन्य आचार्य अघोराचार्य संत “बाबा श्री कीनाराम जी ” का जन्म सन 1693 को चंदौली के रामगढ़ गाँव भाद्रपद शुक्ल को में एक कुलीन रघुवंशी क्षत्रिय परिवार में हुआ। बचपन से ही राम-नाम में खोए रहने वाले “संत कीनाराम” जी ने किशोरावस्था में वैराग्य ले लिया था। 

माना जाता है कि बारह वर्ष की अवस्था में इनका विवाह करवा दिया गया लेकिन वैराग्य धारण करने के बाद गौना नहीं कराया। इसके बाद बाबा कीनाराम  भ्रमण के लिए निकल पड़े। राम-नाम इनका प्राण मंत्र था। इनकी सिद्धियों ने इन्हे लोकप्रिय बना था। 

अघोर पंथ के ज्वलंत संत के बारे में एक कथानक प्रसिद्ध है,कि एक बार काशी नरेश “महाराजा चेतसिंह” अपने हाथी पर सवार होकर शिवाला स्थित आश्रम से जा रहे थे,उन्होनें बाबा कीनाराम के तरफ तल्खी नज़रों से देखा और अपमान किया, बाबा ने दुखी होकर भावावेश में आकर कह दिया  ”हे अहंकारी राजन, जा अब ना तुम्हारा राज-पाठ बचेगा, ना ही ये किला और ना कोई तुम्हारा उत्तराधिकारी, तुम्हारे इसी भव्य किले पर कबूतर बीट करेंगें।” 

फिर क्या था, काल चक्र बदला, परिस्तिथियाँ ऐसी बन गयी कि राजा चेतसिंह  को वो किला छोड़कर भागना पड़ा, राजा कहाँ भागा इसका पता आज तक नहीं चल पाया है । चेतसिंह के (वाराणसी में) शिवाला स्थित भव्य किले पर कबूतर आज भी बीट करते हैं। 

तब से लेकर सन 1960-70 तक काशी-राजघराना, गोद-गोद ले-ले कर ही चलता रहा। कई जगहों पर कोशिश-मन्नतें-प्रार्थना की गयी, लेकिन सब व्यर्थ। समाधि धारण करते समय बाबा कीनाराम जी ने कहा था कि “इस पीठ का उद्धार करने के लिए वे पीठ के 11वें पीठाधीश्वर के रूप में फिर से अवतरित होंगें। 

इसके बाद काशी-नरेश विभूति नारायण सिंह जी ने संत बाबा अवधूत भगवान राम जी से बाबा के श्राप से मुक्त होने के लिए उपाय व् प्रार्थना की, काशी नरेश के आग्रह करने पर स्वयं अवधूत भगवान राम बाबा ने कहा कि “11वीं गद्दी पर (अपनी पूर्व-भविष्यवाणी के तहत) वो आयेंगें तो ही पूर्ण श्राप-मुक्ति संभव है, वो भी तब जब वे 30 वेश की उम्र से अधिक हो जायेंगे। 

लम्बे इंतज़ार के बाद “अघोराचार्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम” के नए नाम से “बाबा कीनाराम” जी ने अपने अवतरित होकर काशी को श्राप मुक्त करके कल्याणमय बनाया।

आपको बता दें कि ये अलौकिक घटना प्राचीन काल से होती हुई अपने आधुनिक युग पर आकर ख़त्म हुई। बाबा जी का ये अतुल्य चमत्कार आज के युग में आस्था और विश्वास की एक अदभुद मिसाल है। 

कहतें है कि बाबा जी  पर महान संत श्री कबीर दास जी  का बहुत प्रभाव था ,इसलिए बाबा जी भी खरी बात कहते थे। उनका कहना था- ‘मैं देवालय और देवता, पूजा और पुजारी हूं, मैंने ही वृन्दावन में कृष्ण रूप में गोपी और ग्वालों के साथ नृत्य किया था। मैंने ही हनुमान के रूप में राम का हित कार्य किया।’ 

इससे बाबा कीनाराम के चिंतन में विद्यमान एकात्मबोध का ज्ञान होता है। 

उनसे जुड़ी कई अदभुत और औलौकिक कथाएँ, आज भी लोगों की जुबां पर है। उनकी अतुलनीय आध्यात्मिक शक्ति, कईयों के जीवन का आधार बनी तो कई उनके श्राप के भागी बने। 

कहते हैं, कि अघोरी गणों का इस सृष्टि पर पूर्ण नियंत्रण होता है लेकिन साथ में असीम करुणा और मानवता का प्रतीक भी होता है। ये संत लोग प्रसन्न या क्रोध में आकर कुछ बोल देते हैं तो उसका प्रभाव तब तक दिखता है, जब तक वो स्वयं उसका निदान ना कर दें। 

बाबा कीनाराम जी और वैराग-

बाबा बचपन से ही ईश्वर के क़रीब थे। बचपन से ही घर भी त्याग दिया था और ज्ञान की तलाश घूमते घूमते कारों ग्राम के पास कामेश्वर धाम में रामानुजी संप्रदाय के संत शिवाराम की सेवा में पहुँच गए। उनसे नाम दीक्षा लेने बाद बाबा जी ने माता कष्टहरणी से सिद्धि प्राप्त की। 

कहते है कि बाबा जी जब घूमते घूमते “नईडीह” गाँव पहुँचे तो वहां एक वृद्धा बहुत रो कलप रही थी। पूछने पर उसने बताया कि उसके एकमात्र पुत्र को बकाया लगान के बदले जमींदार के सिपाही पकड़ ले गए हैं।

जब बाबा जी ने वहां जाकर देखा तो वह लड़का धूप में बैठा था। संत कीनाराम ने जमींदार से उसे मुक्त करने का आग्रह किया, लेकिन ज़मींदार नहीं माना, तब बाबा कीनाराम जी ने उस जमींदार से कहा कि “जहाँ लड़का बैठा है वहाँ की धरती खुदवा ले और जितना तेरा रुपया हो, वहाँ से ले ले”। 

जब ज़मींदार ने धरती खुदवा कर देखी तो वह  स्तंभित रह गया। लड़का तो तुरंत बंधन-मुक्त कर ही दिया गया, जमींदार ने बहुत बहुत क्षमा मांगी। बाद में उस वृद्ध महिला ने अपना लड़का संत कीनाराम जी को सौंप दिया। उस लड़के का नाम बीजाराम था। किनाराम जी के शरीर त्याग पश्चात्‌ वाराणसी के उनके मठ की गद्दी पर वही अधिष्ठित हुआ।

हिमालय की सफ़ेद चादरों में कठोर तपस्या करने के बाद संत किनाराम जी वाराणसी के हरीशचंद्र घाट श्मशान पर रहनेवाले औघड़ बाबा कालूराम व् भगवान दत्तात्रेय के पास पहुचे। 

इनके विषय में भी एक कथा बड़ी प्रख्यात है। कालूराम जी अक्सर प्रेम से दाह किए हुए शवों की बिखरी पड़ी खोपड़ियों को अपने पास बुला-बुलाकर चने खिलाते थे। लेकिन बाबा कीनाराम जी को यह सिर्फ ढोंग लगा और उन्होंने अपनी मंत्र शक्ति से खोपड़ियों का की हरकत बंद कर दी। जब बाबा कालूराम ने ये सब देखा तो तुरंत समझ गए कि ये सब बाबा कीनाराम जी का किया कराया है। 

ये कारनामा देखकर देखकर कालूराम जी ने बाबा जी से कहा-भूख लगी है। मछली खिलाओ। किनाराम ने गंगा तट की ओर मुख कर कहा-गंगिया, ला एक मछली दे जा। तभी एक बड़ी मछली स्वत: पानी से बाहर आ गई। थोड़ी देर बाद कालूराम ने गंगा में बहे जा रहे एक शव को किनाराम को दिखाया। उन्होंने वहीं से मुर्दे को पुकारा, वह बहता हुआ किनारे आ लगा और उठकर खड़ा हो गया। बाबा ने उसे घर वापिस भेज दिया पर उसकी माँ ने उसे बाबा की चरण-सेवा के लिए ही छोड़ दिया।

इसके बाद कालूराम जी ने उन्हे अपने स्वरूप के दर्शन दिए और उन्हे क्रींकुण्ड ले गए। किनाराम तबसे मुख्यश: उसी स्थान पर रहने लगे। 

अपने प्रथम गुरु वैष्णव शिवाराम जी के नाप पर उन्होंने चार मठ स्थापित किए तथा दूसरे गुरु, औघड़ बाबा कालूराम की स्मृति में क्रींकुंड (वाराणसी), रामगढ़ (चंदौली), देवल (गाजीपुर) तथा हरिहरपुर (जौनपुर) में चार औघड़ गद्दियाँ कायम कीं। 

बाबा जी ने इसी अघोरा शक्ति की साधना की थी। ऐसी साधना के अनिवार्य परिणामस्वरूप चमत्कारिक दिव्य सिद्धियाँ अनायास प्राप्त हो जाती हैं व्यक्ति परमहंस पद को प्राप्त हो जाता है। औघड़ साधक की भेद बुद्धि का नाश हो जाता है। 

बाबा जी के ऐसे कईं चमत्कार है जिन्हे सुनकर कोई भी यक़ीन नहीं कर सकता. 225 साल के चमत्कारी बाबा ने निःसंतान औरतों को आशीर्वाद देकर संतान प्राप्ति करा दी। कईं औरतों की सूनी कोख को हरा किया है । आज भी काशी के क्री कुंड में उन दंपत्तियों की काफी भीड़ होती है, जिन्हे संतान प्राप्ति नहीं हुई है या वे बीमारियों से जूझ रही होती हैं। 

आज पूरी दुनिया में लोग संत बाबा श्री कीनाराम जी  की पूजा अर्चना करके उनके आशीर्वाद से स्वयं के जीवन को बंधन मुक्त करते है। आस्था और चमत्कारों का जो स्वरूप बाबा कीनाराम जी की छवि में झलकता है शायद ऐसा नज़ारा और कहीं देखने को नहीं मिलता। 

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