ऊर्जा क्षेत्र में आत्मानिर्भर भारत पहल को लागू करने में सरकार के सभी दृष्टिकोणों पर बात की
कच्चे तेल के आयात की निर्भरता को कम करने के लिए मंत्री ने पांच-स्तरीय रणनीति प्रस्तुत की देश ने मौजूदा रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार को भरने के लिए अप्रैल और मई 2020 में कच्चे तेल की कम कीमतों का फायदा उठाकर 5000 करोड़ रुपये की बचत की
श्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा है कि ”आत्मनिर्भर भारत” देश में एक व्यापक ऊर्जा सुरक्षा संरचना विकसित करने में हमारे प्रयासों को आगे बढ़ाएगा
केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस और इस्पात मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान ने आज कहा कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा आत्मानिर्भर भारत के लिए किया गया आह्वान देश में एक व्यापक ऊर्जा सुरक्षा संरचना विकसित करने में हमारे प्रयासों को आगे बढ़ाएगा। ग्लोबल काउंटर टेररिज्म काउंसिल द्वारा आयोजित ‘जीसीटीसी एनर्जी सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस 2020’ कार्यक्रम में अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि पिछले छह वर्षों में किए गए मजबूत ऊर्जा नीतियों की निरंतरता द्वारा इसे चिह्नित किया जाएगा और कोविड- 19 से उपजी चुनौतियों का समाधान के लिए एक बदलाव किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि “हम कोविड-19 के बाद बेहतर निर्माण करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हमारे नागरिकों की जरूरतों के लिए ऊर्जा प्रणाली सुरक्षित, स्वच्छ, लचीला और उत्तरदायी है। मुझे विश्वास है कि भारत में ऊर्जा कंपनियां कोविड-19 के दौर में अपेक्षाकृत मजबूत हुई हैं और नवाचार के माध्यम से आत्मनिर्भर भारत के जरिए पुनरुद्धार के लिए तैयार है।”
श्री प्रधान ने कहा कि ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत पहल को लागू करने और माननीय प्रधानमंत्री की ऊर्जा की पहुंच, दक्षता, स्थिरता, सुरक्षा और सामर्थ्य को साकार करने में सरकार का एक दृष्टिकोण है। मंत्री ने ऊर्जा की खपत करने वाले कुछ मंत्रालयों का उल्लेख किया, जिनका उद्देश्य ऊर्जा स्वतंत्रता में सुधार करना है। इसमें भारतीय रेलवे शामिल है जो 2023 तक भारतीय रेल मार्गों के 100 प्रतिशत विद्युतीकरण करने जा रही है। मनरेगा द्वारा किसान उर्जा उत्तम उत्थान महाभियान के तहत 15 लाख से अधिक स्टैंडअलोन सौर पंपों की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है। सड़क परिवहन मंत्रालय ने हाइड्रोजन का समर्थन करते हुए एक वैकल्पिक ईंधन के रूप में सीएनजी को समृद्ध किया, कोयला गैसीकरण परियोजनाओं को विकसित करके स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों में तेजी लाया और जहाजरानी मंत्रालय ने ग्रीन पोर्ट पहल की।
श्री प्रधान ने कहा कि कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए हमारी पाँच-स्तरीय रणनीति जिसमें घरेलू तेल और गैस का उत्पादन बढ़ाना, जैव ईंधन और नवीकरण, ऊर्जा संरक्षण और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना, रिफाइनरी प्रक्रियाओं में सुधार और माँग प्रतिस्थापन शामिल हैं, एक प्रभाव डाल रहा है।
श्री प्रधान ने कहा “अतीत में, ऊर्जा सुरक्षा को एक संकीर्ण दृष्टिकोण में देखा गया है, जिसका मुख्य उद्देश्य आपूर्ति प्रबंधन करना है। हमारी सरकार ने ऊर्जा सुरक्षा के दायरे को और अधिक समावेशी बना दिया है और भू-राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय आयामों को ध्यान में रखा है। पिछले छह वर्षों में हमारी विदेश नीति के साथ भारत की ऊर्जा कूटनीति और इसके संरेखण ने सुगम और ठोस परिणाम दिए हैं। हमने प्रमुख वैश्विक ऊर्जा साझेदारों के साथ अपनी भागीदारी को बढ़ाया है और रूस, अमेरिका, सऊदी अरब और यूएई जैसे उत्पादक देशों के साथ रणनीतिक और व्यापक ऊर्जा जुड़ाव और जापान और दक्षिण कोरिया जैसे उपभोग करने वाले देशों के साथ घनिष्ठ जुड़ाव बढ़ाया है।”
कोविड -19 के प्रभाव के बारे में बात करते हुए श्री प्रधान ने कहा कि वैश्विक महामारी का स्वास्थ्य और आर्थिक मोर्चों पर बहुत प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि मौजूदा ऊर्जा ढांचे में पहले से ही अभूतपूर्व परिवर्तन देखा जा रहा है। उन्होंने कहा, “यह जरूरी है कि हम वर्तमान ऊर्जा चुनौतियों को संभालने के लिए खुद को अच्छी स्थिति में लाएं ताकि कोविड -19 के बाद की दुनिया में अपनी रणनीतियों को विकसित करने में सक्षम हो सकें। भारत, ऊर्जा के विश्व के तीसरे सबसे बड़े उपभोक्ता के रूप में न केवल प्रभावित हुआ है बल्कि संभावित रूप से यह भी परिभाषित कर सकता है कि वैश्विक ऊर्जा के रुझान कैसे सामने आएंगे। हमारा ऊर्जा क्षेत्र विशेष रूप से तेल और गैस क्षेत्र मई 2020 तक कोविड -19 के शुरुआती चरणों में महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित हुआ था। हम पहले से ही जुलाई के बाद से कोविड से पूर्व के स्तर तक पेट्रोलियम उत्पादों में से कई की खपत में महत्वपूर्ण बहाली देख रहे हैं।” मंत्री ने कहा कि अकेले तेल एवं गैस क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों में वर्तमान वित्तीय वर्ष के दौरान 8363 परियोजनाओं/आर्थिक गतिविधियों में 1.2 लाख करोड़ रुपये पूंजीगत व्यय खर्च हो रहे हैं और ऊर्जा क्षेत्र के अन्य मंत्रालयों में भी समान महत्वाकांक्षी पूंजीगत व्यय खर्च करने वाली परियोजनाएं हैं ताकि रोजगार और आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके। वित्तीय और कमोडिटी बाजार में वैश्विक उथल-पुथल के बावजूद भारत के ऊर्जा क्षेत्र ने कोविड-19 महामारी का सामना करते हुए सराहनीय आपूर्ति करके अधिक मजबूती दिखाई है।
ऊर्जा की कमी को दूर करने की आवश्यकता के बारे में बात करते हुए, श्री प्रधान ने कहा कि 16% से अधिक वैश्विक आबादी के साथ, हम वर्तमान में दुनिया की प्राथमिक ऊर्जा का केवल 6% उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने देश में एक विश्वसनीय और सुसंगत ऊर्जा अवसंरचना विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। मंत्री ने कहा कि वैश्विक औसत के एक-तिहाई ऊर्जा की प्रति व्यक्ति खपत के साथ भारत ने इस ऊर्जा घाटे को पूरा करने के लिए सभी संभव ऊर्जा स्रोतों को विकसित करना जारी रखा है जबकि इसके स्थायित्व विस्तार का पूरी तरह से संज्ञान लिया गया है। उन्होंने कहा कि “भारत में ऊर्जा परिदृश्य पहले की तरह विकसित हो रहा है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार देश में चल रहे ऊर्जा परिवर्तन के दौर पर लगातार रियलटी चेक कर रही है।
श्री प्रधान ने कहा कि भारत ने एक प्रभावी ऊर्जा परिवर्तन के लिए आर्थिक, वित्तीय, नियामक और बुनियादी ढांचे की शर्तों में अधिक लचीलापन दिखाया है। उन्होंने विश्व आर्थिक मंच के निष्कर्षों का उल्लेख किया, जिसने पिछले छह वर्षों में ऊर्जा संक्रमण पर सुसंगत और औसत दर्जे की प्रगति करने वाले चुनिंदा देशों में भारत को सूचीबद्ध किया। उन्होंने कहा, “इतना कहना ही पर्याप्त है कि पिछले साल मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक तनाव के चरम पर रहने और देश-विशिष्ट पर कच्चे तेल के निर्यात पर प्रतिबंध रहने के दौरान हमारे पास कच्चे तेल और एलएनजी की पर्याप्त आपूर्ति थी। यह पिछले छह वर्षों में हाइड्रोकार्बन के स्रोतों के विविधीकरण की हमारी नीति का नतीजा है। हमारी तेल विपणन कंपनियां अब 30 से अधिक देशों से कच्चे तेल का आयात कर रही हैं, जिसमें अफ्रीका, उत्तर और दक्षिण अमेरिका के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया भी शामिल हैं। अमेरिका, रूस और अंगोला में अपने समकक्षों के साथ हमारी कंपनियों द्वारा नए दीर्घकालिक अनुबंध किए गए हैं। हमारे एलएनजी आयातों को कतर से लेकर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और रूस जैसे पारंपरिक आपूर्तिकर्ता से भी विविधता प्रदान की गई है।”
कच्चे तेल के मूल्य निर्धारण पर, श्री प्रधान ने एक जिम्मेदार और सस्ती मूल्य निर्धारण प्रणाली की वकालत की। उन्होंने कहा “ऊर्जा मंत्रियों और जीपीईसी और अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा फोरम (आईईएफ) सहित अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों की जी 20 आपातकालीन बैठक में भारत इस स्थिति को स्पष्ट कर रहा है और इस मामले में हमारे नजरिए के लिए बहुत अधिक समर्थन है।”
श्री प्रधान ने कहा कि हम हाइड्रोकार्बन के लिए आयात निर्भरता को कम करने के लिए क्षेत्रों में संरेखण और एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण के लिए प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘अप्रैल और मई 2020 में कच्चे तेल की कम कीमतों का फायदा उठाते हुए, हमने मौजूदा रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार को 16 मिलियन बैरल कच्चे तेल से भर दिया, जिसके परिणामस्वरूप सरकार के लिए 5000 करोड़ रूपये से अधिक की बचत हुई।’
हाइड्रोकार्बन क्षेत्र में ऊर्जा सुरक्षा को और बेहतर बनाने के बारे में बात करते हुए, श्री प्रधान ने कहा कि हम धीरे-धीरे राष्ट्रीय खपत के 74 दिनों से लेकर 90 दिनों तक कच्चे और पेट्रोलियम उत्पादों के भंडारण की क्षमता में सुधार कर रहे हैं। उन्होंने अगले वाणिज्यिक-सह-सामरिक आरक्षित कार्यक्रम में चंडीखोल और पाडुर में कच्चे भंडारण क्षमता के 6.5 एमएमटी के विकास में कंपनियों की भागीदारी को आमंत्रित किया। उन्होंने कहा, ”हम अमेरिका और अन्य व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य स्थानों में विदेशी क्रूड स्टोरेज सुविधाओं की भी खोज कर रहे हैं।”
श्री प्रधान ने कहा कि घरेलू स्तर पर तेल और गैस के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए, पहले से ही नीतिगत सुधारों पर जोर दिया जा रहा है – यह हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (एचईएलपी), डिस्कवर छोटी फील्ड (डीएसएफ) पॉलिसी, ओपन एक्रेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (ओएएलपी) और अपरंपरागत हाइड्रोकार्बन का दोहन है।
उन्होंने राजस्व से उत्पादन को अधिक करने पर ध्यान केन्द्रित करने, मुश्किल क्षेत्रों से गैस के लिए स्वतंत्रत मूल्य निर्धारण सहित मार्केटिंग और सीबीएम गैस के साथ साथ पिछले साल मार्च से नई खोजों सहित नीतिगत सुधारों के बारे में बात की। उन्होंने कहा, “हम अपने घरेलू तेल और गैस की खोज को बढ़ाने के लिए वैश्विक तेल कंपनियों की सक्रिय रूप से भागीदारी बना रहे हैं।”
कांफ्रेंस की थीम इनर्जी सिक्योरिटी टूवार्ड आत्मनिर्भर भारत के बारे में बात करते हुए श्री प्रधान ने कहा कि हमने कम तेल निर्भरता के साथ स्थायी ऊर्जा वृद्धि प्राप्त करने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति अपनाई है और आत्मानिभर भारत के साथ संरेखित किया है। हम देश की आयात निर्भरता को कम करने में मदद करने के लिए इथेनॉल, सकेंड जनरेशन इथेनॉल, संपीड़ित बायो गैस (सीबीजी) और बायोडीजल के साथ परिवर्तनकारी परिवर्तन की अगली वेव के रूप में वैकल्पिक ईंधन विकसित कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘तेल विपणन कंपनियां 1,4,000 करोड़ रुपये के लागत से 12 2 जी जैव-रिफाइनरियों की निर्माण की प्रक्रिया में हैं। हम पेट्रोल में इथेनॉल के 20% सम्मिश्रण और 2030 तक डीजल में बायो-डीजल के 5% सम्मिश्रण के लक्ष्य को पूरा करने के लिए हम लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहे हैं। “
श्री प्रधान ने कहा कि सरकार एक गैस आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के लिए केंद्रित है, जिसे प्राथमिक ऊर्जा मिश्रण में 2030 तक 15% तक गैस हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए गैस अवसंरचना के सृजन के साथ मुक्त गैस बाजारों को बढ़ावा देकर प्राप्त किया जाना है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का ‘एक राष्ट्र एक गैस ग्रिड’ विकसित करने का विजन, देश में गैस के बुनियादी ढांचे के विस्तार में हमारा मार्गदर्शन कर रहा है। उन्होंने कहा कि “60 बिलियन अमेरिकी डॉलर के अनुमानित निवेश को गैस के बुनियादी ढांचे को विकसित करने में लगाया जाता है, जिसमें पाइपलाइन, शहरी गैस वितरण और एलएनजी रि:गैसीफिकेशन टर्मिनल शामिल हैं। हमने देश में एक कुशल और मजबूत गैस बाजार और फोस्टर गैस ट्रेडिंग को बढ़ावा देने और बनाए रखने के लिए भारत का पहला स्वचालित राष्ट्रीय स्तर का गैस ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म भी लॉन्च किया है। ”
मंत्री ने घरेलू गैस के विकल्प के उद्देश्य वाले कई पहलों का उल्लेख किया, जो घरेलू क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करेगा और आत्म निर्भर भारत अभियान को मजबूत करेगा। उन्होंने कहा कि उनमें से सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन (सीजीडी) नेटवर्क प्रमुख है, जो तेजी से विस्तार कर रहा है। देश की 70% से अधिक आबादी 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैली हुई है, जो जल्द ही कवर हो जाएगी। पीएनजी कनेक्शन 60 लाख से बढ़ाकर 4 करोड़ किए जाने हैं। सीएनजी स्टेशन 2,200 से 10,000 तक बढ़ाए जाने हैं। एलएनजी को एक्सप्रेस-वे, औद्योगिक गलियारों और खनन क्षेत्रों के साथ-साथ लंबी दूरी के ट्रकिंग के लिए परिवहन ईंधन के रूप में बढ़ावा दिया जा रहा है। देश में विभिन्न अपशिष्ट / बायोमास स्रोतों से संपीडित बायो गैस के उत्पादन के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने के लिए सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टूवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (एसएटीएटी) की शुरुआत की गई। उन्होंने कहा कि “ईओआई को तेल पीएसयू द्वारा एक सुनिश्चित सीबीजी ऑफ-टेक मूल्य के साथ उत्पादन और आपूर्ति के लिए संभावित उद्यमियों को आमंत्रित किया गया है। हमने 2030 तक 5000 सीबीजी प्लांट स्थापित करने की योजना बनाई है। अब तक 578 एलओआई जारी किए गए हैं।”
मंत्री ने कहा कि भारतीय तेल और गैस कंपनियां तेजी से, इस स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तनकाल में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं और खुद को ऊर्जा कंपनियों के रूप में बदल रही हैं। उन्होंने कहा कि कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए ये कंपनियां नवीकरणीय, जैव ईंधन और हाइड्रोजन जैसे हरित ऊर्जा निवेश पर अधिक ध्यान केंद्रित करेंगी। उन्होंने कॉरपोरेट पार्टनर्स के रूप में सस्टेनेबल क्लाइमेट एक्शन के लिए इंटरनेशनल सोलर एलायंस कोलिएशन फॉर सस्टेनेबल क्लाइमेट एक्शन में शामिल होने वाले पांच तेल और गैस सार्वजनिक उपक्रमों का उल्लेख किया।
श्री प्रधान ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर, भारत 2022 तक 175 गीगावॉट नवीकरणीय क्षमता का निर्माण करके और 2030 तक 450 गीगावॉट तक ऊर्जा सुरक्षा के लिए अपनी अटूट प्रतिबद्धता का अनुसरण कर रहा है। भारत की ऊर्जा नीति का समावेश बहुत अधिक समावेशी तरीके से किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि “प्रधानमंत्री मोदी को 2018 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने “चैंपियन ऑफ़ अर्थ” से सम्मानित किया है जो इस नए ऊर्जा स्रोत के दोहन में भारत के बढ़ते आदर्शवादी नेतृत्व की एक और पहचान है।”
श्री प्रधान ने कहा कि तेल और गैस उद्योग में लोकल फॉर वोकल को कार्यान्वित करने का एक बड़ा प्रयास चल रहा है। आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देने के लिए तेल और गैस क्षेत्र के प्रबंध में स्थानीयकरण को बढ़ावा देने के लिए एक प्रमुख अभियान शुरू किया गया है। उन्होंने कहा कि हम ओईएम को भारत को अपना उत्पादन आधार बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, स्टार्ट अप्स को बढ़ावा दे रहे हैं और भारत को तेल और गैस क्षेत्र के वैश्विक मूल्य श्रृंखला का अभिन्न अंग बना रहे हैं।
श्री प्रधान ने कहा कि ऊर्जा सुरक्षा के लिए हमारी खोज उपलब्धता, पहुंच, सामर्थ्य और स्वीकार्यता के ढांचे के तहत काम करेगी, जो सस्ती कीमत पर सभी वर्गों और क्षेत्रों के लिए ऊर्जा सुलभ बनाना है।