Opinion Zone
Trending

स्वामी अग्निवेश का जाना बेहद दुखद! वह ऐसे समय गये हैं, जब उन जैसे लोगों की हमारे समाज को आज ज्यादा जरूरत है.

स्वामी जी से मेरा परिचय सन् 79-80 के दौर में हुआ.. बाद के दिनों में उन्हीं के यहां पहली दफा किसी वक्त कैलाश सत्यार्थी से भी परिचय हुआ–और भी बहुत सारे लोगों से स्वामी जी के यहां मुलाकात होती रहती थी. आमतौर पर हम जैसे छात्र वहां किसी बैठक या संगोष्ठी के सिलसिले में ही जाते थे. उनका दफ़्तर सेन्ट्रल प्लेस पर किसी सर्व संगठन बैठक के लिए सर्वथा उपयुक्त स्थान था.

Urmilesh Ji Senior Journalist

मैं इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए करने के बाद एमफिल/पीएचडी के लिए दिल्ली स्थत जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में दाखिला पाया था. दिल्ली हमारे जैसे लोगों के लिए बिल्कुल नया था. जहां तक याद आ रहा है, पहली बार जनेवि के अपने किसी सीनियर के साथ मैं स्वामी जी के यहां किसी संगोष्ठी मे गया. संभवतः वह बैठक बंधुआ मजदूरों की समस्या पर केन्द्रित थी. स्वामी जी और हम जैसे लोगों में कई मामलों में भिन्नता भी थी, मसलन; उम्र, वैचारिकी और कार्यक्षेत्र में भी अंतर था. संभवतः इसीलिए अपन की उनसे कभी बहुत घनिष्ठता भी नहीं रही.

छात्र जीवन के उपरांत सन् 1983 में मेरे पत्रकारिता में आने के बाद उनसे संपर्क लगभग कट सा गया. यदा-कदा किसी कार्यक्रम में मुलाकात हो जाया करती. पर उनके लिए आदर हमेशा बना रहा.
स्वामी जी ने बंधुआ समस्या पर बड़ा अभियान चलाया. दिलचस्प बात कि आंध्र प्रदेश में सन् 1939 में पैदा हुए अग्निवेश के कार्यक्षेत्र में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, यूपी, बिहार और झारखंड जैसे इलाके शुमार रहे. सच बात तो ये कि वह किसी एक विषय या क्षेत्र तक सीमित नहीं रहे. बिहार, आंध्र, मध्य प्रदेश या ओडिशा के गरीब किसानों और खेत मजदूरों के मसले हों या पूर्वोत्तर के किसी राज्य में पुलिस दमन का हो या रूस-अमेरिका जैसे ताकतवर देशों की वर्चस्ववादी नीतियों का मसला हो या कोई बलात्कार कांड रहा हो, ऐसे तमाम सवालों पर स्वामी जी छात्र-युवा संगठनों के साथ आकर खडे हो जाते थे. यही नहीं, हमारे कई साथियों के प्रेम-विवाह में भी उनका बड़ा समर्थन और संरक्षण मिलता रहा.

बहुत आसानी से उन्होंने ऐसे साथियों की आर्य समाज रीति से किसी तड़क-भड़क के बगैर शादी कराई. इससे कोई लफड़ा भी नहीं हो सका.

जन आंदोलनों की राजनीति से जुड़े कई लोग स्वामी अग्निवेश के आलोचक भी रहे. उन पर तरह-तरह के आरोप भी लगते रहे. इनमें एक आरोप ये भी था कि हर जगह कूद पड़ने की उनकी आदत सी हो गई है. वह अन्ना-अभियान में भी शामिल हुए. फिर उपेक्षा के चलते अलग हुए.

इस बात पर लोकतांत्रिक और सेक्युलर खेमे में शायद ही किसी को असहमति हो कि अग्निवेश एक सेक्युलर स्वामी थे, एक योद्धा स्वामी! आज के दौर में जब स्वामी कहलाने वाले कई लोग ‘कारपोरेट व्यापारी’ बन गये या सत्ता के ‘धर्माधिकारी’ पर अग्निवेश ने कभी सत्ता की छाँव नही तलाशी.

अपने जीवन के शुरूआती दौर में वह हरियाणा के मंत्री तक बने. चाहते तो वह उसी दिशा में आगे बढे होते. जितना मुझे मालूम है, इस स्वामी ने अपने जीवन मूल्यों पर किसी सत्ता से कोई गर्हित समझौता नहीं किया. मौजूदा सत्ताधारियो के तो वह हमेशा कोपभाजन बने रहे. झारखंड में उन पर जानलेवा हमला तक हुआ पर इस बुजुर्ग स्वामी ने हिम्मत नहीं हारी.

संभव है, स्वामी अग्निवेश के बारे में मेरी जानकारी सीमित हो और उनके आलोचकों को लगे कि यह वस्तुगत श्रद्धांजलि-आलेख नहीं. पर मैं किसी व्यक्ति या संस्था को संपूर्णता मे देखने का पक्षधर हूं. मैं लोगों में सिर्फ उनकी कमियां नहीं निहारता. कमियां किसमें नहीं होतीं! जहां तक स्वामी अग्निवेश का सवाल है, अगर संपूर्णता में देखें तो वह एक जन-पक्षधर और योद्धा स्वामी थे.
उन्हें मेरा सलाम और श्रद्धांजलि.

साभार उर्मिलेश जी के फेसबुक वाल से।

Tags
Show More

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close