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गुरु नानक देव जी की जीवन यात्रा दर्शाती है समाज सेवा और अध्यात्म-शक्ति ।

नानकदेव जी अच्छे सूफी कवि भी थे। उनके भावुक और कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर जो अभिव्यक्ति की है, वह निराली है। उनकी भाषा "बहता नीर" थी जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी के शब्द समा गए थे। नानक ने 7500 पंक्तियां की एक कविता लिखी थी जिसे बाद में गुरु ग्रन्थ साहिब में शामिल कर लिया गया| गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित उनके लिखे 974 शब्द (19 रागों में), गुरबाणी में शामिल है- जपजी, सोहिला, दखनी ओंकार, आसा दी वार, Patti, बारह माह आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ है।

सिक्ख धर्म की स्थापना श्री गुरुनानक देव जी द्वारा लगभग पांच सदियों पहले हुआ था। एक हिन्दू परिवार में जन्मे गुरु नानक देव जी इस्लाम धर्म के लोगों के बीच पले बढे। नानक देव जी ने बचपन से ही दुनिया पर अपना गहरा आध्यात्मिक चरित्र दिखाना शुरू कर दिया था | उन्होंने परिवार के रीती रिवाजो और रूढ़िवादीयो को तोडकर खाली अनुष्ठानों में बैठने से मना कर दिया।

कहा जाता है कि गुरु नानक देव ने शादी भी की और व्यापार भी किया लेकिन ईश्वर और योग पर उनका ध्यान केन्द्रित रहा। उन्होंने मूर्तिपूजा का विरोध किया और देवताओ की पूजा में विशवास नही करते थे। उन्होंने जाति प्रथा के विरुद्ध आवाज उठायी और सभी मनुष्यों को एक समान पाठ पढाया। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से संबोधित करते थे और ये परम्परा आज भी कायम है।

जीवन परिचय- संत गुरु नानक देव जी का जन्म भारत में स्तिथ रावी नदी के किनारे बेस हुए तलवंडी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था। यह गावं अब पाकिस्तान का हिस्सा बन चुका है।

इतिहास के पन्ने देखें तो पता चलता है कि नानक देव जी का जन्म 15वी सदी में 14 अप्रैल 1469 को हुआ लेकिन कुछ विद्वान कार्तिक पूर्णिमा के हिसाब से इनका जन्म अक्टूबर-नवंबर में मानते है। इनके पिता जी का नाम कालूचंद्र बेदी और माता त्रिपता था। इनकी बहन का नाम नानकी था।

 ये बचपन में चरवाहे का काम किया करते थे। कहा जाता है कि एक दिन उनके मवेशियों ने पड़ोसियों की फसल को बर्बाद कर दिया तो उनको उनके पिता ने खूब डांटा।  जब गाँव का मुखिया राय बुल्लर वो फसल देखने गया तो फसल एक दम सही सलामत थी। बस इसी घटना के बाद से उनके चमत्कार की बाते लगातार फैलने लगी।  

बचपन से इनमें प्रखर बुद्धि के लक्षण दिखाई देने लगे थे। लड़कपन ही से ये सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। पढ़ने लिखने में इनका मन नहीं लगा। 7-8 साल की उम्र में स्कूल छूट गया क्योंकि भगवत्प्रापति के संबंध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ने आ गए। तत्पश्चात् सारा समय वे आध्यात्मिक चिंतन और सत्संग में व्यतीत करने लगे। 

पिता कालू जब पुत्र के आध्यात्मिक तरीके से परेशान होने लगे तो उन्होंने नानक देव को व्यापार के धंधे में लगा दिया। लेकिन वहां भी नानक समाज सेवा करते ही दिखे।

कहते है कि नानक देव की सारी कमाई भूखों और गरीबों का पेट भरने में चले जाती थी बस तभी से लंगर का भी इतिहास आरम्भ हुआ था।  वे कहते थे कि उनका जनेऊ दया ,संतोष ,संयम से बंधा और सत्य का बुना होगा जो ना जल सकेगा ,ना मिटटी में मिल सकेगा , ना खो पायेगा और ना कभी घिसेगा  .

उन्होंने हिन्दू और मुस्लमान दोनों धर्मों के विचारों को सम्मिलित करके एक नए धर्म की स्थापना की जो बाद में सिख धर्म के नाम से जाना गया। 

अपने ज्ञान के प्रसार के लिए उन्होंने पूरी दुनिया में कई हिन्दू और मुस्लिम धर्म की जगहों का भ्रमण किया।

साल 1499 में नानक देव गुरु नानक देव जी की सुल्तानपुर में एक मुस्लिम कवि मर्दना के साथ मित्रता हो गयी जहाँ उनको शिक्षा मिली थी |गुरु नानक और मर्दना एकेश्वर की खोज के लिए निकल पड़े।

एक बार नानक देव एक नदी से गुजरे तो उस नदी में ध्यान करते हुए अदृश्य हो गये और तीन दिन बाद उस नदी से निकले और घोषणा की “यहाँ कोई हिन्दू और कोई मुसलमान नही है।

कहा जाता है कि एक बार वे गंगा तट पर खड़े थे और उन्होंने देखा की कुछ व्यक्ति पानी के अन्दर खड़े हो कर अपने पूर्वजों की शांति के लिए सूरज की ओर पानी डाल रहें हैं गुरु नानक जी भी पानी और वे भी अपने दोनों हाथों से पानी डालने लगे पर अपने राज्य पंजाब की ओर खड़े हो कर।

जब यह देख लोगों नें उनकी गलती के बारे में बताया और पुछा ऐसा क्यों कर रहे थे तो उन्होंने उत्तर दिया – अगर गंगा माता का पानी स्वर्ग में आपके पूर्वजों तक पहुँच सकता है तो पंजाब में मेरे खेतों तक क्यों नहीं पहुँच सकता क्योंकि पंजाब तो स्वर्ग से पास है।

नानक देव जी  ने मूर्ति पूजा और देवी-देवताओं की पूजा की निंदा करते हुए अद्वैतवादी विश्वास विकसित किया | उनकी शिक्षा के मुख्य रूप से निम्न है .

1.  नाम जपना –दैनिक पूजा करो और सदैव भगवान का नाम लेते रहो |

2. किरत करो –गृहस्थ ईमानदार की तरह रोजगार में लगे रहो |

3. वंद चको –परोपकारी सेवा और अपनी आय का कुछ हिस्सा गरीब लोगो में बाटो |

इसके अलावा उन्होंने बताया कि जीवन में पांच चीजे आपके जीवन को बर्बाद कर सकती है

1 अहंकार        2 क्रोध 3 लालच     4 लगाव 5 वासना

वैवाहिक जीवन और नानक देव जी – कहा जाता है कि नानक देव जी बहन एवं जीजा जय राम जी ने इनका विवाह 24 सितम्बर 1487 में मूल चंद की बेटी सुलखनी के साथ कर दिया | उन दोनों की शादी के समय नानक लगभग 14 वर्ष के और उनकी पत्नी 17 वर्ष की थी।

गुरु नानक के रीती रिवाज़ों के विरोध की वजह से उन्होंने पहले शादी के लिए मना किया था और बारात वापस भेज देने की धमकी दी थी। जिससे नाराज़ होकर लोगों ने उन्हें एक जीर्ण कच्ची मिट्टी की दीवार के पास बिठा दिया और उनपर दीवार गिराने की साज़िश की जाने लेगी।

वहां एक वृद्ध महिला ने नानक को सावधान करते हुए पूरी बात बता दी। कहा जाता है कि नानक देव जी ने इतना सुनकर वे मुस्कुराए और उस दीवार एक सदियों तक नही गिरने की घोषणा की .

ये दीवार आज भी गुरुद्वारा कंध साहिब , गुरदासपुर पंजाब  में एक कांच में बंद है | अंत में गुरु नानक और सुलखनी ने अग्नि के चारों ओर सात फेरो के स्थान पर चार फेरे लिए | आज इस जगह पर देश विदेश से लोग इस गुरूद्वारे को देखने आते है |

नानक देव जी की यात्राएं – अपनी यात्राओं के दौरान उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम दोनों पूजा स्थलों पर पूजा की। साल 1499 से 1524 तक 25 वर्षो तक उन्होंने भारत में 5 यात्राये की जिसमे वो दक्षिण भारत,श्रीलंका,भारत के पूर्वी प्रान्तों,तिब्बत ,चीन,अरब देशो में अपनी यात्राये की।

उन्होंने मक्का मदीना की यात्रा की और वहां भी लोग उनके विचारों और बातों से अत्यंत प्रभावित हुए। इन्होने जाति के पदानुक्रम समाप्त करने के साथ साथ सारे नियम औरतो के लिए समान बताये और सती प्रथा का कड़े रूप से विरोध किया |

मृत्यु – जीवन के अंतिम दिनों में इनकी ख्याति बहुत बढ़ गई और इनके विचारों में भी परिवर्तन हुआ। उन्होंने करतारपुर नामक एक नगर बसाया, जो कि अब पाकिस्तान में है और एक बड़ी धर्मशाला उसमें बनवाई।

इसी स्थान पर आश्वन कृष्ण १०, संवत् १५९७ (22 सितंबर 1539 ईस्वी) को इनका परलोकवास हुआ। उनके जयेष्ट पुत्र सीरी चंद को उनकी बहन ने बचपन में ही गोद ले लिया था | वो सौंदर्य योगी बना और उदासी संप्रदाय की स्थापना करी |उनका दूसरा पुत्र लखमी दास ने शादी करली और गृहस्थ जीवन बिताना शुरू कर दिया |

हिन्दू देवी दुर्गा का भक्त लहना ने गुरु नानक के भजन सुने और वो उनका अनुयायी बन गया . गुरु नानक जी ने लहना की परीक्षा ली और उसे अपना उत्तराधिकारी बना दिया। गुरु नानक की 22 सितम्बर 1539 को करतारपुर में मृत्यु हो गयी | उनकी मृत्यु के बाद लहना ने अंगद देव के नाम से सिक्ख धर्म को आगे फैलाया।

कविताएं और रचनाएं – नानकदेव जी अच्छे सूफी कवि भी थे। उनके भावुक और कोमल हृदय ने प्रकृति से एकात्म होकर जो अभिव्यक्ति की है, वह निराली है। उनकी भाषा “बहता नीर” थी जिसमें फारसी, मुल्तानी, पंजाबी, सिंधी, खड़ी बोली, अरबी के शब्द समा गए थे। नानक ने 7500 पंक्तियां की एक कविता लिखी थी जिसे बाद में गुरु ग्रन्थ साहिब में शामिल कर लिया गया|

गुरु ग्रन्थ साहिब में सम्मिलित उनके लिखे 974 शब्द (19 रागों में), गुरबाणी में शामिल है- जपजी, सोहिला, दखनी ओंकार, आसा दी वार, Patti, बारह माह आदि उनकी प्रमुख रचनाएँ है।

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