दिल्ली के व्यापारियों ने कहा, हम करेंगे चाइनीज सामान का पुरजोर विरोध परन्तु इसके लिए हमारी सरकार को बनानी होगी दीर्घकालिक योजनाएं।
वर्तमान परिस्थितियों में किसी भी देश को युद्ध में हराने के लिए सैनिकों से आमने-सामने की लडाई करना ही आवश्यक नहीं बल्कि सामने वाले देश के व्यवसाय को गिरा देना भी जीत दिला सकता है। यही वजह है कि चीन की बाजारीकरण की नीतियों को धराशायी करते हुए व्यापारी वर्ग एकत्र होकर चीन के सामान को ना खरीदने का मन बना चुका है।
व्यापारियों में चीन को लेकर विरोध तो है पर उनकी मांग है कि सरकार को चीन के सामानों पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही ऐसी योजनाएं बनानी होंगी ताकि हम बाजारों में वो सभी सामान उपलब्ध करवा सकें जो चीन से आता है। इस विषय पर हमने दिल्ली के मुख्य बाजारों जोकि चीन के सामानों से हमेशा पटी रहती हैं उनके मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्षों से बातचीत की। आइए जानते हैं उनकी क्या सोच है।
चीनी सामान पर प्रतिबंध जरूरी: अशोक रंधावा (सरोजिनी नगर)
सरोजिनी नगर में चप्पलें, घडियां, सजावटी सामान चीन से व्यापारियों द्वारा मंगवाया जाता है। कोरोना के आने से पहले ही करोडों का सामान सरोजिनी नगर मार्केट में आ चुका था अब इन्हें कम दाम में हम बेच रहे हैं और आगे से मार्केट में चीनी सामान पर प्रतिबंध जरूर रहेगा। व्यापारियों ने अब चीन के सामानों को ना मंगवाने का निर्णय पूर्ण रूप से ले लिया है।
चीन को सबक देने के लिए सरकार बनाए योजनाएं: अतुल भार्गव (कनॉट प्लेस)
व्यापारियों द्वारा चीन के सामान को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करने का मन तबसे ही बना लिया था जब कोरोना ने भारत में प्रवेश किया था लेकिन सरकार को अब ऐसी योजनाएं बनानी होंगी और सूक्ष्म व लघु उद्योग शुरू कर चीन को टक्कर देने के लिए उन सामानों को बनवाने पर जोर देना होगा जो चीन से मंगवाए जाते रहे हैं।
सदर है मिनी चीन मार्केट, रोक होगी पूरी: देवराज बावेजा (सदर बाजार)
सदर बाजार को मिनी चीन मार्केट कहा जाता है। जहां दीपावली की लडियों से लेकर, घर का सजावटी सामान, नेलकटर, पेंच, पिचकारियों सहित बहुतेरे आईटम आते हैं। ऐसे में व्यापारियों ने अपने पुराने सामान को बेचने का निर्णय व भविष्य में चीन का सामान ना मंगवाने का संकल्प किया है। ऐसे में सरकार को भी व्यापारियों की मदद करनी चाहिए।
चीन और भारत के बीच अरबों डॉलर का व्यापार है। 2008 में चीन भारत का सबसे बड़ा बिज़नेस पार्टनर बन गया था। 2014 में चीन ने भारत में 116 बिलियन डॉलर का निवेश किया जो २०१७ में 160 बिलियन डॉलर हो गया। 2018-19 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 88 अरब डॉलर रहा। यह बात महत्वपूर्ण है कि पहली बार भारत, चीन के साथ व्यापार घाटा 10 अरब डॉलर तक कम करने में सफल रहा।
चीन वर्तमान में भारतीय उत्पादों का तीसरी बड़ा निर्यात बाजार है। वहीं चीन से भारत सबसे ज्यादा आयात करता है और भारत, चीन के लिए उभरता हुआ बाज़ार है। चीन से भारत मुख्यतः इलेक्ट्रिक उपकरण, मेकेनिकल सामान, कार्बनिक रसायनों आदि का आयात करता है। वहीं भारत से चीन को मुख्य रूप से, खनिज ईंधन और कपास आदि का निर्यात किया जाता है। भारत में चीनी टेलिकॉम कंपनियाँ 1999 से ही हैं और वे काफी पैसा कमा रही हैं। इनसे भारत को भी लाभ हुआ है। भारत में चीनी मोबाइल का मार्केट भी बहुत बड़ा है। चीन दिल्ली मेट्रो में भी लगा हुआ है। दिल्ली मेट्रो में एसयूजीसी (शंघाई अर्बन ग्रुप कॉर्पोरेशन) नाम की कंपनी काम कर रही है। भारतीय सोलर मार्केट चीनी उत्पाद पर निर्भर है। इसका दो बिलियन डॉलर का व्यापार है। भारत का थर्मल पावर भी चीनियों पर ही निर्भर है। पावर सेक्टर के 70 से 80 फीसदी उत्पाद चीन से आते हैं। दवाओं के लिए कच्चे माल का आयात भी भारत चीन से ही करता है। इस मामले में भी भारत पूरी तरह से चीन पर निर्भर है।
2018-19 में भारत का व्यापार घाटा करीब 52 अरब डॉलर रहा। पिछले कई वर्षों से चीन के साथ लगातार छलांगे लगाकर बढ़ता हुआ व्यापार घाटा भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया था। चीन के बाजार तक भारत की अधिक पहुंच और अमेरिका व चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध के कारण पिछले वर्ष भारत से चीन को निर्यात बढ़कर 18 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो वर्ष 2017-18 में 13 अरब डॉलर था। चीन से भारत का आयात भी 76 अरब डॉलर से कम होकर 70 अरब डॉलर रह गया।
मई, 2018 को भारत ने चीन के सॉफ्टवेयर बाजार का लाभ उठाने के लिए वहां दूसरे सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) गालियारे की शुरुआत की। आईटी कंपनियों के संगठन नैसकॉम ने कहा कि चीन में दूसरे डिजिटल सहयोगपूर्ण सुयोग प्लाजा की स्थापना से चीन के बाजार में घरेलू आईटी कंपनियों की पहुंच बढ़ गयी।