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देश में अघोषित आपातकाल, निशाने पर हैं निर्भीक पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट।

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में तो यह हाल है कि सरकार के खिलाफ किसी अखबार या चैनल पर यदि कुछ भी दिखाई दे जाए तो उसके खिलाफ कार्रवाई कर दी जा रही है।

जिस तरह से सरकारों के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को डंडे के जोर पर दबाया जा रहा है। सरकार की खामियों को गिनाने मात्र पर एफआईआर दर्ज करा दी जा रही है।

यह सरकारों की न केवल तानाशाही दर्शा रहीहै बल्कि इस आचरण में उनकी गुंडागर्दी भी झलक रही है। वैसे तो मीडिया को भाजपा की केंद्र व राज्यों ने किसी काम नहीं छोड़ा है।

यदि कोई पत्रकार हिम्मत करके सही खबर निकाल कर ला रहा है तो उसे शासन और प्रशासन पचा नहीं पा रहा है। यदि खबर से केंद्र या फिर किसी राज्य की सरकार की छवि प्रभावित हो जाये तो समझो खैर नहीं। उस पत्रकार के खिलाफ संगीन धाराओं में मामला दर्ज करा दिया जा रहा है।

सत्ता में बैठे लोग भले ही सत्तर के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर देश पर इमरजेंसी थोपने का आरोप लगाते-लगाते न थकते हों पर जमीनी हकीकत यह है कि ये लोग तो उस इमरजेंसी से भी आगे निकाल गये हैं। सरकारों के खिलाफ उठने वाली किसी भी आवाज को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है। डंडे के बल पर देश चलाया जा रहा है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए बनाई गई हर तंत्र को बंधुआ बना लिया गया है।

आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में तो यह हाल है कि सरकार के खिलाफ किसी अखबार या चैनल पर यदि कुछ भी दिखाई दे जाए तो उसके खिलाफ कार्रवाई कर दी जा रही है।

हाल ही में एक सरकारी स्कूल में बच्चों को नमक से रोटी खिलाने की वीडियो चलाने पर एक पत्रकार पर मुकदमा दर्ज करा दिया गया। अधिकारियों का कहना है कि उसने वीडियों क्यों बनाया। उसे फोटो खींचने का अधिकार मात्र था।

आज एक मामला जनपद बिजनौर में सामने आया है। कुछ पत्रकारों ने पलायन की खबर क्या प्रकाशित कर दी कि उनके खिलाफ संगीन धाराओं में मामला दर्ज करा दिया गया।
दरअसल मंडावर इलाके में एक दलित परिवार को दबंगों ने नल से पानी नहीं भरने दिया तो उसने अपने मकान पर बिकाऊ है का स्लोगन लिखकर पलायन की चेतावनी दे दी.

मामले की खबर जब पत्रकारों को लगी तो उन्होंने समाचार पत्रों में खबर का प्रकाशन किया। जनता के दमन पर उतरी उत्तर प्रदेश की पुलिस इतना कहां बर्दाश्त करने वाली थी। दो नामजद समेत पांच पत्रकारों के विरुद्ध संगीत धाराओं में मामला दर्ज कर दिया गया।
हालांकि बिजनौर के पत्रकारों ने मामले के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या ये सरकारें जनता के जीने का हक भी छीन लेंगी क्या ? पत्रकार नाम की कोई चीज देश में नहीं छोड़ेंगी क्या। सरकारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश का इतिहास रहा है कि जिन भी सरकारों ने दमनात्मक नीति अपनाई हैं, उनका पतन ही हुआ है।

फाइट फॉर राइट बिजनौर में पत्रकारों के खिलाफ की गई दमनात्मक कार्रवाई का विरोध करता है। साथ ही इस अत्याचार के खिलाफ हो रहे आंदोलन में हर स्तर पर साथ में रहेगा। बिजनौर में जो फाइट फॉर राइट के हमारे साथी हैं। वे आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाएंगे।
जय हिंद
जय फाइट फॉर राइट
चरण सिंह सोसल एक्टिविस्ट

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